ज़्यादातर दाक्षिणात्य भाषाओं में ळ यह व्यंजन देखा जाता है। लेकिन जहा तक संस्कृत की बात करते हैं तो किंचित् सोचना पडता है।
वेद संस्कृत के प्राचीनतम साहित्य हैं। और ऋग्वेद की शुरआत में ही – ओ३म् अग्निमीळे पुरोहितम् …. इस तरह से पहले मन्त्र में ळ का प्रयोग (अर्थात्, बाद में भी बहुत बार) किया गया है। इस से हमे शंका होती है कि क्या संस्कृत वर्णमाला में ळ का समावेश है?
जैसे की हमने पहले ही स्पष्ट किया है कि यह लेख हम शालेय छात्रों के लिए लिख रहे हैं, तो शालेय दृष्टि से देखना पड़ेगा। देखिए संस्कृत के भी दो प्रकार हैं –
- वैदिक संस्कृत
- लौकिक संस्कृत
हम कह सकते हैं कि वैदिक (वेदों में प्रयुक्त) संस्कृत में ळ है। लेकिन बाद में जब लोक में संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ, तो उस लौकिक (लोक में प्रयुक्त) संस्कृत में ळ का प्रयोग नहीं है।
और हम जानते हैं कि विद्यालयों में तो वैदिक संस्कृत नहीं है। जो लोगों में बोली जाती है उसी लौकिक संस्कृत को पढ़ाया जाता है। और लौकिक संस्कृत में ळ के ना होने से हम शालेय स्तर पर कह सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला में ळ नहीं है।
इसीलिए संस्कृत वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या ३३ है (जिसमें ळ नहीं गिनते हैं।)
वस्तुतः यह लेख एक विस्तृत लेख का हिस्सा है जो हमनें व्यंजनों पर लिखा है। संस्कृत वर्णमाला के व्यंजनों के बारे में अधिक विस्तार से पढ़ने के लिए इस लेख पर क्लिक करें –
खुप चांगली पोस्ट आहे तुमची मला वाचून खुप आनंद झाला कारण तुम्ही पोस्ट बनवताना खुप कष्ट घेतले असतील ते या पोस्ट मध्ये दिसून येत आहे
Nirmal Academy
धन्यवाद
आपली प्रतिक्रिया वाचून खूप आनंद झाला।