अंग्रेजी, उर्दू और चीनी लिपि की तुलना में देवनागरी

देवनागरी लिपि

देवनागरी लिपि का प्रयोग संस्कृत, हिन्दी, मराठी, नेपाली इत्यादि भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता है। अर्थात् अब आप यह लेख जो पढ़ रहे हैं उस की भाषा तो हिन्दी है, परन्तु इस कि लिपि देवनागरी है। तथा गुजराती, बंगाली, पंजाबी लिपियाँ देवनागरी से मिलती जुलती हैं। और दक्षिणी लिपियों में भी कुछ-कुछ अंश समान मिलते हैं। हम मानते हैं कि
देवनागरी इस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ, सबसे शुद्ध और शास्त्रीय लिपि है।
हम ने ऊपर जो बाल बोली है उस को साबित करने के लिए हम सर्वप्रथम अंग्रेजी, उर्दू और चीनी लिपियों का परीक्षण कर रहे हैं।

देवनागरी लिपि की अन्य लिपियों से तुलना

चूंकि संस्कृत, हिन्दी, मराठी तथा नेपाली भाषाओं के लिए एक ही लिपि देवनागरी का प्रयोग होता है, इसीलिए यह लेख इन सभी भाषाओं के लिए उपयोगी है। और साथ ही साथ गुजराती, कन्नड, तेलुगु, बाग्ला आदि भाषाओं कि बस लिपियाँ अलग – अलग है किन्तु वर्णमाला तो एक समान ही है। अतः यह लेख सभी भारतीयों के लिए है। तथा स्पेलिंग की समस्या से ग्रस्त अंग्रेजों के लिए भी यह लेख उपयुक्त है। (यदि हिन्दी ना समझे तो गूगल से अनुवाद कर लें) पांच – छः हजार कांजी चिह्नों को याद रखने के कष्ट से पीडित चीनी तथा जापानी लोगों के लिए भी यह लेख बहुत उपयुक्त है। (पुनः वे अनुवाद कर ले।) हम विषय की शुरुआत करते हैं। आजकल के अधपढे लोग तो हिन्दी – मराठी को तक केवल दिखावे के लिए रोमन में लिख रहे हैं – Hme to english boht stylish lgt h.

तो चलिए सर्वप्रथम अंग्रेजी को ही देखते हैं –

अंग्रेजी (रोमन लिपि)

जैसे कि हम जानते हैं – अंग्रेजी लिखने के लिए रोमन वर्णमाला का प्रयोग होता है।

१. स्वर –

अंग्रेजी वर्णमाला में पांच स्वर हैं – a, e, i, o, u.
लेकिन ये जो स्वर हैं वे सब अंग्रेजी वर्णामाला के a से z तक के वर्णों में बिखरे पडे हैं। क्या किसी अंग्रेज विद्वान् को यह पता नहीं लगा की स्वरों की कुछ अपनी विशेषताएं होती हैं जिस वजह से बाकी व्यंजनों से वे अलग होते हैं। इन्हे अलग से निकाल कर अलग पंक्ति में रखना चाहिए। जैसे कि हमारी वर्णमाला में स्वर और व्यंजन अलग अलग दिखाई देते हैं वैसे अंग्रेजी में नहीं है। स्वर और व्यंजन ठीक उसी तरह बिखरे हुए हैं जैसे किसी खिचड़ी में दाल।

२. वर्णों की एक से ज्यादा ध्वनियाँ

अंग्रेज़ी वर्णमाला में वैसे तो कुल २६ वर्ण होते हैं। लेकिन ये किस वक्त कौन सी ध्वनि दे यह नहीं कहा जा सकता। यही अंग्रेजी कि सबसे बडी मुसीबत है कि एक वर्ण अनेक ध्वनियों के लिए होता है। अब उदाहरण के लिए – A – इस वर्ण को ही ले लीजिए। इसके उच्चारण – About, All, Any इन तीनों शब्दों में अलग अलग है। ठीक इसी b से z तक ज्यादातर वर्णों का यही मामला है कि कब किस शब्द का उच्चार कैसे करना है इसे खुदबखुद जानना मुश्किल होता है।

