क्त्वा – ल्यप् प्रत्यय। अर्थ-उदाहरण। Ktwa-Lyap Meaning – Examples

क्त्वा – ल्यप् प्रत्यय क्या हैं

इस चित्र को देखिए –

क्त्वा - ल्यप् प्रत्यय
बालक देख कर लिखता है।

इस चित्र में एक बालक है जो देख कर लिख रहा है। अर्थात् यहाँ दो कार्य किए जा रहे हैं। –

  • देखना
  • लिखना

परन्तु यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एक ही कर्ता इन दोनों क्रियाओं को कर रहा है – बालक। इस चित्र का वर्णन करने के लिए हमें दो वाक्यों की आवश्यकता है –

  • बालकः पश्यति। बालक देखता है
  • बालकः लिखति। बालक लिखता है।

यहाँ दोनों वाक्यों में एक ही कर्ता है। जिसे हम सामान्य (common) बनानकर दोनों वाक्यों का एक वाक्य बना सकते हैं। जैसे कि हम गणित में करते हैं –

  • (a x b) + (a x c)
    • इस उदाहरण में a दोनों कंसों में सामान्य है। अतः उसे हम बाहर निकाल कर एक नया समीकरण बना सकते हैं।
  • a (b+c)
    • यहाँ आप देख सकते हैं कि a को सामान्य बनाया गया है।

ठीक यही काम क्त्वा – ल्यप् प्रत्यय करते हैं।

  • बालकः पश्यति। बालक देखता है
  • बालकः लिखति। बालक लिखता है।
    • बालकः दृष्ट्वा लिखति। बालक देखकर लिखता है।

यह काम क्त्वा और ल्यप इन दोनों प्रत्ययों के प्रयोग से किया जाता है। इस के प्रयोग का नियम अष्टाध्यायी में इस सूत्र से दिया गया है – समानकर्तृकयोः पूर्वकाले।३।४।२१॥ इसका अर्थ इस प्रकार होता है –

यदि एक ही कर्ता क्रम से (एक के बाद दूसरी) दो क्रियाएं करता है, तब पहली क्रिया को क्त्वा अथवा ल्यप् प्रत्यय लगा कर एक वाक्य बनाया जा सकता है।

जैसे की –

  • शिक्षकः आगच्छति। शिक्षकः पाठयति। शिक्षक आते हैं। शिक्षक पढ़ाते हैं।
  • शिक्षकः आगत्य पाठयति। शिक्षक आकर पढ़ाते हैं।
  • अश्वः धावति। अश्वः ग्रामं गच्छति। घोडा दौडता है। घोडा गांव जाता है।
  • अश्वः धावित्वा ग्रामं गच्छति। घोडा दौडकर गांव जाता है।
  • बालकः आम्रं खादति। बालकः जलं पिबति। बालक आम खाता है। बालक जल पीता है।
  • बालकः आम्रं खादित्वा जलं पिबति। बालक आम खाकर पानी पीता है।
  • अर्जुनः सूर्यं पश्यति। अर्जुनः जयद्रथं मारयति। अर्जुन सूर्य को देखता है। अर्जुन जयद्रथ को मारता है।
  • अर्जुनः सूर्यं दृष्ट्वा जयद्रथं मारयति।

क्त्वा – ल्यप् का प्रयोग कैसे करते हैं

अब हम क्त्वा – ल्यप् इन दोनों प्रत्ययों का प्रयोग के बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं। यहाँ एक प्रश्न आपके मन में आ सकता है कि यहाँ इन दोनों प्रत्ययों का काम तो एक ही है। तथापि एक काम करने के लिए दोनों प्रत्ययों का क्या प्रयोजन हो सकता है? इसके लिए हमें इन दोनों प्रत्ययों में अन्तर समझना पड़ेगा।

क्त्वा – ल्यप् प्रत्ययों में अंतर

यहाँ दो प्रत्यय हैं। १) क्त्वा २) ल्यप् इन दोनों का कार्य समान है। तथापि कार्यक्षेत्र भिन्न है।

इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण देखिए।

नौका और गाड़ी

एक नौका और एक गाड़ी। दोनों का काम एक ही है – यात्रा करना। लेकिन उन दोनों का कार्यक्षेत्र भिन्न है। यानी उन दोनों की काम करने की जगह अलग है। नौका यात्रा करती है। लेकिन उसका कार्यक्षेत्र पानी है। और गाड़ी भी यात्रा ही करती है। लेकिन गाड़ी का कार्यक्षेत्र ज़मीन है।

