हमारी संस्कृत वर्णमाला में स्वर और व्यंजन ऐसे दो स्पष्ट विभाग दिखते हैं। इन में से स्वरों के तीन प्रकार हैं – ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत। निम्न कारिका में तीनों प्रकार के स्वरों के और व्यंजनों के काल के बारे में जानकारी मिलती है।
कारिका
एकमात्रो भवेद्ध्रस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते।
त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयः व्यञ्जनं त्वर्धमात्रिकम् ॥
कारिका का पदच्छेद
एकमात्रः भवेत् ह्रस्वः द्विमात्रः दीर्घः उच्यते।
त्रिमात्रः तु प्लुतः ज्ञेयः व्यञ्जनं तु अर्धमात्रिकम्॥
कारिका का अन्वय
ह्रस्वः एकमात्रः भवेत्। द्विमात्रः दीर्घः उच्यते। त्रिमात्रः तु प्लुतः ज्ञेयः। व्यञ्जनं तु अर्धमात्रिकं (भवेत्।)
कारिका का हिन्दी अर्थ
ह्रस्व (स्वर) एक मात्रा का होता है। दो मात्राओँ वाला स्वर दीर्घ कहलाता है। तीन मात्राओं वाला (स्वर) तो प्लुत (नाम से) जाना जाए। (और) व्यंजन तो अर्धमात्रावाला होता है।
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार से हम उपर्युक्त कारिका का अर्थ समझने का प्रयत्न करते हैं।
मात्रा किसे कहते हैं?
जिस प्रकार आज समय की गिनती करने के लिए सेकेंड, मिनट इत्यादि एकक (यूनिट) हैं उस ही प्रकार से पुराने काल में मात्रा से समय को नापते थे।
एक मात्र के काल में कई सारे मतभेद हैं। कुछ विद्वान् कहते हैं कि पलक झपकने में जितना समय लगता हो वह समय एक मात्रा का समय है। कुछ विद्वान् कहते हैं कि सौ कमल के फूलों के पकड़ियों को एक के ऊपर एक को रखा जाए और उस में से सुई को चुभाने पर उस सुई को पार कराने में जितना समय लगता है उस को एक मात्रा कहते हैं।
ह्रस्व स्वर
जिस स्वर का उच्चारण एक मात्रा जितने काल में हो जाए उस स्वर को ह्रस्व स्वर कहते हैं।
ह्रस्व स्वर पांच हैं – अ, इ, उ, ऋ और ऌ।
दीर्घ स्वर
जिस स्वर के उच्चारण के लिए दो मात्राओं का काल लग जाता है उसे दीर्घ स्वर कहते हैं।
दीर्घ स्वर आठ हैं – आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ।
प्लुत स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण के लिए तीन मात्राओं का काल लगता हैं उन को प्लुत स्वर कहते हैं।
प्लुत स्वर नौ हैं – अ३, इ३, उ३, ऋ३, ऌ३, ए३, ऐ३, ओ३, औ३।
व्यंजनों का उच्चारण काल
व्यंजनों का काल अर्ध मात्रा कहा गया है। यानी व्यंजनों का उच्चारण करने के लिए आधी मात्रा जितना ही समय लगता है।