इस बारे में एक मजेदार बात बताई जाती है। यह एक प्रसिद्ध उदाहरण है।

अब बताइए इस शब्द को कैसे पढ़ना चाहिए –

Ghoti

ज्यादातर लोग  इसे घोती या घोटी ऐसा कुछ पढेगे। परन्तु यदि इसे –

फिश (Fish)

ऐसे पढा जाए तो? हाँ, Ghoti = Fish. इस बात को साबित भी किया जा सकता है।
देखिए –

  • Enough
    • gh – फ् – f
  • Women
    • o – इ – i
  • Nation
    • ti – श् – sh

इस तरह से इन तीनों को मिला कर Ghoti यह शब्द Fish इस तरह से पढा जा सकता है।
है ना गोलमाल?

३. दिखाया कुछ – दिया कुछ

H यह अंग्रेजी वर्णमाला का एक बहुप्रतिष्ठित वर्ण है। ज्यादातर वाक्यों में इसकी मौजूदगी होती ही है। लेकिन इस में मजे की बात देखिए।
H इस वर्ण को – एच् ऐसे पढा जाता है। लेकिन यह ध्वनि देता है – ह् इस वर्ण की। यानी दिखाया एच् और दिया ह्।
कमाल है।
इसके साथ C भी है।
C इस वर्ण का उच्चार – सी ऐसे किया जाता है। और कई बार यह शब्द स् की ध्वनि भी देता है। लेकिन बहुत बार क् की भी ध्वनि देता है। जैसे कि – Cat, Canon, Cut इत्यादि।

४. लिखने मेें और पढने में अन्तर

जैसे कि साफ जाहिर है। अंग्रेजी पढना एक टेढी खीर इसलिए है क्योंकि इस में जो लिखा जाता है, वह पढा नहीं जाता। और जो बोला जाता है वह लिखा नहीं जाता। उदाहरण के लिए –

  • Chemistry – केमिस्ट्री
  • Chessboard – चेसबोर्ड

इन दोनों शब्दों में Che यह वर्णसमूह सामान्य है। तथापि दोनों शब्दों में इसे भिन्न भिन्न तरह से पढा जाता है।
अब एक अलग तरह का उदाहरण देखिए। यहाँ एक ही उच्चार के लिए दो अलग अलग वर्ण हैं।

  • Put – पुट
  • Look – लुक

इस उदाहरण में  इस स्वर के लिए दो अलग तरह से लिखा गया है।

५. अनुच्चारित वर्ण

यह तो हद है भई। लिखा है। लेकिन पढना नहीं है।

  • Psychology
  • Half
  • Hour

इन शब्दों में एक एक वर्ण अनुच्चारित है। यानी उसे लिखा है लेकिन पढना नहीं है। तो लिखा क्यों?

एक मजेदार बात बताता हूँ।

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेडुलकर का नाम तो सब जानते हैं। सचिन इस नाम को अंग्रेजी में – Sachin ऐसा लिखा जाता है। लेकिन कभी भी किसी अंग्रेजी समालोचक (कॉमेंटेटर) ने सचिन को सचिन कहा है?
नहीं।
हमेशा – सॅचन या फिर सॅचाईन ऐसा ही अंग्रेज लोग Sachin को पढते हैं। अगर आपको अंग्रेजों से सचिन ऐसा ही बुलवाना है तो आप को Suchen ऐसा लिखना होगा। तो संभवतः मुमकिन है कि कोई अंग्रेज सचिन ऐसा कुछ उच्चार कर पाए। लेकिन बात तो फिर भी बिगडनी ही है। क्योंकि यहाँ भारत में उस का सुचेन बना जाएगा।

