अन्वय – संस्कृत में अन्वय कैसे करें?

संस्कृत भाषा में पदों का वाक्य में स्थान ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। वे इधर-उधर बिखरे पड़े हो सकते हैं। उन पदों को तर्कदृष्ट्या योग्य क्रम से पुनः लिखने को अन्वय कहते हैं। जिस से संस्कृत श्लोक तथा वाक्यों को समझने में आसानी हो सके। अन्वय क्रम में श्लोक अथवा वाक्य का अर्थ अधिक स्पष्ट होता है। बहुत बार एक ही वाक्य का अलग-अलग तरह से अन्वय करने पर भिन्न-भिन्न अर्थ भी प्राप्त हो सकते हैं। परन्तु संस्कृत वाक्यों का अन्वय करने का लक्ष्य यही रहता है कि संस्कृत श्लोक अथवा वाक्यों का योग्य अर्थ प्राप्त हो सके।

संस्कृत में अन्वय की आवश्यकता

संस्कृत में अन्वय क्यों करते हैं?

अन्वय करने से संस्कृत श्लोक अथवा वाक्यों का अर्थ आसानी से समझता है। नवीन छात्रों को श्लोकों का अध्ययन करने के लिए अन्वय एक बहुत अच्छा साधान है। अन्वय करने से छात्रों की रुचि श्लोकपठन में बढ़ती है।

श्लोक अथवा वाक्य का अर्थ समझने के लिए संस्कृत भाषा में पदों का स्थान महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। अपितु शब्दों को लगा प्रत्यय महत्त्वपूर्ण होता है। संस्कृत भाषा में पद कहीं पर भी हो सकते हैं। जैसे की अंग्रेजी में पहला स्थान कर्ता (सब्जेक्ट) का होता है। यानी प्रायः अंग्रेजी वाक्य में प्रथम स्थान पर मौजूद पद कर्ता होता है।

जैसे कि –

राम किल्स रावण.

परन्तु संस्कृत में ऐसा नहीं होता है। संस्कृत में जिस शब्द को प्रथमा विभक्ति लगी होता है, वह पद कर्ता होता है। फिर वह कर्ता वाक्य में कहीं पर भी हो सकता है। वाक्य के अन्त में भी। हो सकता है।

जैसे कि –

  • रामः रावणं मारयति। राम रावण को मारता है।
  • रामः मारयति रावणम्। राम मारता है रावण को।
  • रावणं रामः मारयति। रावण को राम मारता है।
  • रावणं मारयति रामः। रावण को मारता है राम।
  • मारयति रामः रावणम्। मारता है राम रावण को।
  • मारयति रावणं रामः। मारता है रावण को राम।

यानी संस्कृत में शब्द इधर-उधर हो सकते हैं। यदि हम इन बिखरे पदों को सही क्रम से पुनः लिखते हैं, तो संस्कृत श्लोक अथवा वाक्यों को समझने में आसानी हो सकती है। जैसे कि इस श्लोकपंक्ति को देखिए –

  • न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।
  • नहीं सोए सिंह के प्रवेश करते हैं मुँह में हिरण।

वस्तुतः यह मूल स्वरूप में ऐसा वाक्य है। जिसे समझने के लिए थोडी परेशानी होती है। परन्तु यदि इसका अन्वय किया जाए, (अन्वय करना हम इस लेख में सीखेंगे) तो यही पंक्ति ऐसी होती है। इसका अर्थ समझना बहुत ही आसान होता है –

  • मृगाः सुप्तस्य सिंहस्य मुखे न हि प्रविशन्ति।
  • हिरण सोये सिंह के मुंह में नहीं प्रवेश करते हैं।

यह वाक्य समझने में आसान होता है। इस प्रक्रिया को ही अन्वय कहते हैं। 

यहाँ हम ने श्लोकपंक्ति में ही मौजूद पदों को फिर से अलग क्रम से लिखा। ऐसे लिखने पर श्लोकपंक्ति का अर्थ अधिक अच्छे से समझ जाता है।

अन्वय किस का करते हैं?

