वर्णों के उच्चारण स्थान
हमारी वर्णमाला में जितने भी वर्ण हैं वे सब हमारे मुख के द्वारा उच्चरित किए जाते हैं। परंतु हमारे मुंह के अंदर भी बहुत सारे छोटे-छोटे हिस्से होते हैं जो कि वर्णों का उच्चारण करने के लिए मदद करते हैं।
हमारी वर्णमाला की रचना वर्णों के उच्चारण स्थान के अनुरूप की गई है तथा संधि प्रकरण को समझने के लिए वर्णों के उच्चारण स्थान की भी जानकारी होनी जरूरी है।
इस आकृति में हमारे मानवीय मुख के क्षैतिज छेद की आकृति के द्वारा उच्चारण स्थान दिखाए गए हैं।

उच्चारस्थानानि
कुछ-कुछ वर्णों के स्वतंत्र उच्चारण स्थान होते हैं। परंतु कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान संयुक्त भी हो सकते हैं। अर्थात कुछ-कुछ वर्णों का उच्चारण करने के लिए दो स्थानों की जरूरत होती है। हम क्रमशः इन सभी का अध्ययन कर रहे हैं।
१. कण्ठः
कण्ठ यानी गला। कण्ठ से उच्चारित वर्णों को कण्ठ्य वर्ण कहा जाता है। कंठ और कण्ठ्य इन दोनों में अंतर है।
कंठ एक उच्चारण स्थान है तथा कण्ठ्य उन वर्णों का नाम है जिन का उच्चारण कंठ से होता है।
निम्न वर्ण कण्ठ्य वर्ण माने जाते हैं -
स्वर - अ। आ॥
वर्गीय व्यंजन - क्। ख्। ग्। घ्। ङ्॥
अवर्गीय व्यंजन - ह्।
अयोगवाह - विसर्ग।
२. तालु
हमारे दांतो से ठीक ऊपर एक खुरदरा हिस्सा हमारे जीभ को महसूस हो सकता है। उस खुरदरे हिस्से को तालु कहते हैं। जिन वर्णों का उच्चारण स्थान तालु होता है उनको तालव्य वर्ण कहा जाता है।
निम्न वर्ण तालव्य वर्ण माने जाते हैं -
स्वर - इ।ई॥
वर्गीय व्यंजन - च्।छ्। ज्। झ्। ञ्॥
अवर्गीय व्यंजन - य्। श्॥
३. मूर्धा
यदि हमारी जीभ को बिल्कुल टेढ़ा करके तालु से भी ऊपर लेने के बाद एक मुलायम सा हिस्सा महसूस होता है। उसे ही मूर्धा कहते हैं। मूर्धा से उच्चारित वर्णों को मूर्धन्य वर्ण कहते हैं।
निम्न वर्णों को मूर्धन्य वर्ण कहा जाता है -
स्वर - ऋ। ॠ॥
वर्गीय व्यंजन - ट्। ठ्। ड्। ढ्। ण्॥
अवर्गीय व्यंजन - र्। ष्॥
४. दन्ताः
दंत अर्थात दांत। जिन वर्णों का उच्चारण दांतो से जीभ लगाकर किया जाता है उन वर्णों को दन्त्य वर्ण कहा जाता है।
निम्न वर्ण दन्त्य वर्ण माने जाते हैं।
स्वर - ऌ। ॡ॥
वर्गीय व्यंजन - त्। थ्। द्। ध्। न्॥
अवर्गीय व्यंजन - ल्। स्॥
५. ओष्ठौ
जिन वर्णों का उच्चारण करने के लिए हमारे दोनों भी ओष्ठ मिलने जरूरी होते हैं वे वर्ण ओष्ठ्य वर्ण होते हैं।
निम्न वर्णों को ओष्ठ्य माना जाता है -
स्वर - उ। ऊ॥
वर्गीय व्यंजन - प्। फ्। ब्। भ्। म्॥
अयोगवाह - उपध्मानीय विसर्ग (उपध्मानीय विसर्ग किसे करते हैं? यहां क्लिक करें।)
६. नासिका
नासिका इस शब्द का अर्थ होता है नाक। हालांकि मात्र नाक से ही कोई भी वरना उत्पन्न नहीं होता है। उपर्युक्त कण्ठताल्वादि पांच स्थान जो बताए गए हैं, उन से उच्चारित किए जाने वाले वनों में से कुछ वर्ण ऐसे होते हैं जिनका उच्चारण करने के लिए कण्ठताल्वादि के साथ-साथ नासिका यानी नाक की भी जरूरत होती है।
हमारी वर्णमाला में जो वर्गीय व्यंजनों का विभाग है उन वर्गीय व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का पांचवा व्यंजन अपने वर्ग के उच्चारण स्थान के साथ-साथ उच्चारित होने के लिए नासिक का की भी मदद लेता है। उन्हें अनुनासिक वर्ण कहा जाता है।
वर्णमाला में अनुनासिक वर्ण पांच हैं - ङ्। ञ्। ण्। न्। म्॥
कुछ वर्णों को उच्चारित करने के लिए एक से ज्यादा स्थानों की जरूरत होती है।
- कण्ठतालु - ए। ऐ॥
गुणसन्धि के नियम के अनुसार - अ + इ = ए। यदि ए यह स्वर अ तथा इ के मिश्रण से बना है तो जाहिर है कि अ तथा इ का संयुक्त उच्चारस्थान ए का होगा। अ का कण्ठ तथा इ का तालु। अतः ए का उच्चार स्थान है कण्ठतालु। ऐ का भी कण्ठतालु ही होगा।
- कण्ठौष्ठम् - ओ। औ॥
अ + उ = ओ। अ का उच्चारस्थान कण्ठ है। तथा उ का ओष्ठ है। अतः अ और उ से बने ओ का स्थान कण्ठोष्ठ है।
- दन्तोष्ठम् - व्।
व् का उच्चार करने के लिए ओष्ठों के साथ साथ हमारी जीभ किंचित् दांतों की तरफ मुखातिब होती है। अतः व् का उच्चारस्थान दन्तोष्ठ है।
- हम जानते ही हैं कि अनुनासिक व्यंजन अपने वर्ग के उच्चारण स्थान के साथ-साथ नासिका की भी मदद लेते हैं। इसलिए अनुनासिक व्यंजनों के दो उच्चारण स्थान होते हैं।
इस तालिका के मदद से वर्णों के उच्चारण स्थान समझने में आसानी हो सकती है। इस कोष्टक में वर्णों के उच्चारस्थानों के साथ साथ वर्णों का मृदु-कठोरभेद भी दिखाया गया है। सन्धिप्रकरण पढने के लिए यह कोष्ठक बहुत उपयोगी है। अतः छात्रों को इस कोष्ठक को कण्ठस्थ करना चाहिए।

वर्णों के उच्चार स्थान तथा मृदु व कठोर वर्ण
हम ने वर्णों के उच्चारण स्थान इस विषय को ज्यादा से ज्यादा सरल भाषा में समझाने का प्रयत्न किया है। हमें आशा है कि आप को उपर्युक्त विषय समझ गया होगा। तथापि श्राव्य रूप में इस विषय का यूट्यूब पर वीडिओ मौजूद है।
वीडिओ
उपर्युक्त विषय को वीडिओ के माध्यम से समझने के लिए निम्न कडी पर क्लिक कीजिए।