समान कार्य। भिन्न कार्यक्षेत्र।

ठीक उसी प्रकार से क्त्वा और ल्यप् दोनों का काम है – दो वाक्यों का एक वाक्य बनाना। लेकिन कार्यक्षेत्र भिन्न है। जेसै –

  • क्त्वा – जिन धातुओं के पहले उपसर्ग नहीं होता है उन धातुओं से क्त्वा प्रत्यय होता है। जैसे –
    • गम् + क्त्वा – गत्वा
    • लिख् + क्त्वा – लिखित्वा
    • चल् + क्त्वा – चलित्वा
    • कृ + क्त्वा – कृत्वा
    • जि + क्त्वा – जित्वा
  • ल्यप् – जिन धातुओं के पहले कोई उपसर्ग होता है उन से ल्यप् प्रत्यय होता है। जैसे –
    • आ + गम् + ल्यप् – आगम्य
    • अनु + लिख् + ल्यप् – अनुलिख्य
    • प्र + चल् + ल्यप् – प्रचल्य
    • अधि + कृ + ल्यप् – अधिकृत्य
    • वि + जि + ल्यप् – विजित्य
अब प्रश्न है – उपसर्ग क्या है?

हमने देखा है कि धातुओं से पूर्व में उपसर्ग के होने या ना होने से ही क्त्वा अथवा ल्यप् इन दोनों में से एक को चुना जाता है। अतः उपसर्गों को समझना आवश्यक होता है।

इसीलिए हम अनुशंसा करते हैं कि यदि आप उपसर्गों के बारे में नहीं जानते हैं तो उपसर्गों के बारे में अधिक विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।

तो अब हमने समझ लिया है कि क्त्वा और ल्यप् इन दोनों प्रत्ययों का प्रयोग कहाँ करना है। अब हम क्रमशः इन का विस्तार से अधययन करेंगे।

१. क्त्वा

क्त्वा प्रत्यय धातु से होता है अंग से नहीं

अब इस बात का हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए की क्त्वा प्रत्यय मूल धातु से होता है। अब आप जानते हैं कि धातु जैसा दिखता है, वैसा क्रियापद में नहीं होता है। जैसे की

  • पठ् – पठ – पठति
  • लिख् – लिख – लिखति
  • कथ् – कथय – कथयति
  • नृत् – नृत्य – नृत्यति
  • गम् – गच्छ – गच्छति
  • पा – पिब – पिबति
  • कृ – कुरु – करोति
  • दृश् – पश्य – पश्यति
  • सेव् – सेव – सेवते

उपर्युक्त सूचि में हम देख सकते हैं कि क्रियापद में प्रयुक्त धातु के रूप किंचित् भिन्न हो जाते हैं। परन्तु हमें क्त्वा अथवा ल्यप् प्रत्यय मूल धातु से करना है। फिर क्रियापद का रूप कुछ हो सकता है। जैसे कि गम् धातु। गम् धातु से क्रियापद गच्छति ऐसा बनता है। तथापि हमें क्त्वा प्रत्यय गम् इस मूल धातु से करना है। गच्छ से नहीं।

क्त्वा प्रत्यय का अनुबन्धलोप

अनुबन्धलोप किसे कहते हैं?

बन्ध इस शब्द का अर्थ होता है – बांध के रखना। और अनुबन्ध यानी बांध के रखने वाली चीज़। तथा लोप इस शब्द का अर्थ होता है – गायब होना। अतः अनुबन्धलोप = बांध कर रखनेवाली वस्तु गायब होना।

हमारे प्रत्ययों को भी कुछ चीजें बाध के रखती हैं। इस उदाहरण से आप अनुबन्ध को आसानी से समझ सकते हैं –

हम अक्सर अमेजन (Amazon) अथवा फ्लिपकार्ट (Flipkart) के द्वारा ऑनलाईन खरीददारी करते हैं। खरीददारी करने के बाद हम जिस वस्तु को मंगाते हैं, वह वस्तु हमारे पते पर भेजी जाती है। जब वह वस्तु हमारे घर आती है, तब हम सबसे पहले क्या करते हैं? हम सबसे पहले उस वस्तु पर लगा वेष्टन (Wrapper) को हटाते हैं। और उस के अन्दर से हमारी वस्तु बाहर निकालते हैं। बस वह वेष्टन (Wrapper) ही हमारा अनुबन्ध है।

