मतुप् प्रत्यय क्या है?
जरा इन शब्दों को पढ़िए
- बुद्धिमान्
- शक्तिमान्
- भक्तिमान्
- श्रीमान्
- धीमान्
- नीतिमान्
- हनुमान्
- गतिमान्
और इन शब्दों को भी पढ़िए
- भगवान्
- धनवान्
- दयावान्
- अर्थवान्
- रूपवान्
- विद्यावान्
- ज्ञानवान्
- गुणवान्
और इन को भी
- बुद्धिमती
- शक्तिमती
- भक्तिमती
- श्रीमती
- भगवती
- धनवती
- रूपवती
- गर्भवती
- गुणवती
- मायावती
इन शब्दों को पढ़ने के बाद आप को इन शब्दों में क्या क्या विशेष नज़र आता है?
इन सभी पदों में गति, शक्ति, नीति, मति, ज्ञान, रूप, दया, गुण, श्री इत्यादि शब्दों से मान्, वान्, वती ऐसे प्रत्ययरूप लगे हुए हैं।
मान् वान् और वती ये प्रत्ययरूप हिन्दी, मराठी, बंगाली आदि भाषाओं सो सामान्य रूप से पाए जाते हैं। ये मतुप् इस संस्कृत प्रत्यय के रूप हैं।
मतुप् प्रत्यय संस्कृत का वीडिओ
इस वीडिओ के द्वारा मतुप् प्रत्यय के बारे में संक्षेप में जान लीजिए।
यदि आप विस्तार से मतुप् प्रत्यय के बारे में पढ़ना चाहते हैं, तो इस लेख को पढ़ना जारी रखिए।
मतुप् प्रत्यय का अर्थ
यहां हम देखेंगे की मतुप् प्रत्यय का प्रयोग संस्कृत भाषा में कहां होता है? इस के लिए हमें सर्वप्रथम मतुप् प्रत्यय का अर्थ जानना आवश्यक है।
मतुप् प्रत्यय का अर्थ महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी में इस प्रकार दिया है –
तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् ५।२।९४॥
इस सूत्र के अनुसार मतुप् प्रत्यय के दो अर्थ होते हैं –
१) …. अस्य अस्ति इति
अर्थात् = ….. इस का है वह
धनम् अस्ति अस्य इति धनवान् मनुष्यः
- धन इस का है वह धनवान् मनुष्य
२) ….. अस्मिन् अस्ति इति
अर्थात् = ….. इस में है वह
जलम् अस्ति अस्मिन् इति जलवान् घटः
- जल इस में है वह जलवान् मटका
मतुप् प्रत्यय की प्रक्रिया
इस अनुच्छेद में हम जानेंगे की मतुप् प्रत्यय का प्रयोग कैसे करते हैं? जब मतुप् प्रत्यय किसी प्राकृति से जुडता है, तो किस प्रकार की प्रक्रिया होती है….
