अनीयर् प्रत्यय

इन उदाहरणों को पढ़िए –

  • रामेण वनं गमनीयम्।
    • राम ने वन जाना चाहिए।
  • रावणेन सीता चोरणीया।
    • रावण ने सीता को चुराना चाहिए।
  • मारुतिना सीता शोधनीया।
    • हनुमान जी ने सीता को खोजना चाहिए।
  • रामेण रावणः मारणीयः।
    • राम ने रावण को मारना चाहिए।

इन वाक्यों में अधोरेखांकित पदों को ध्यान से पढ़िए। इन पदों में अनीयर् इस प्रत्यय का प्रयोग किया गया है। यदि आप भी इस तरह से अनीयर् प्रत्यय के प्रयोग से वाक्य बनाना चाहते हैं तो इस लेख को पढ़िए।

अनीयर् प्रत्यय
अनीयर् प्रत्यय

अनीयर् प्रत्यय का अर्थ

पाणिनीय अष्टाध्यायी में अनीयर् प्रत्यय का विधान इस सूत्र से किया है –

तव्यत्तव्यानीयरः।३।१।९६॥

इस सूत्र का अर्थ यह है कि

भाव तथा कर्म इस अर्थ में धातु से तव्य, तव्यत् तथा अनीयर् ये प्रत्यय होते हैं।

धातु से अनीयर् प्रत्यय लगाना

यह प्रत्यय प्रायः सभी धातुओं से होने की क्षमता रखता है। सर्वप्रथम देख लेते हैं कि इस प्रत्यय में अनुबन्धलोप कैसे होता है।

अनीयर् प्रत्यय में निम्न वर्ण हैं –

  • अ + न् + ई + य् + अ + र्

इन वर्णों में से र् का लोप हो जाता है। और केवल अनीय इतना ही बचता है।

  • अ + न् + ई + य् + अ + र्
  • अ + न् + ई + य् + अ
  • अ + नी + य
  • अनीय

अब यही अनीय धातु से जा कर जुड़ता है।

अनीयर् प्रत्यय का उदाहरण

एक उदाहरण से अनीयर् प्रत्यय को समझने का प्रयत्न करते हैं। उदाहरण के लिए एध् (एधँ वृद्धौ।१।२॥) इस धातु को लेते हैं। इस धातु का अर्थ है – बढ़ना, बढ़ौतरी होना।

  • एध् + अनीयर्। एध् धातु से अनीयर् प्रत्यय हुआ।
  • एध् + अनीय। अनीयर् में से र् लुप्त हो गया।
  • एधनीय। अन्त में एधनीय यह शब्द मिला।

एधनीयम्। बढ़ना चाहिए।

  • त्वया एधनीयम्।
    • तुम्हे बढ़ना चाहिए।

अनीयर् प्रत्यय के बारे में कुछ विशेष बातें

अनीयर् यह प्रत्यय कर्म के अर्थ में होता है। अतः अनीयर् प्रत्यय लगाकर जो भी शब्द बनता है, वह कर्म का ही विशेषण होता है।

जैसे कि –

  • छात्र को श्लोक पढ़ना चाहिए। छात्र को श्लोक पढ़ने चाहिए।
    छात्रेण श्लोकः पठनीयः। छात्रेण श्लोकाः पठनीयाः।
  • छात्र को कविता पढ़नी चाहिए। छात्र को कविताएं पढ़नी चाहिए।
    छात्रेण कविता पठनीया। छात्रेण कविताः पठनीयाः।
  • छात्र को वाक्य पढ़ना चाहिए। छात्र को वाक्य पढ़ने चाहिए।
    छात्रेण वाक्यं पठनीयम्। छात्रेण वाक्यानि पठनीयानि।

इन वाक्यों में आप देख सकते हैं कि प्रत्येक वाक्य में कर्ता (छात्रेण) पुँल्लिंग शब्द है। तथापि प्रत्येक वाक्य में कर्म भिन्न लिंग का है। और जिस लिंग-वचनादि का कर्म है, उस ही के अनुरूप अनीयर् प्रत्यय से बना पद भी है।

यदि किसी अकर्मक धातु से (यानी जिस धातु का कोई कर्म ही ना हो) यह प्रत्यय होता है, तो वहाँ नपुंसकलिंग, प्रथमा तथा एकवचन होता है।

जैसे कि –

  • बालक ने हसना चाहिए।
    बालकेन हसनीयम्।
  • बालिका ने हसना चाहिए।
    बालिकया हसनीयम्
  • मित्र ने हसना चाहिए।
    मित्रेण हसनीयम्।

अनीयर् प्रत्ययान्त शब्द विशेषण होते हैं।

जैसे कि –

  • प्रातःस्मरणीयः देवः। प्रातःस्मरणीया देवी। प्रातःस्मरणीयं स्तोत्रम्।
  • करणीयस्य कार्यस्य। करणीययोः कार्ययोः। करणीयानां कार्यानाम्।

जिस धातु के अन्त में अम् अथवा होता है, उन धातुओं से यह प्रत्यय सीधे जुड़ता है।

जैसे कि –

  • गम् + अनीयर् – गमनीय।
    रामेण वनं गमनीयम्।
  • पा + अनीयर् – पानीय।
    रामेण जलं पानीयम्।