संस्कृत में किसी भी श्लोक अथवा गद्य वाक्य का अन्वय कर सकते हैं। 

बहुत सारे लोगों की यह भ्रान्ति है कि केवल श्लोकों का ही अन्वय करते हैं। परन्तु यह गलत है। संस्कृत भाषा में गद्य वाक्यों का भी अन्वय करने की आवश्यकता पड़ सकती है। जैसे कि इस वाक्य को पढ़िए –

  • न हि जानाम्यस्य नामधेयम्।
  • नहीं जानता हूँ इसका नाम।

इस वाक्य का अन्वय करने से अधिक स्पष्टतया अर्थ प्राप्त होता है –

  • (अहम्) अस्य नामधेयं न हि जानामि।
  • (मैं) इसका नाम नहीं जानता हूँ।

अतः इस बात को समझ लेना चाहिए कि संस्कृत भाषा में केवल श्लोक ही नहीं, अपितु गद्य वाक्यों का भी अन्वय करने की आवश्यकता होने से प्रत्येक का अन्वय कर सकते हैं।

अन्वय से पहले पदविभाग करना चाहिए

संस्कृत भाषा में पद सन्धि से आपस में जुड़े रहते हैं। इसीलिए अन्वय करने से पूर्व उन को सन्धिच्छेद करके अलग-अलग करना आवश्यक होता है। इसीलिए अन्वयक्रम पढ़ने से पूर्व संधिप्रकरण का ज्ञान होना अतीव आवश्यक है।

लंबे-लंबे समास में मौजूद पदों को संयोगचिह्न के द्वारा दिखाना भी फायदेमंद होता है। साथ ही साथ संस्कृत में समास के द्वारा बहुत सारे लंबे-लंबे शब्द बनते हैं, उनका भी ठीक-ठीक अर्थ जानने के लिए उनको संयोगचिह्न के द्वारा विभक्त करके दिखाते हैं। हालांकि ऐसा करना अनिवार्य नहीं है। परन्तु यदि आप अर्थ को स्पष्ट करना चाहते हैं तो कर सकते हैं। 

संस्कृत श्लोक का अन्वय कैसे करते हैं?

किसी भी संस्कृत श्लोक अथवा वाक्य का अन्वय करने के लिए इन बिन्दुओं को की मदद से हम अन्वय रचना क्रम का अध्ययन कर रहे हैं।

  • क्रियापद का अन्वय स्थान
  • पदों का विभक्ति के अनुसार अन्वयक्रम
    • षष्ठ्यन्त पद का अन्वय में स्थान
  • विशेषण का अन्वय में स्थान
  • पदों के सामर्थ्य के अनुसार अन्वयक्रम में स्थान
  • दो क्रियापदों वाले वाक्य
    • कृदन्त युक्त वाक्य
  • अध्याहार

अब इन बिन्दुओं को विस्तार से पढ़ते हैं।

क्रियापद का अन्वय में स्थान

अन्वयक्रम में क्रियापद (व्हर्ब - verb) हमेशा अन्तिम स्थान पर होता है। मूल वाक्य में क्रियापद कहीं भी हो सकता है। प्रथम भी हो सकता है। परन्तु अन्वय क्रम में क्रियापद हमेशा अन्त में होता है।

पदों का विभक्ति के अनुसार अन्वयक्रम

संस्कृत श्लोक का अन्वय करते समय में पदों का क्रम विभक्ति के अनुसार निश्चित करते हैं। क्रमशः प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी और सप्तमी। इस क्रम से पदों का संयोजन होता है। षष्ठी विभक्ति वाले पद का संबंध जिस पद के साथ हो, उस पद के पूर्व में षष्ठ्यन्त पद को रखना चाहिए।

अर्थात् हम विभक्ति के टेबल में जिस क्रम से विभक्तियों को याद करते हैं, उस की क्रम से संस्कृत श्लोक का अन्वय करते समय भी पदों का क्रम होना चाहिए। हालांकि इस प्रकार से ही क्रम रखना अनिवार्य नहीं है। कुछ कुछ संस्कृत श्लोक ऐसे भी हो सकते हैं, जहाँ पहले स्थान पर तृतीया विभक्ति आए। कभी कभी अन्वय में पहले स्थान पर पंचमी विभक्ति भी आ सकती है।