मतुप् प्रत्यय का अनुबन्धलोप
यह प्रत्यय सामान्यतः मतुप् ऐसा लिखा जाता है। परन्तु वस्तुतः यह इस प्रत्यय का रूप – मतुँप् ऐसा है। अब हम इस का वर्णविग्रह करते हैं –
- म् + अ + त् + उँ + प् ।
इन पांच वर्णों में से उँ और प् का लोप हो जाता है।
- म् + अ + त् +
उँ+प्।
अब हमारे पास केवल तीन वर्ण बचते हैं।
- म् + अ + त्
अर्थात्
= मत्
कुल मिला कर देखा जाए तो मतुँप् इस प्रत्यय के नाम से शब्दों को केवल मत् ही लगाया जाता है। यानी मतुप् प्रत्यय का असली रूप है – मत्
- मतुँप् = मत्
मतुप् प्रत्यय का प्रयोग
अब तक हम ने देख लिया है कि यह प्रत्यय केवल नाम के लिए मतुँप् है। परन्तु साक्षात् प्रयोग के समय इसका अनुबन्धलोप हो कर केवल मत् इतना ही स्वरूप बचता है।
शक्ति इस में है वह
इस अर्थ में हमें अब मतुप् प्रत्यय का प्रयोग करना है। जैसे कि हमने पहले हे देख कि …. इस में है वह इस अर्थ में मतुप् प्रत्यय का प्रयोग होता है।
- शक्ति + इस में है वह …. मूल अर्थ
- शक्ति + मतुँप् …. मतुँप् प्रत्यय
- शक्ति + मत् …. मतुँप् प्रत्यय का अनुबन्धलोप
- शक्तिमत्
शक्तिमत्
अन्ततः हमें शक्तिमत् यह रूप मिला। यह एक प्रातिपदिक है। यानी अब किसी भी विभक्ति के साथ वाक्य में प्रयोग करने के लिए यह रूप तैयार है। तथा किसी भी अन्य पद के साथ इस का समास भी हो सकता है।
मतुँप् प्रत्यय के पुँल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग में रूप
चूँकि मतुँप्प्रत्यान्त शब्द एक प्रातिपदिक होता है, उसके पुँल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग में अलग-अलग रूप होते हैं तथा सम्बोधन सहित सातों विभक्तियों में भी अलग-अलग रूप होते हैं।
पुँल्लिंग में मतुप् के रूप
उपर्युक्त उदाहरण में हम ने देखा कि शक्ति इस में है वह इस अर्थ में शक्ति शब्द से मतुप् प्रत्यय हो कर शक्तिमत् शब्द बना।
परन्तु शक्तिमत् यह केवल प्रातिपदिक शब्द है। यह अभी पद नहीं बना है। पुँल्लिंग में इस के रूप इस प्रकार से बनते हैं –
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
शक्तिमान् | शक्तिमन्तौ | शक्तिमन्तः |
- शक्ति इस की है वह सैनिक।
- शक्तिमान् सैनिकः।
- शक्ति इन की है वे (दो) सैनिक।
- शक्तिमन्तौ सैनिकौ।
- शक्ति इन की है वे (सारे) सैनिक।
- शक्तिमन्तः सैनिकाः
स्त्रीलिंग में मतुप् के रूप
शक्तिमत् इस शब्द के स्त्रीलिंग रूप बनाने के लिए ङीप् इस प्रत्यय का उपयोग किया जाता है।
क्यों किया जाता है?
जैसे कि हमने पहले देखा है कि मतुप् प्रत्यय का मूल रूप मतुँप् ऐसा है। जिस में उँ यह स्वर मौजूद है। यह उँ स्वर अनुबन्धलोप के समय गायब हो जाता है। तब सम्भवतः आप लोगों के मन में प्रश्न आया होगा कि अगर इस उँ को जाना ही था, तो आया क्यों?
