कारक

भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण होती है। वर्णों से खेल सन्धि प्रकरण में होता है। इन वर्णों से मिलकर पद (शब्द) बनते हैं। पदों (शब्दों) के साथ खेल समास प्रकरण में होता है। और ऐसे ही अनेक पद मिल कर एक वाक्य बनता है। इस वाक्य में किस पद का क्या अर्थ है? किस पद की क्या भूमिका है? ऐसे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए कारक प्रकरण का अभ्यास करना अतीव महत्त्वपूर्ण होता है।

कारक किसे कहते हैं?

संस्कृत व्याकरण में कारक बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। किसी वाक्य में प्रातिपदिकों की भूमिका हम कारक की मदद से पहचान सकते हैं।

संस्कृत व्याकरणकारों ने कारक की व्याख्या केवल दो शब्दों में इस प्रकार से है –

       क्रियान्वयि कारकम्।

अर्थात् क्रिया के साथ अन्वय करनेवाले को कारक कहते हैं। यहाँ अन्वय इस शब्द का अर्थ संबंध ऐसा होता है। यानी जिस पद का क्रिया के साथ संबंध हो, उसे कारक कहते हैं।

कारकों की संख्या कितनी है?

कारकों की संख्या छः है। ये छः कारक इस श्लोक में पढ़े हैं –

       कर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च।
       अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणि षट्॥

इस श्लोक के अनुसार छः कारक निम्न हैं –

  • कर्ता
  • कर्म
  • करण
  • सम्प्रदान
  • अपादान
  • अधिकरण

ध्यान रखिए की षष्ठी विभक्ति का संबंध यह कारक नहीं है। क्योंकि षष्ठी का संबंध क्रिया से नहीं होता है। हालांकि षष्ठी एक प्रकार से कारक होती भी है।

इन में से प्रत्येक कारक का हम विस्तार से अध्ययन करने वाले हैं।

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