ठीक इसी प्रकार से हमारे प्रत्यय का नाम है – क्त्वा। परन्तु इस प्रत्यय से अनुबन्ध को हटाना बाकी है।

लशक्वतद्धिते इस सूत्र के नियम से इस प्रत्यय में मौजूद क् का लोप हो जाता है। और केवल त्वा बच जाता है।

  • क्त्वा –
  • क् + त् + व् + आ
  • क् + त् + व् + आ
    • त्वा

तो इस तरह से हम ने देखा की की क्त्वा से क् हट जाता है और केवल त्वा बच जाता है। यह क् हमारा अनुबन्ध (Wrapper) था जो गायब हो गया। उदाहरण के लिए पठ् धातु लेते हैं –

  • पठ् + क्त्वा
  • पठ् + त्वा

इट् आगम (इडागम)

अब धातु और क्त्वा के बीच में इट् आगम आकर बैठता है। अब इट् में से भी ट् निकल जाता है। और केवल इ बचता है। अब हमारी स्थिति है –

  • पठ् + इ + त्वा
  • पठित्वा

इस तरह से हमारा क्त्वा प्रत्ययान्त शब्द बन चुका है – लिखित्वा। जिसका अर्थ होता है – पढ़ कर। अब आप इसका वाक्य में प्रयोग कर सकते हैं।

  • बालकः पठित्वा लिखति। बालक पढ़ कर लिखता है।

अब इसके अन्य उदाहरण देखिए –

क्त्वा प्रत्यय के उदाहरण –

  • शिशुः हसति। शिशुः क्रन्दति। शिशु हँसता है। शिशु चिल्लाता है।
  • शिशुः हसित्वा क्रन्दति। शिशु हँस कर चिल्लाता है।
  • विशालः खादति। विशालः शेते। विशाल खाता है। विशाल सोता है।
  • विशालः खादित्वा शेते। विशाल खा कर सोता है।
  • कृष्णः पाठं लिखति। कृष्णः गृहं गच्छति। कृष्ण पाठ लिखता है। कृष्ण घर जाता है।
  • कृष्ण पाठ लिख कर घर जाता है।
  • छात्रः पठति। छात्रः धनम् अर्जयति। छात्र पढ़ता है। छात्र पैसा कमाता है।
  • छात्रः पठित्वा धनम् अर्जयति। छात्र पढ़ कर पैसा कमाता है।
  • चौरः चोरयति। चौरः धनम् अर्जयति। चोर चोरी करता है। चोर पैसा कमाता है।
  • चौरः चोरयित्वा धनम् अर्जयति। चोर चोरी कर के पैसा कमाता है।
  • कृषकः परिश्रमं करोति। कृषकः धनम् अर्जयति। किसान मेहनत करता है। किसान पैसा कमाता है।
  • कृषकः परिश्रमं कृत्वा धनम् अर्जयति। किसान मेहनत कर के पैसा कमाता है।
  • देवः दुष्टान् मारयति। देवः भक्तान् रक्षति। देव दुष्टों को मारता है। देव भक्तों की रक्षा करता है।
  • देवः दुष्टान् मारयित्वा भक्तान् रक्षति। देव दुष्टों को मारकर भक्तों की रक्षा करता है।
  • शिक्षकाः कथां श्रावयन्ति। शिक्षकाः छात्रान् मोदयन्ति। शिक्षक कथा सुनाते हैं। शिक्षक छात्रों को आनन्दित करते हैं।
  • शिक्षकाः कथां श्रावयित्वा छात्रान् मोदयन्ति। शिक्षक कथा सुना कर छात्रों को आनन्दित करते हैं।
  • शिष्यः गुरुं सेवते। शिष्यः विद्यां प्राप्नोति। शिष्य गुरु की सेवा करता है। शिष्य विद्या प्राप्त करता है।
  • शिष्यु गुरुं सेवित्वा विद्यां प्राप्नोति। शिष्यु गुरु की सेवा कर के विद्या प्राप्त करता है।
  • भक्तः देवं वन्दते। भक्तः आनन्दम् अनुभवति। भक्त देव को वन्दन करता है। भक्त आनन्द का अनुभव करता है।
  • भक्तः देवं वन्दित्वा आनन्दम् अनुभवति।