इस का उत्तर यह है कि –
उँ जाते जाते कुछ बाते बता कर जाता है।
केवल मतुँप् ही नहीं बल्कि और भी कुछ ऐसे प्रत्यय हैं जिन में ऐसा ही होता है। (जैसे कि शतृँ।) जिन प्रत्ययों में उँ आकर चला जाता है, उन प्रत्ययों का स्त्रीलिंग ङीप् प्रत्यय लगा कर (उगितश्च ४।१।६॥) होता है।
ङीप् प्रत्यय के भी अनुबन्धलोप में ङ् और प् का लोप (गायब) हो कर केवल ई बच जाता है।
- शक्तिमत् + स्त्री॰
- शक्तिमत् + ङीप् …. उगितश्च ४।१।६॥
- शक्तिमत् + ई …. ङीप् का अनुबन्धलोप।
- शक्तिमती
अब हमें विशेष बात यह समझनी है कि शक्तिमती यह शब्द ईकारान्त (दीर्घ ई) है। अतः इस के शेष रूप नदी शब्द जैसे होते हैं।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
शक्तिमती | शक्तिमत्यौ | शक्तिमत्यः |
- शक्ति इस की है वह सेना।
- शक्तिमती सेना।
- शक्ति इन की है वे (दो) सेनाएं।
- शक्तिमत्यौ सेने।
- शक्ति इन की है वे (सारी) सेनाएं।
- शक्तिमत्यः सेनाः।
नपुंसकलिंग में मतुप् के रूप
मतुबन्त प्रातिपदिक के नपुंसक रूप जगत् शब्द के अनुसार होते हैं।
शक्तिमत् शब्द के नपुंसक रूप
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
शक्तिमत् | शक्तिमती | शक्तिमन्ति |
- शक्ति इस की है वह सैन्य।
- शक्तिमत् सैन्यम्।
- शक्ति इन की है वे (दो) सैन्य।
- शक्तिमती सैन्ये।
- शक्ति इन की है वे (सारे) सैन्य।
- शक्तिमन्ति सैन्यानि।
इसी प्रकार से हम अन्य उदाहरण भी देख सकते हैं।
श्री + मतुँप् = श्रीमत्
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
पुँल्लिंग | श्रीमान् | श्रीमन्तौ | श्रीमन्तः |
स्त्रीलिंग | श्रीमती | श्रीमत्यौ | श्रीमत्यः |
नपुंसकलिंग | श्रीमत् | श्रीमती | श्रीमन्ति |
बुद्धि + मतुँप् = बुद्धिमत्
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
पुँल्लिंग | बुद्धिमान् | बुद्धिमन्तौ | बुद्धिमन्तः |
स्त्रीलिंग | बुद्धिमती | बुद्धिमत्यौ | बुद्धिमत्यः |
नपुंसकलिंग | बुद्धिमत् | बुद्धिमती | बुद्धिमन्ति |
मतुँप् में मत् का वत् कैसे होता है?
इन उदाहरणों को देखिए –
- भग इस का है वह – भगवान्
- धन इस का है वह – धनवान्
- दया इस में है वह – दयावान्
- रूप इस का है वह – रूपवान् (स्त्री॰ – रूपवती)
- गर्भ इस में है वह – गर्भवती (स्त्री॰)
- लक्ष्मी इस की है वह – लक्ष्मीवान्
इन उदाहरणों में मान् के स्थान पर वान् का प्रयोग किया गया है। ऐसा कब होता है?
नियम १
अंग का अन्तिम-वर्ण अथवा उपधा-वर्ण यदि अ, आ अथवा म् इन तीनों में से कोई एक हो, तो मतुँप् प्रत्यय के म् के स्थान पर व् यह आदेश होता है।
विशेषः टिप्पणीयाँ –