अनीयर् प्रत्यय अजन्त धातुओं को गुण करता है।

अर्थात् धातुओं में निम्न बदलाव होते हैं। यदि धातुओं के अन्त में निम्न स्वर होते हैं, उन स्वरों में नीचे बताया गया परिवर्तन होता है।

  • इ/ई –> ए
  • उ/ऊ –> ओ
  • ऋ/ॠ –> अर्
  • ऌ –> अल्

और फिर और के मामले में अयादि सन्धि भी होता है। जैसे कि –

शी इस धातु के अन्त में ई है। तो अनीयर् प्रत्यय लगने से पहले ई का ए होता है।

  • शी + अनीयर्।
  • शी + अनीय। र् का लोप।
  • शे + अनीय। ई का ए।
  • शय् + अनीय। अयादि सन्धि।
  • शयनीय।

शी – सोना। शयनीयम् – सोना चाहिए।

श्रू इस धातु के अन्त में ऊ है। तो इस ऊ का ओ बनता है।

  • श्रू + अनीयर्।
  • श्रू + अनीय। र् का लोप।
  • श्रो + अनीय। ऊ का ओ।
  • श्रव् + अनीय। अयादि सन्धि।
  • श्रवणीय।

श्रू – सुनना। श्रवणीयम् – सुनना चाहिए / सुनने योग्य

तथा ऋ के मामले में णत्व विधान सन्धि होता है।

जैसे कि –

कृ धातु। इस के अन्त में ऋ है, जिस का अर् होता है।

  • कृ + अनीयर्।
  • कृ + अनीय। र् का लोप।
  • कर् + अनीय। कृ का अर्।
  • कर् + अणीय। णत्व सन्धि
  • करणीय।

कृ – करना। करणीयम् – करना चाहिए।

अनीयर् प्रत्यय में धातु के उपान्त्य ह्रस्व स्वर को गुण होता है।

उपान्त्य स्वर यानी आखरी से दूसरा स्वर। ऐसा उपान्त्य स्वर यदि ह्रस्व है तो उस को भी गुण होता है। गुण होना यानी – इ का ए होना, उ का ओ होना, ऋ का अर् होना तता ऌ का अल् होना।

जैसे कि –

  • लिख् + अनीयर् = लेखनीय
  • चुर् + अनीयर् = चोरणीय
  • स्मृ + अनीयर् = स्मरणीय
  • कॢप् + + अनीयर् = कल्पनीय

अनीयर् प्रत्यय का अभ्यास

  • पठ् + अनीयर् = पठनीय
  • पाठ् + अनीयर् = पाठनीय
  • नृत् + अनीयर् = नर्तनीय
  • क्रुध् + अनीयर् = क्रोधनीय
  • गम् + अनीयर् = गमनीय
  • ग्रह् + अनीयर् = ग्रहणीय
  • चल् + अनीयर् = चलनीय
  • चाल् + अनीयर् = चालनीय
  • रक्ष् + अनीयर् = रक्षणीय
  • पूज् + अनीयर् = पूजनीय
  • पच् + अनीयर् = पचनीय
  • लभ् + अनीयर् = लभनीय
  • खाद् + अनीयर् = खादनीय
  • सेव् + अनीयर् = सेवनीय
  • पा + अनीयर् = पानीय
  • दा + अनीयर् = दानीय
  • स्ना + अनीयर् = स्नानीय
  • या + अनीयर् = यानीय
  • धा + अनीयर् = धानीय
  • स्था + अनीयर् = स्थानीय
  • जि + अनीयर् = जयनीय
  • क्री + अनीयर् = क्रयणीय
  • चि + अनीयर् = चयनीय
  • नी + अनीयर् = नयनीय
  • तृ + अनीयर् = तरणीय
  • कृ + अनीयर् = करणीय
  • स्मृ + अनीयर् = स्मरणीय
  • हृ + अनीयर् = हरणीय

अनीयर् प्रत्यय का गीत

इस गीत में अनीयर् प्रत्यय का खूब इस्तेमाल किया गया है। और यह गीत गेय है। यानी इसे बहुत ही अच्छे से गा सकते हैं।

लोकहितं मम करणीयम्

मनसा सततं स्मरणीयम्।
वचसा सततं वदनीयम्।
लोकहितं मम करणीयम्॥ लोकहितं मम …..

न भोगभवने रमणीयम्।
न च सुखशयने शयनीयनम्।
अहर्निशं जागरणीयम्॥ लोकहितं मम …..
न जातु दु:खं गणनीयम्।
न च निजसौख्यं मननीयम्।
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्॥ लोकहितं मम …..
दु:खसागरे तरणीयम्।
कष्टपर्वते चरणीयम्।
विपत्तिविपिने भ्रमणीयम्॥ लोकहितं मम …..
गहनारण्ये घनान्धकारे।
बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे।
तत्रा मया संचरणीयम्॥ लोकहितं मम …..
  • पद्मश्री श्रीधर भास्कर वर्णेकर

इस गीत का हिन्दी अनुवाद यहाँ पढ़िए

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