संस्कृत भाषा में तुमुन् एक कृदन्त प्रत्यय है। अर्थात् यह प्रत्यय धातुओं से होता है। इस प्रत्यय के बारे में संस्कृत ग्रन्थों मे कहा गया है – क्रियार्थायां क्रियायाम् उपपदे भविष्यति अर्थे। यानी जब एक कर्ता दो क्रिया करें, उनमें से पहली वर्तमान काल में और दूसरी भविष्यकाल में हो, तो दूसरी क्रिया को संस्कृत भाषा में तुमुन् प्रत्यय लगा सकते हैं।
कई शिक्षक इस प्रत्यय को आसानी से समझाने के लिए धातुओं की चतुर्थी विभक्ति भी कहते हैं। क्योंकि हिन्दी में अनुवाद करते समय तुमुन् प्रत्यय का अर्थ – के लिए ऐसा लेते हैं।
जैसे कि –
- पठितुम् – पढ़ने के लिए
- चलितुम् – चलने के लिए
- दातुम् – देने के लिए
- वक्तुम् – बोलने के लिए
- द्रष्टुम् – देखने के लिए
आईए, इस लेख में हम तुमुन् प्रत्यय का विस्तार से अध्ययन करते हैं।
तुमुन् प्रत्यय का वीडिओ
हमने इस एक छोटे वीडिओ के माध्यय से तुमुन् प्रत्यय को आसानी से समझने का प्रयत्न किया है।
तुमुन् प्रत्यय (संस्कृत) के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लेख को पढ़ना जारी रखिए।
तुमुन् प्रत्यय का अर्थ
तुमुन् प्रत्यय का अर्थ होता है –
- के लिए
- for
इस अर्थ को देख कर लगता है कि यह तो चतुर्थी विभक्ति का अर्थ है।
जैसे कि –
- बालकाय – बालक के लिए
- रामाय – राम के लिए
परन्तु तुमुन् प्रत्यय धातु के लिए होता है।
- पठति
- पठ् + तुमुन्
- पठितुम्
- पठितुम् – पढ़ने के लिए
यह हुआ सामान्य अर्थ। लेकिन मूलतः संस्कृत व्याकरण के ग्रन्थो में तुमुन् प्रत्यय को इस प्रकार से दिखाया है –
जब कोई एक कर्ता दो क्रिया करें, जिसमें पहली क्रिया वर्तमान (लट् लकार) में हो, और दूसरी क्रिया भविष्यकाल (लृट् लकार) में हो, तो भविष्यकाल की क्रिया को तुमुन् प्रत्यय होता है।
जैसे कि –
- बालकः गच्छति।
- बालकः खेलिष्यति।
- बालकः खेलितुम् गच्छति।
यहाँ पहले तो बालक जा रहा है। और जाने के बाद बालक खेलेंगा। अर्थात् बालक खेलने के लिए जा रहा है। इस अर्थ में खेल् धातु से तुमुन् प्रत्यय हो कर खेलितुम् ऐसा रूप बनता है।
तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कैसे करते हैं?
किसी भी धातु से तुमुन् प्रत्यय करने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना पड़ता है –
- अनुबन्धलोप
- इडागम
- गुण
1. तुमुन् प्रत्यय का अनुबन्धलोप
वैसे तो हम इस प्रत्यय को – तुमुन् ऐसे लिखते हैं। परन्तु इसका असली नाम तुमुँन् यह है। इस प्रत्यय के नाम में कुल पाँच वर्ण हैं। त् + उ + म् + उँ + न् । इनमें से दो वर्ण – उँ + न् ये दोनों अनुबन्ध कहलाते हैं। इनका लोप करना होता है। लोप करने का अर्थ होता है गुप्त करना। यानी तुमुन् प्रत्यय में अनुबन्ध लोप करने के बाद केवल त् + उ + म् ये तीन वर्ण बाकी बचते हैं। इस बात को इस प्रकार से समझते हैं –
तुमुन् प्रत्यय के क्या बाकी बचता है?
तुमुन् इस नाम में पांच वर्ण हैं –
- त् + उ + म् + उ + न्
- त् + उ + म् +
उ + न् - त् + उ + म्
- तुम्
अर्थात् तुमुन् प्रत्यय में तुम् इतना ही भाग बाकी बचता है।
2. तुमुन् प्रत्यय में इडागम
तुमुन् प्रत्यय की प्रक्रिया में प्रायः इडागम होता है।
इडागम क्या है?