- अंग – जिस शब्द से प्रत्यय होता है उसे अंग कहते हैं। जैसे कि यहाँ हम मतुँप् प्रत्यय की बात कर रहे हैं। तो जिस शब्द से मतुप् प्रत्यय हो रहा है वह अंग है। उदा॰ – शक्तिमत् इस उदाहरण में मत् यह प्रत्यय शक्ति इस शब्द से हो रहा है। अतः यहाँ शक्ति यह अंग है।
- अन्तिमवर्ण – जिस शब्द से प्रत्यय हो रहा है उस का अन्तिम वर्ण। उदा॰ शक्तिमत् इस प्रातिपदिक में शक्ति यह अंग है। तो शक्ति इस शब्द का अन्तिम वर्ण है – इ।
- उपधावर्ण – किसी भी शब्द का उपान्त्य (second last letter) वर्ण को व्याकरण में उपधा कहते हैं। उदा॰ लक्ष्मीवान् इस शब्द में अंग है – लक्ष्मी। और लक्ष्मी इस अंग का उपधा-वर्ण है – म्। (ल् + अ + क् + ष् + म् + ई)
मत् के स्थान पर वत् के उदाहरण
अकारान्त अंग
- फल + मतुँप्
- फल + मत् …. मतुँप् का अनुबन्धलोप।
- फल + वत् …. फल इस अंग का अन्तिम वर्ण अ है। अतः म् के स्थान पर व्।
- फलवत्
- फलवान् वृक्षः। ….पुँल्लिंग में उदाहरण।
आकारान्त अंग
- दया + मतुँप्
- दया + मत् …. अनुबन्धलोप।
- दया + वत् …. दया इस अंग का अन्तिम वर्ण आ है।
- दयावत्
- दयावान् स्वामी। …. पुँ॰ में उदाहरण।
मकारान्त अंग
- प्रशाम् + मतुँप्
- प्रशाम् + मत्
- प्रशाम् + वत् …. प्रशाम् इस अंग का अन्तिम वर्ण म् है।
- प्रशांवत् …. अनुस्वार
- प्रशांवत्
- प्रशांवान् नायकः ….पुँ॰ में उदाहरण।
अकारोपध अंग
जिस अंग की उपधा (second last letter) अकार है वह – अकारोपध अंग
- सरस् + मतुँप्
- सरस् + मत्
- सरस् + वत् …. सरस् का उपधावर्ण अ है। (स् + अ + र् + अ + स्)
- सरस्वत्
- सरस्वती देवी। …. स्त्री॰ में उदाहरण।
आकारोपध अंग
जिस अंग की उपधा (second last letter) आकार है वह – आकारोपध अंग
- भास् + मतुँप्
- भास् + मत्
- भास् + वत् …. भास् इस अंग की उपधा आ यह स्वर है। (भ् + आ + स्)
- भास्वत्
- भास्वती नदी …. स्त्री॰ उदाहरण।
मकारोपध अंग
जिस अंग की उपधा (second last letter) मकार है वह – मकारोपध अंग
- लक्ष्मी + मतुँप्
- लक्ष्मी + मत्
- लक्ष्मी + वत् …. लक्ष्मी इस शब्द की उपधा म् यह वर्ण है। (ल् + अ + क् + ष् + म् + ई)
- लक्ष्मीवत्
- लक्ष्मीवान् विष्णुः। …. पुँ॰ उदाहरण।
ध्यान दीजिए – सामान्यतः शालेय छात्रों के लिए नियम १ ही पर्याप्त है। अर्थात् उनकी परीक्षा लिए। तथापि जिज्ञासु छात्र नियम २ पढ सकते हैं।
नियम २
यदि अंग का अन्तिम-वर्ण वर्गीय व्यंजनों से पहला, दूसरा, तीसरा अथवा चौथा व्यंजन हो, तो मतुँप् प्रत्यय के म् के स्थान पर व् आदेश होता है।
उदा॰
- विद्युत् + मत्
- विद्युत् + वत् …. अंग का अन्तिम वर्ण त् वर्गीय प्रथम वर्ण है।
- विद्युत्वत्
अपवाद
इस नियम को अपवाद (Exception) भी है
यवादि गण में मौजूद शब्दों के विषय में म् का व् नहीं होता है।
यवादि गण क्या है?