मुझे लगता है कि इन अंग्रेजी स्पेलिंग, लिखने पढने के दिमागखाऊ ढंग की वजह से हमारे करोडो हिन्दुस्तानियों की जिन्दगी खराब हुई है। हमारे बच्चों ने यदि अंग्रेजी के हजारो शब्दों के स्पेलिंग रटने में अपने दिमाग की कीमती जगह और वक्त बरबाद नहीं किया होता और उसी जगह कोई ढंग का काम सीखते तो शायद यह बेहतर होता।
अब इसका मतलब यह कतई नहीं है कि अंग्रेजी सीखनी नहीं है। लेकिन अंग्रेजी स्कूल में अनिवार्य (कम्पलसरी) नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन स्कूली शिक्षा में अंग्रेजी अनिवार्य करने से बहुत से होशियार और अक्लमन्द विद्यार्थी स्कूल छोडने पर मज़बूर हुए। जो आगे चल कर अच्छे वैज्ञानिक या कोई और काबिल इन्सान बन पाते।
क्या आप बता सकते हैं कि हम हिन्दुस्तानी लोग जुगाड़ करने में इतने माहिर क्यों हैं?
क्यों कि अच्छे वैज्ञानिक बनने की योग्याता रखने वाले छात्रों को स्कूली शिक्षा पल्ले नहीं पडी। (इस में अंग्रेजी का बहुत बडा हाथ है।) मैं ने हमेशा ऐसे जुगाडू लोगों में बदनसीब वैज्ञानिकों को देखा है जो ज्ञान हासिल नहीं कर पाए और उनकी बुद्धि मिट्टी में मिल गई।

उर्दू

बहुत से लोग उर्दू को देख कर इस बारे में नाखुश होते हैं कि उर्दू को उलटा लिखा जाता है। लेकिन मेरी दृष्टि से यह नाराजगी का मुद्दा बिल्कुल भी नहीं है। क्योंकि हम भी तो उर्दू की नजर में उलटे हैं। उलटा या सीधा – यह बात सापेक्ष है। दुनिया में कुछ भाषाएं तो ऊपर से नीचे भी लिखी जाती है। कोई भी भाषा हो, वह चाहे ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर, दाएं या बाएं कैसे भी लिखी जाए इस बात से कोई भी फर्क नहीं पडता। बशर्ते जो कुछ भी लिखा गया हो उसे पढने वाला वहीं पढे जो लिखने वाले ने लिखते समय सोचा था। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि दुनिया कि ज्यादातर भाषाएं ऐसी नहीं होती है। लिखना और पढना हम हिन्दुस्तानीयों के लिए जितना आसान है उतना शायद ही किसी और लोगों के सौभाग्य में हो। फिर भी हमारे लोग जब मात्राओं के नाम पर नाक मरोडने लगते हैं तब अफसोस होता है।

अस्तु। हम उर्दू लिपि के बारे में बात कर रहे थे। दरअसल उर्दू की लिखावट मुझे पसन्द भी है। यह अंग्रेजी से ज्यादा अच्छी है। अगर लिखने वाला चाहे, तो वह सही लिख सकता है। लेकिन यही तो परेशानी है यहाँ – चाहे तो। इस लेख को पढते रहिए बात समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं।

१. लिखते समय वर्णों का दूसरा रूप।

जरा ध्यान से देखिए इस उर्दू वर्णमाला को –
उर्दू वर्णमाला
अब आप किसी भी उर्दू लेख को देख कर उपर्युक्त वर्णों को ढूंडने का प्रयत्न कीजिए। उदाहरण में कुछ उर्दू वाक्य लिख रहा हूँ।
  • . میرا نام مدھوکر ہے
  • .میں ایک استاد ہوں
  • .میں ہر دن بچوں کو سکھاتا ہوں
मुझे यकीन है कि बहुत मुश्किल से आप कुछ ही वर्णों के ढूंडने में सफल रहे होगे। इस के पीछे की वजह यह है कि वर्णमाला में वर्ण जैसे दिखते हैं ठीक वैसे के वैसे नहीं लिखे जाते हैं।