प्रकृति और प्रत्यय के बीच जो आता है उसे आगम कहते हैं। तुमुन् प्रत्यय की प्रक्रिया में इट् नाम का आगम आता है। इसे ही इडागम कहते हैं। (इट् + आगम – इडागम) यह इट् धातु और प्रत्यय के बीच आता है।
इडागम का अनुबन्धलोप
इट् इस आगम में दो वर्ण हैं –
- इ + ट्
- इ +
ट् - इ
यानी सिर्फ इ बचता है।
कुछ कुछ धातुओं में इडागम नहीं होता है।
कुछ कुछ धातु ऐसे भी होते हैं जिन में इडागम नहीं होता है। छात्रों को चाहिए की ऐसे धातुओं को स्मरण (याद) रखे।
ऐसे धातुओं को उदाहरण में पढिए।
तुमुन् प्रत्यय का उदाहरण
पढ़ने के लिए = पठ् + तुमुन्
- पठ् + तुमुन्
- पठ् + तुम् …. अनुबन्धलोप
- पठ् + इट् + तुम् …. इडागम
- पठ् + इ + तुम् …. इडागम का अनुबन्धलोप
- पठितुम्
बालकाः पठितुं विद्यालयं गचछन्ति।
चलने के लिए – चल् + तुमुन्
- चल् + तुमुन्
- चल् + तुम्
- चल् + इट् + तुम्
- चल् + इ + तुम्
- चलितुम्
शिशुः चलितुं न जानाति।
बालकाः चलितुम् उत्तिष्ठन्ति।
इडागम न होनेवाले धातु
गम् – गन्तुम्
- अहं गन्तुम् इच्छामि।
वच् – वक्तुम्
- छात्रः उत्तरं वक्तुम् हस्तं उपरि करोति।
प्रच्छ् – प्रष्टुम् (to ask)
- छात्रः प्रश्नं प्रष्टुं शिक्षकस्य गृहं गच्छति।
दृश् – द्रष्टुम् (to look)
- जनाः नाटकं द्रष्टं नाट्यगृहं गच्छन्ति।
कृ – कर्तुम्
- सैनिकाः युद्धं कर्तुम् इच्छन्ति।
दा – दातुम् (to give)
- धनिकः याचकेभ्यः धनं दातुं मन्दिरं गच्छति।
पा – पातुम् (to drink)
- प्राणिनः जलं पातुं जलाशयं गच्छन्ति।
तुमुन् प्रत्यय का अभ्यास
यहाँ हम तुमुन् प्रत्यय के प्रयोग से कुछ वाक्य बना रहे हैं। तुमुन् प्रत्यय के इन उदाहरणों से आप का बहुत अच्छा अभ्यास होगा।
- छात्रः विद्यालयं गच्छति। छात्र विद्यालय जाता है।
- छात्रः विद्यालये पठिष्यति। छात्र विद्यालय में पढ़ता है।
- छात्रः पठितुं विद्यालयं गच्छति। छात्र पढ़ने के लिए विद्यालय जाता है।
- छात्रः लिखति। छात्र लिखता है।
- छात्रः लेखनीं स्वीकरिष्यति। छात्र कलम लेगा।
- छात्रः लिखितुं लेखनीं स्वीकरोति। छात्र लिखने के लिए कलम लेता है।
- छात्रः विद्यालयं गच्छति। छात्रः विद्यालय जाता है।
- छात्रः द्विचक्रिकां क्रेक्ष्यति। छात्र साईकल खरीदेगा।
- छात्रः विद्यालयं गन्तुं द्विचक्रिकां क्रीणाति। छात्र विद्यालय जाने के लिए साईकल खरीदता है।
- शिक्षकः पुस्तकस्य प्रयोगं करोति। शिक्षक पुस्तक का प्रयोग करता है।
- शिक्षकः पाठयिष्यति। शिक्षक पढ़ाएगा।
- शिक्षकः पाठयितुं पुस्तकस्य प्रयोगं करोति। शिक्षक पढाने के लिए पुस्तक का प्रयोग करता है।
- बालकः इच्छति। बालक चाहता है।
- बालकः रोटिकां खादिष्यति। बालक रोटी खाएंगा।
- बालकः रोटिकां खादितुं इच्छति। बालक रोटी खाना चाहता है।
श्लोक में तुमुन् के उदाहरण
हम यहाँ एक ऐसा श्लोक दे रहे हैं जिसमें बहुत सारे पद तुमुन् प्रत्यय से बने हुए हैं। इनको समझने का प्रयत्न करें।
श्रोतुं कर्णौ वक्तुम् आस्यं सुहास्यं, घ्रातुं घ्राणं पादयुग्मं विहर्तुम्। द्रष्टुं नेत्रे हस्तयुग्मं च दातु, ध्यातुं चित्तं येन सृष्टं स पातु॥
श्लोक का अर्थ
सुनने के लिए कान, बोलने के लिए सुहास्य मुख,
सूंघने के लिए नाक, दो पैर घूमने के लिए।
देखने के लिए आँखे और दो हाथ (दान) देने के लिए,
ध्यान करने के लिए मन जिसने बनाएं हैं वह (ईश्वर) रक्षा करें (हमारी)॥
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