https://kakshakaumudi.in/गणपाठ/यवादि-गण
उदा॰
- गरुत् + मत् …. यहां अंग का अन्तिम वर्ण त् वर्गीयप्रथम वर्ण है। तथापि गरुत् यह शब्द यवादि गण में मौजूद है। अतः म् का व् नहीं होता है।
- गरुत्मत्
- गरुत्मान् पक्षी। …. गरुत् = पंख। गरुत्मान् पक्षी = पंख इस के हैं वह पक्षी
ध्यान रखिए – भलेही मत् के स्थान पर कभी कभी वत् हो जाता है। तथापि वतुँप् यह प्रत्यय नहीं है। प्रत्यय तो मतुँप् ही है। केवल उपर्युक्त दोनों नियमों से म् के स्थान पर व् यह आदेश हुआ है।
मतुप् प्रत्यय के उदाहरण
इस प्रकार से हम ने मतुँप् प्रत्यय के बारे में विस्तार से जानने का प्रयत्न किया है। अब हम कुछ उदाहरणों के मदद से मतुँप् प्रत्यय का अभ्यास कर रहे हैं।
गतिमत्
- गतिमत् यानं शीघ्रं नगरं गच्छति।
हनुमत्
- ॐ हं हनुमते नमः
शक्तिमत्
- शक्तिमान् योद्धा युद्धं करोति।
भक्तिमत्
- नृसिंहः भक्तिमन्तं प्रह्लादं रक्षति।
श्रीमत्
- श्रीमन्तः जनाः धर्मदानं कुर्युः।
भगवत्
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
रूपवत्
- राजा रूपवत्याः कन्यायाः सौन्दर्यं पश्यति।
गुणवत्
- गुणवन्तः छात्राः सफलाः भवन्ति।
गर्भवत्
- पतिः गर्भवत्याः पत्न्याः शुश्रुषां करोति।
प्रश्नः – प्रकृतिप्रत्ययौ मेलयत।
- (शक्ति + मतुप्) सैनिकः युध्यति।
- (शक्तिमत्) सैनिकः युध्यति।
- सैनिकः – पुँ॰। एक॰॥
- शक्तिमान् – पुँ॰। एक॰॥
- शक्तिमान् सैनिकः युध्यति।
- (शक्ति + मतुप्) सेना युध्यति
- (शक्तिमत्) सेना युध्यति।
- सेना = स्त्री॰।एक॰ = शक्तिमती
- शक्तिमती सेना युध्यति।
- (शक्ति + मतुप्) सैन्यं युध्यति।
- (शक्तिमत्) सैन्यं युध्यति।
- सैन्यम् = नपुं॰। एक॰ = शक्तिमत्
- शक्तिमत् सैन्यं युध्यति।
- (बुद्धि + मतुप्) बालकाः पठन्ति।
- (बुद्धिमत्) बालकाः पठन्ति।
- बालकाः = पुँ॰।बहु॰ = बुद्धिमन्तः
- बुद्धिमन्तः बालकाः पठन्ति।
- (बुद्धि + मतुप्) बालिकाः पठन्ति।
- (बुद्धिमत्) बालिकाः पठन्ति।
- बालिकाः = स्त्री॰। बहु॰ = बुद्धिमत्यः
- बुद्धिमत्यः बालिकाः पठन्ति।
- (बुद्धि + मतुप्) छात्राः पठन्ति।
- (बुद्धिमत्) छात्राः पठन्ति.
- छात्राः = पुँ॰। बहु॰ = बुद्धिमन्तः
- बुद्धिमन्तः छात्राः पठन्ति।
- मम कक्षायां पञ्च छात्राः सन्ति। ताः (बुद्धि + मतुप्) सन्ति।
- ताः (बुद्धिमत्) सन्ति।
- ताः = स्त्री॰। बहु॰ = बुद्धिमत्यः
- ताः बुद्धिमत्यः सन्ति।
- अहं (हनु + मतुप्) आञ्जनेयं नमामि।
- अहं (हनुमत्) आञ्जनेयं नमामि।
- आञ्जनेयम् = पुँ॰।एक॰।द्वितीया॰ = हनुमन्तम्
- अहं हनुमन्तम् आञ्जनेयं नमामि।
धन्यवादः
Wonderful explanation!!! किन्तु केन सूत्रेण वतुँप् इति परिवर्तनं भवति इत्यपि लेखितुं शक्यते वा ??
मादुपधायाश्च मतोर्वोऽयवादिभ्यः ८.२.९.
इत्यनेन सूत्रेण भवति।
Good sanskrit
विद्युत्वान् के स्थान मेँ विद्युद्वान् क्यूँ नहीँ होता?
क्योंकि जश्त्व सन्धि पद के अन्त में ही होता है।
और विद्युत् + मतुप् यहाँ त् पद के अन्त में नहीं है। अपितु पद के मध्य में है।
_/!\_
बहुत ही शानदार व्याख्या। एक-एक पद का विश्लेषण बहुत ही सूक्ष्म तरीके से किया गया है।
बहुत-बहुत आभार।
धन्यवाद।