२. शब्दों में अन्तर समझने में कठिनाई।

मैं एक उर्दू वाक्य लिख रहा हूँ।

میرا نام مدھوکر ہے

अब इस वाक्य को मैं ने स्वयं लिखा है। इसे ऐसे पढा जाना चाहिए –

मेरा नाम मधुकर है।

चूँकि प्रस्तुत उर्दू वाक्य का लेखक अस्मादिक ही हैं। अतः मैं इसे सही तरह से पढ सकता हूँ। लेकिन कोई अन्य व्यक्ति इसे इस तरह भी पढ सकती है –

मीर अनाम मद हूकर है।

इसके पीछे कारण यह है कि बहुत बार उर्दू में किस शब्द को कहाँ से तोडना है इस को समझना कठिन हो जाता है। हम लोग इसी वजह से हर शब्द के ऊपर एक शिरोरेखा लिखते हैं। इस शिरोरेखा की वजह से कौन सा शब्द कहाँ शुरू होता है और कहाँ खत्म होता है यह बात समझने में आसानी होती है। शिरोरेखा के ना होने से हिन्दी लेख गुजराती जैसे दिखने लगता है। हलांकि इस स्थिति में भी ठीक ठीक अन्तर रखा जाता है। (मैं ने कुछ छात्रों को शिरोरेखा लिखने में आलस करते हुए देखा है। जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह हमारी लिपि का एक महत्त्वपूर्ण वैशिष्ट्य है।) 
हालांकि अंग्रेजी में भी शिरोरेखा या अधोरेखा जैसी कोई बात नहीं होती है। लेकिन अंग्रेजी में कम से कम इतना तो समझ जाता है कि कौन सा शब्द कहाँ शुरू हुआ है और कहाँ खत्म हुआ है। हालांकि उर्दू शब्दों में भी अन्तर (Space) रखा जाता है। तथापि लेकिन उर्दू में इस बात को समझना एक टेढी खीर है।
शब्दों को अलग अलग करना तो कठिन है कि कभी कभी तो एक ही शब्द के दो टुकडे भी हो सकते हैं। उन्हे देख कर ऐसा लगता है जैसे कि दो अलग अलग शब्द हो। उस बात को साबित करने के लिए एक प्रसिद्ध उदाहरण दे रहा हूँ। हम में से ज्यादातर लोगों ने बचपन में शक्तिमान् यह दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली धारावाहिनी तो देखी ही होगी। यदि समय हो तो यूट्यूब पर देख लीजिए। उस की शुरुआत में शक्तिमान यह नाम हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी में लिख कर आया करता था। अब इस बात को तो हम जानते ही हैं कि शक्तिमान यह एक शब्द है और इस शब्द से किसी एक ही वस्तु का बोध होता है। लेकिन उर्दू में कुछ इस तरह का शब्द लिख कर आया करता था –

شکتی مان

यहाँ शक्ती मान ऐसा लिखा है। अर्थात् यह है एक शब्द लेकिन लिखा है दो शब्दों में तोड कर। क्या हम यहाँ शक्ती और मान ऐसी दो व्यक्तियों के बारे में बात कर रहे हैं? शक्ति इस शब्द की मात्रा भी – शक्ती ऐसी गलत लिखी है।
कमाल है।

३. एक जैसे उच्चार के लिए अनेक चिह्न

हम लोग श् और ष् को लेकर बहुत परेशान होते हैं। कभी कभी ण् और न् को लेकर भी। लेकिन यकीन कीजिए मित्रों हम इस मामले में बहुत सौभाग्यशाली हैं। क्योंकि हमें बस दो जोडियों से ही जूझना पडता है। (दरअसल उस में भी श् – ष् और ण् – न् बिल्कुल अलग उच्चार वाले हैं। उनके उच्चारण का स्थान भी भिन्न है।) परन्तु उर्दू में इस बारे में बहुत से वर्णों का ध्यान रखना पडता है।
    • آدمی – आदमी
    • عورت – औरत