जैसे कि –

उदाहरण

  • गच्छति छात्रः विद्यालयं पठनाय।
  • जाता है छात्र विद्यालय पढ़ने के लिए

सर्वप्रथम इस वाक्य में क्रिया और पदों की विभक्तियों को पहचानते हैं।

  • गच्छति (क्रि॰) छात्रः (१) विद्यालयं (२) पठनाय (४)

इस वाक्य में गच्छति क्रिया है। अतः अन्वय में अन्तिम स्थान पर होगा। छात्रः प्रथमा, विद्यालय द्वितीया, तथा पठनाय यह पद चतुर्थी में है। अतः इसका अन्वय इस क्रम से होना चाहिए –

  • छात्रः (१)  विद्यालयं (२) पठनाय (४) गच्छति (क्रि॰)
  • छात्र विद्यालय पढ़ने के लिए जाता है।

उदाहरण 2

  • हस्तेन पुस्तके लिखति श्लोकं छात्रः।

अब हम इस पंक्ति का अन्वय करते हैं। सर्वप्रथम यह निश्चित करते हैं कि कौनसा पद किस विभक्ति में है तथा क्रियापद कौन है? विभक्ति के अनुसार पदों को अंक लिखेंगे।

  • हस्तेन(३) पुस्तके(७) लिखति(क्रि॰) श्लोकं(२) छात्रः(१)

अब हम इन पदों को क्रमशः लिखते हैं। तो हमें अन्वय मिल जाता है।

  • छात्रः श्लोकं हस्तेन पुस्तके लिखति।

उदाहरण 3

जलं गच्छति समुद्रं नदीमार्गेण।

  • जलं समुद्रं गच्छति क्रि॰ नदीमार्गेण
  • जलं समुद्रं नदीमार्गेण गच्छति।

उदाहरण 4

ददाति छात्राय पुस्तकं शिक्षकः।

  • ददाति (क्रि॰) छात्राय (४) पुस्तकं (२) शिक्षकः (१)
  • शिक्षकः पुस्तकं छात्राय ददाति।

षष्ठ्यन्त पद का अन्वय में स्थान

षष्ठ्यन्त पद का अर्थ होता है – षष्ठी अन्त में है जिसके वह पद (षष्ठी + अन्त)। अर्थात् षष्ठी विभक्तिवाला पद। ऐसे षष्ठ्यन्त पद का अन्वय वाक्य में मौजूद किसी भी पद के साथ हो सकता है। षष्ठ्यन्त का पद जिस भी पद के साथ हो, उस के पूर्व में षष्ठ्यन्त पद अन्वयक्रम में होना चाहिए।

जैसे कि –

उदाहरण 5

शब्दः शिक्षकस्य (६) छात्रस्य (६) नाशयति अज्ञानम्।
शब्द शिक्षक का छात्र का नष्ट करता है अज्ञान।

इस उदाहरण में शिक्षकस्य और छात्रस्य ये दोनों षष्ठ्यन्त पद एकसाथ हैं। तथापि शिक्षकस्य का अन्वय शब्द के साथ और छात्रस्य का अन्वय अज्ञान के साथ हो सकता है। इसीलिए हम शिक्षकस्य को शब्द के पूर्व में और छात्रस्य को अज्ञानं के पूर्व में रख सकते हैं।

  • शिक्षकस्य शब्दः
  • छात्रस्य अज्ञानम्

शिक्षकस्य शब्दः छात्रस्य अज्ञानं नाशयति।

उदाहरण 6

विशेषण का अन्वय में स्थान

अन्वयक्रम में विशेषणों का स्थान विशेष्य के पूर्व में होता है।

एक और विशेष बात ध्यान में रखनी चाहिए कि विशेषण हमेशा विशेष्य के ही लिंग, वचन तथा विभक्ति में होते हैं। समान रूपों वाले पदों को एकत्र करके उनमें से विशेष्य के पूर्व में सभी विशेषणों को रखना चाहिए।

जैसे कि –

उदाहरण 7

5 thoughts on “अन्वय – संस्कृत में अन्वय कैसे करें?”

    • धन्यवाद। हम भी आप जैसे जिज्ञासुओं से मिलने के लिए सर्वदा उत्सुक रहते हैं।

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  1. मैं आप से बात करना चाहता हूँ। ओम गुप्ता *यू एस ए’ कैसे संभव है?

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