अपवाद स्वरूप भिन्न रूप

तथापि बहुतेरे धातुओं के मामले में इट् आगम नहीं होता है। और इसी कारण की वजह से भिन्न भिन्न सन्धि हो कर अलग-अलग रूप बनते हैं। अब इस के पीछे का कारण समझने के लिए व्याकरण शास्त्र का बहुत गहरा ज्ञान होना आवश्यक होता है। अतः हम यहाँ सुझाव देना चाहते हैं कि यदि आप की इच्छा हो तो आप व्याकरण शास्त्र का अध्ययन ज़रूर कीजिए। परन्तु यदि इच्छा ना हो, तो आप अपवाद स्वरूपों को केवल याद करके काम चला सकते हैं। जैसे –

  • दृश् – दृष्ट्वा
    • चालकः दृष्ट्वा यानं चालयति।
    • चालक देख कर गाड़ी चलाता है।
  • स्पृष् – स्पृष्ट्वा
    • पक्षी आकाशं पृष्ट्वा उड्डयन्ते।
    • पंछी आकाश को छू कर उड़ते हैं।
  • नम् – नत्वा
    • छात्रः ईश्वरं नत्वा पठनम् आरभतु।
    • छात्र को ईश्वर को नमन कर पढ़ना आरंभ करना चाहिए।
  • गम् – गत्वा
    • सः गत्वा आगच्छति।
    • वह जा कर आता है।
  • मन् – मत्वा
    • भक्तः ईश्वरं रक्षकं मत्वा जीवति।
    • भक्त ईश्वर को ही रक्षक मान कर जीता है।
  • पा – पीत्वा
    • केशवः दुग्धं पीत्वा शेते।
    • केशव दूध पी कर सोता है।
  • त्यज् – त्याक्त्वा
    • सैनिकः भयं त्यक्त्वा युध्यति।
    • सैनिक डर का त्याग कर के लड़ता है।
  • भू – भूत्वा
    • अहं शिक्षकः भूत्वा छात्रान् पाठयिष्यामि।
    • मैं शिक्षक बन कर छात्रों को पढ़ाऊंगा।
  • कृ – कृत्वा
    • अहं भोजनं कृत्वा शयनं करोमि।
    • मैं भोजन कर के सोता हूँ।
  • क्री – क्रीत्वा
    • पिता वस्तूनि क्रीत्वा आनयति।
    • पिताजी चीजे़ खरीद कर लाते हैं।
  • भ्रम् – भ्रान्त्वा
    • भिक्षुकः नगरे भ्रान्त्वा भिक्षां याचते।
    • भिखारी नगर में भटक कर भीख मांगता है।
  • दा – दत्त्वा
    • माता बालकाय रोटिकां दत्त्वा आनन्दिता भवति।
    • माँ बालक को रोटी दे कर खुश होती है।

क्त्वान्त शब्द अव्यय होता है।

इस बात का हमेशा ध्यान रहना चाहिए कि जिस भी धातु से क्त्वा प्रत्यय लगकर कोई शब्द बनता है तो वह अव्यय होता है। इसीलिए उसका कोई लिंग, वचन, विभक्ति अथवा लकार भी नहीं होगा। जैसे की –

  • पठ् + क्त्वा – पठित्वा। अब पठित्वा शब्द हमेशा के लिए ऐसा ही रहेगा। इस में कोई भी बदलाव नहीं होगा। क्यों कि यह एक अव्यय है। और अव्यय कभी भी बदलते नहीं है।

इस प्रकार से हम नें क्त्वा प्रत्यय को समझने प्रयत्न किया। अब हम ल्यप् प्रत्यय को समझने का प्रयत्न करते हैं।

२. ल्यप्

आ + गम् + ल्यप्

जैसे कि हमने देखा है – अनुपसर्ग (जिन को उपसर्ग नहीं लगा है उन) धातुओं से क्त्वा प्रत्यय होता है। और सोपसर्ग (जिन को उपसर्ग लगा है उन) धातुओं से ल्यप् प्रत्यय होता है। यह भी प्रत्यय मूल धातु से होता है। अंग से नहीं।

बालकः गच्छति। बालकः पठति।

इस वाक्य में गच्छति इस क्रियापद में गम् धातु है। परन्तु यहाँ कोई भी उपसर्ग नहीं है। अतः यहाँ ल्यप् प्रत्यय नहीं होगा। अपितु क्त्वा प्रत्यय ही होगा – बालकः गत्वा पठति।

परन्तु

बालकः अवगच्छति। बालकः पठति।

यहाँ अवगच्छति इस क्रियापद में भी गम् धातु है। और अव यह उपसर्ग लगाकर अवगच्छति ऐसा क्रियापद बना है। यहाँ धातु को उपसर्ग लगाया होने की वजह से ल्यप् प्रत्यय होगा – बालकः अवगम्य पठति। इस वाक्य में अवगत्वा ऐसा क्त्वान्त रूप नहीं बनाया जाता है।

ल्यप् प्रत्यय का अनुबन्धलोप

ल्यप् इस प्रत्यय का वर्णविच्छेद करने के बाद हमें ये वर्ण मिलते हैं –

  • ल् + य् + अ + प्

इन वर्णों में से ल् का लशक्वतद्धिते और प् का हलन्त्यम् इन सूत्रों से लोप हो जाता है। और बाकी क्या बचता है?