इन दोनों शब्दों में है। लेकिन आदमी वाला अ – ا – ऐसा है। और औरत वाला अ – ع – ऐसा है। यहाँ एक और परेशानी है। आ की मात्रा के लिए भी इन दोनों का ही प्रयोग किया जाता है। अब हमें तो पता है की हर दूसरे – तीसरे शब्द में आ की मात्रा होती है। हर वक्त इस बारे में सोचना पडता है कि मात्रा – ا – से देनी है या – ع – से।

  • क्
    • سڑک  – सड़क
    • بندوق – संदूक

इन दोनों भी शब्दों में क् है। सडक वाला क् – ک। संदूक वाला क् – ق।

    • عورت – औरत
    • غلط – गलत

औरत वाला त् – ت। गलत वाला त् – ط।

    • ڈر – डर
    • لڑکا – लडका

डर वाला ड् – ڈ। लडका वाला ड् -ڑ।

    • غلط – गलत
    • آگ – आग

गलत वाला ग् – غ। आग वाला ग् – گ।

अब तक तो सारे उदाहरण दो दो की जोडियों वाले ही थे। अब एक ही ध्वनि के लिए दो से ज्यादा चिह्न भी देख लीजिए।
    • اکثر – अक्सर
    • سرکار – सरकार
    • اصلی – असली

अक्सर वाला स् – ث। सरकार वाला स् – س।
असली वाला स् – ص। (असली का मतबल असली इस शब्द में जिसक प्रयोग होता है वह। उर्दू के लिए तो तीनों भी असली ही है।)


  • अब तीन भी कम हो गए थे। चार भी कम। यदि आप उर्दू लिख रहे हैं और ज् वाला कोई शब्द लिखने का काम पड जाए। तो …….. ईश्वर से प्रार्थना करनी होगी कि कोई गलती ना हो जाए। क्यों कि यहाँ ५ प्रकार के ज् होते हैं।

    • آج – आज
    • ذاکر  – जाकिर
    • مرکز – मरकज
    • ضروری – जरूरी
    • نظر – नजर

आज वाला ज् – ج। जाकिर वाला ज् – ذ।

मरकज वाला ज् – ز। जरूरी वाला ज् – ض।
नजर वाला ज् – ظ।
यहाँ एक बात का स्वीकार किया जा सकता है कि के दो प्रकार हो सकते हैं। तालव्य तथा दन्ततालव्य। लेकिन पांच प्रकार हजम होना कठिन बात है।

फौरन, मसलन, जबरन इत्यादि

ऊपर लिखे जितने भी चिह्न हैं वे कम-अज़-कम उर्दू वर्णमाला में तो हैं। लेकिन फौरन इत्यादि शब्दों में जो है उस के लिए जो चिह्न हैं वह तो वर्णमाला मे भी नहीं है।
दर असल न् इस व्यंजन के लिए उर्दू में – ن  – यह चिह्न है। लेकिन जरा देखिए इन फौरनादि शब्दों को –

  • فوراً – फौरन
  • مثلاً – मसलन
  • جبراً – जबरन
  • یقیناً – यकीनन
परन्तु इन सभी शब्दों में देखा जा सकता है कि न के लिए – اً – इस चिह्न का प्रयोग हुआ है। जो कि उर्दू वर्णमाला में नहीं है।

४. मात्राचिह्नों को प्रायः नहीं लिखा जाता है।

हम ने शुरुआत में ही कहा था कि यदि उर्दू लिखने वाला चाहे तो सही तरह से लिख सकता है। लेकिन ज्यादातर समय ऐसा नहीं होता है। अलग अलग स्वरों के जो मात्रा चिह्न होते हैं उनको लिखने में आलस किया जाता है। जिस वहज से लिखना तो आसान है। लेकिन पढना कठिन बन जाता है।
उदाहरण देखिए –

  • اس इस शब्द को तीन तरह से पढा जाता है।
    • अस
    • उस
    • इस

इन तीनों में से कौन सा सही है इसे समझने के लिए पूरा वाक्य पढना पडता है। अगर लिखने वाला चाहे तो सही ऐराब की मदद से इन्हे सही तरीके से लिख सकता है। परन्तु ज्यादातर लिखते ही नहीं है।

ठीक इसी तरह यह शब्द भी हैं –

  • اور
    • और
    • ओर
    • ऊर
    • अवर
  • ہے
    • हे
    • है
  • میں
    • मैं
    • में

अगर आप को मेरी बात पर विश्वास नहीं है, तो गूगल अनुवाद पर इस बात की पुष्टि की जा सकती है। आप हिन्दी में – मैं गांव में हूँ। इस वाक्य का उर्दू अनुवाद देख सकते हैं। क्या उर्दू विद्वान मैं और में इन दोनों पदों में अन्तर नहीं मानते?

चीनी भाषा की कांजी लिपि

अगर लिपि के मामले में सबसे कठिन भाषा अगर कोई होगी तो वह है चीनी भाषा। चीनी भाषा को लिखने के लिए कांजी लिपि का प्रयोग किया जाता है। यह एक चित्रलिपि है। अर्थात् वस्तुओं को उनके नामों से नहीं लिखा जाता। अपितु उनके चिह्न बने हैं।

प्राचीन चीन में जब लिखने का प्रयत्न किया गया, तो मुंह से निकलने वाली ध्वनियों को एकत्रित कर उनकी वर्णमाला बनाने के अलावा चीनी लोगों ने अलग तरीका अपनाया। चीनी लोगों ने वस्तुओं के नाम नहीं लिखे। उन्होंने वस्तुओं के साक्षात् चित्र ही बानाए और उन चित्रों को ही लिपि बना लिया। इस का एक लाभ यह हुआ कि यदि कोई उनकी भाषा भी ना जाने, तो भी वह उनकी लिपि से पढ कर बात समझ सकेगा। क्योंकि लिखा हुआ लेख शब्दों में नहीं होता था। वह तो चित्रों मे होता था। और चित्रों को समझने में भाषा की ज़रूरत नहीं होती। यह तो मज़ेदार बात है कि आप बाते करने लगे तो नहीं समझेगा। लेकिन लिखा तो समझ सकते हैं। यही वजह है कि जापानी लोग भी चीनी अखबार को लगभग – लगभग समझ सकते हैं। क्योंकि कांजी का प्रयोग जापानी लिखने में भी एक तरह से होता है। लेकिन उसी अखबार को कोई चीनी मनुष्य पढे तो उसके मुँह से अलग ही ध्वनि उत्पन्न होगी और जापानी मनुष्य उस अखबार की कांजी को पढेगा तो अलग ध्वनी होगी। क्योंकि दोनो भाषाएं अलग अलग हैं।

यदि अभी भी विषय समझने में कठिनाई हो तो विस्तार से समझाने का प्रयत्न करता हूँ।
इस चित्र को देखिए। इस चित्र में गाय को व्यक्त करने वाली –

इस चित्र से अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह से चित्रों से आज के चीनी लिपि कांजी के चिह्न बने होगे। कुछ और उदाहरण देखिए –

  • 上 – ऊपर
  • 下 – नीचे
  • 木 – वृक्ष
  • 森林 – वन
  • 山 – पर्वत
ऊपर लिखे कांजी चिह्नों का उच्चार चीन – जापान में अलग अलग किया जा सकता है। लेकिन अर्थ नहीं बदलेगा। उदाहरण –