  • ल् + य् + अ + प्
  • ल् + य् + अ + प्
    • य् + अ

अर्थात् ल्यप् के नाम से केवलबचता है। और यही धातु से लगता है। उदाहरण –

  • अव + गम् + ल्यप्
  • अव + गम् + य

इट् आगम् (इडागम)

अब तक हमने जाना की ल्यप् प्रत्यय कहाँ और किस रूप में होता है। परन्तु हम ने क्त्वा प्रत्यय के विषय में इडागम (शब्द और प्रत्यय के बीच इ का आना) को देखा था। क्या ल्यप् प्रत्यय के समय भी हमें इट् आगम शब्द और प्रत्यय के बीच में लाना है?

उत्तर है – नहीं
ल्यप् प्रत्यय के विषय में इडागम नहीं होता है। शब्द और प्रत्यय के बीच में इ नहीं आता है और सीधे धातु और प्रत्यय मिल जाते है।

जैसे –

  • अव + गम् + ल्यप्
  • अव + गम् + य
    • अवगम्य

ल्यबन्त पद भी अव्यय होता है।

जिस प्रकार से हम ने देखा की क्त्वान्त पद अव्यय होता है। बाद में वह बिल्कुल भी नहीं बदलता। ठीक उसी प्रकार से ल्यबन्त (ल्यप् + अन्त) पद भी एक अव्यय होता है और कभी भी बदलता नहीं है।

ल्यप् प्रत्यय के उदाहरण

  • छात्रः विस्मरति। छात्रः पुनः पठति।
  • छात्रः विस्मृत्य पुनः पठति।
  • शिष्यः गुरुं प्रणमति। शिष्यः विद्यां लभते।
  • शिष्यः गुरुं प्रणम्य विद्यां लभते।
  • विद्यार्थी कक्षां प्रविशति। विद्यार्थी स्वस्थानं गच्छति।
  • विद्यार्थी कक्षां प्रविश्य स्वस्थानं गच्छति।
  • भक्तः देवं सम्पूजयति। भक्तः भोजनं करोति।
  • भक्तः देवं सम्पूज्य भोजनं करोति।
  • सः आगच्छति। सः गच्छति।
  • सः आगत्य गच्छति।
  • दुर्जनः नरकं प्राप्नोति। दुर्जनः रोदिति।
  • दुर्जनः नरकं प्राप्य रोदिति।
  • राक्षसः विहसति। राक्षसः गच्छति।
  • राक्षसः विहस्य गच्छति।
  • भवान् दुर्गुणान् परित्यजतु। भवान् सुमार्गेण गच्छतु।
  • भवान् दुर्गुणान् परित्यज्य सुमार्गेण गच्छतु।

उपसंहार

इस तरह से हमने क्त्वा और ल्यप् इन दोनों प्रत्ययों के विषय में समझने का प्रयत्न किया। क्त्वा – ल्यप् प्रत्ययों के कुछ भिन्न रूप भी कुछ – कुछ धातुओं में देखे जाते हैं। उनको समझने के लिए गहन अभ्यास की आवश्यकता होती है। तथापि हम उन रूपों का बार बार वाक्यों में अभ्यास कर के उनके स्वभाव को समझ सकते हैं। बहुत सारा वाचन करने से भी अच्छा अध्ययन होता है। अतः जहाँ से भी मिले, अभ्यास करते रहिए। पुस्तक पढ़ते समय किसी जगह पर क्त्वान्त अथवा ल्यबन्त रूप मिलते हैं, तो उन्हे अधोरेखित (अंडरलाईन) करते रहिए। इससे बहुत लाभ होता है।

धन्यवाद

10 thoughts on “क्त्वा – ल्यप् प्रत्यय। अर्थ-उदाहरण। Ktwa-Lyap Meaning – Examples”

  1. Thanks for this topic , my teacher forced to me to do it and I am doesn’t able to do this . Thank you again for your help .

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