इस चिह्न का अर्थ पर्वत है। लेकिन इसे चीन में शान् पढा जाएगा। और जापान में यामा। आप ने फुजियामा पर्वत (वही ज्वालामुखी वाला पर्वत, जो जापान में है।)  के बारे में तो पढा ही होगा। इसे कांजी में ऐसे लिखते हैं –

藤山

इसे चीन में हंगशान् पढते हैं और जापान में फुजियामा।

इस उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि एक ही कांजी में अनेकों भाषाएं लिखी जा सकती हैं। भलेही पढने वाले उसे अलग – अलग नामों से पढे। यदि आप हिन्दी को भी कांजी में लिखना चाहे तो लिख सकते हैं। लेकिन आप ने लिखा हुआ लेख चीनी या जापानी मनुष्य पढेगा तो आप नहीं समझ पाएगे। परन्तु उस पढने वाले को समझ जाएगा कि आप को क्या कहना है।
दुनिया की कठिनतम भाषाओं में से एक मानी जाती है चीनी भाषा। एक सामान्य चीनी व्यक्ति को ३००० से ४००० चिह्नों को याद रखना पडता है। एक अच्छे पढे लिखे चीनी मनुष्य को ९००० से १०,००० तक चिह्नों को ध्यान में रखना पडता है। पता नहीं चीनी लोग टंकन (टाईपिंग) कैसे करते होगे। और हमें तो लिखने के लिए केवल अ से ज्ञ तक वर्णमाला और मात्राएं पर्याप्त होती हैं। किंचित् विचार कीजिए। चीनी की तुलना में अंग्रेजी के हिज्जे (स्पेलिंग) याद रखना ज्यादा आसान है।

मेरी बात

मेरा मानना है कि हर एक भाषा अपने स्थान पर अद्वितीय होती है।  उसका अपना सौन्दर्य होता है। और अपनी भाषा पर भाषापुत्रों को गर्व होता है। हालांकि उस का व्यावहारिक महत्त्व कम ज्यादा हो सकता है। उदाहरण के लिए आज अंग्रेजी भाषा का व्यावहारिक महत्त्व ऊँचे स्तर पर है। लेकिन क्या कोई इस बात की पुष्टि कर सकता है कि यह स्थिति चिरकाल के लिए है। कल यदि चीन महासत्ता बने तो हमें मजबूरन चीनी भाषा पढना अनिवार्य हो सकता है। जरा सोचे की भारतीयों ने पराक्रम से दुनिया में भारत को महासत्ता बनाया है। उस स्थिति में क्या होगा? जैसे हमें आज टाई पहननी पडती है वैसे उस वक्त अंग्रेजों को नौकरी पाने के लिए कुर्ता पहनना पडेगा।
मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि मैं ने केवल दोष ही दिखाए। इन लिपियों के अनेक पक्षधर हमें समाज में मिल सकते हैं। जिज्ञासु लोग उन से गुणों की भी चर्चा कर सकते हैं। लेकिन हमें हमारी लिपि का गौरव करना था। क्योंकि आज इस बात की जरूरत है। बहुत सारे हिन्दुस्तानी लोग अपनी भाषा, लिपि को गया गुजरा मानते हैं। खास उन के लिए यह लेख है। आप से अनुरोध है कि इस लेख को उन सभी तक पहुँचाएं जो अपना स्वाभिमान खोते जा रहे हैं।

धन्यवाद

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मित्रों, हमने क्रमशः अंग्रेजी, उर्दू और चीनी लिपि को देखा। इस विषय को हम ने वीडिओ के द्वारा भी समझाने का प्रयत्न किया है।
यह रही उस की कड़ी –

इन लिपियों की तुलना में देवनागरी लिपि की श्रेष्ठता को व्यक्त करने के लिए एक अलग लेख लिख रहा हूँ। लिखना पूरा होने के बाद यहाँ उसकी भी कडी रखी जाएगी। आप कक्षा कौमुदी के साथ बने रहिए।

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