अपेक्षित पूर्वज्ञान

संस्कृत भाषा में वाच्य परिवर्तन / प्रयोग (Voice) को प्रयोग इस नाम से भी जाना जाता है। जिसे अंग्रेजी में Voice कहते हैं।

संस्कृत भाषा में तीन वाच्य (प्रयोग) होते हैं –

  • कर्तृवाच्य / कर्तरि प्रयोग (Active voice)
  • कर्मवाच्य / कर्मणि प्रयोग (Passive voice)
  • भाववाच्य / भावे प्रयोग (Impersonal voice)

इस लेख में हम केवल उन बातों की चर्चा करेंगे जो वाच्य सीखने के लिए बहुत जरूरी हैं। बिना इन बिन्दुओं के हमारे लिए वाच्य परिवर्तन / प्रयोग सीखना कठिन है।

संस्कृत में वाच्य परिवर्तन / प्रयोग (Voice) सीखने के लिए अपेक्षित पूर्वज्ञान

संस्कृत भाषा में वाच्य / प्रयोग (Voice) पढ़ने के लिए निम्न व्याकरण बिन्दओं की जानकारी पहले से होनी आवश्यक होती है। अन्यथ समझने में परेशानी होती है।

विभक्ति और शब्दरूप

वाच्यपरिवर्तन / प्रयोग (Voice) सीखने के लिए निम्न विभक्तियों की तथा शब्दरूपों के ज्ञान की आवश्यकता होती है –

  • प्रथमा
  • द्वितीया
  • तृतीया

शब्दरूपों की अधिक जानकारी के लिए इस जालसूत्र (लिंक) पर क्लिक कीजिए –

https://kakshakaumudi.in/category/शब्दरूप/

विशेषतः अस्मद् और युष्मद् शब्द के भी रूपों का कण्ठस्थीकरण आवश्यक है।

शब्दरूपों में णत्व

बहुतेरे शब्दरूपों की तृतीया विभक्ति में णत्वविधान लागू हो सकता है। जैसे कि –

– रामेण। हरिणा।

अतः णत्वविधान पढ़ना आवश्यक है। यहाँ णत्वविधान पढ़िए –

https://kakshakaumudi.in/सन्धि/व्यंजनसन्धि/णत्व-विधान

पुरुषज्ञान

संस्कृत भाषा में तीन पुरुष हैं। परन्तु उन को अंग्रेजी में अलग नाम से पहचाना जाता है। जिससे काफी जगह भ्रम होता है। इसीलिए इन तीनों पुरुषों के नाम तथा अंग्रेजी में उनके नाम अच्छे से ध्यान में रखिए –

  • प्रथम पुरुष (Third Person)
  • मध्यम पुरुष (Second Person)
  • उत्तम पुरुष (First Person)

हमें वाच्यपरिवर्तन / प्रयोग (Voice) करते समय हमेश शब्दों के पुरुष और वचन को समझना पड़ता है। इसीलिए ध्यान रखिए –

ये तीन शब्द उत्तम पुरुष कहलाते हैं –

उत्तम पुरुष अहम् आवाम् वयम्
अर्थ मैं / I हम दोनों / we both हम सब / we all

ये तीन शब्द मध्यम पुरुष कहलाते हैं –

मध्यम पुरुष त्वम् युवाम् यूयम्
अर्थ तुम / You तुम दोनों / you both तुम सब / you all

और इन छः को छोड़ कर सारे शब्द प्रथम पुरुष कहलाते हैं। जैसे कि – सभी अकारान्त, इकारान्त आदि नाम तथा तद्, एतद्, इदम् और अदस् इत्यादि सर्वनाम। ये सब प्रथम पुरुष होते हैं।

कर्ता और कर्म

कर्ता

स्वतन्त्रः कर्ता। क्रिया जब होती है, तब जो स्वतन्त्र हो उसे कर्ता कहते हैं। जैसे कि –

  • रामः रावणं मारयति। राम रावण को मारता है।

इस वाक्य में मारने की क्रिया में राम स्वतन्त्र है। इसीलिए राम इस वाक्य में कर्ता है।

कर्म

क्रिया का परिणाम जिस पर सबसे अधिक होता है उसे कर्म कहते हैं। जैसे कि उपर्युक्त वाक्य में मारने कि क्रिया का परिणाम सबसे ज्यादा रावण पर हो रहा है। अतः रावण कर्म है।

धातु

इन क्रियापदों के धातु पहचानिए –

  • बालकः पठति।
  • यात्री चलति।
  • ईश्वरः अस्ति

यहाँ आसानी से पहचाना जा सकता है। पठति का धातु है – पठ्, चलति का धातु – चल् और अस्ति का धातु है – अस्

परन्तु इन क्रियापदों को देखिए और धातु पहचानिए –

  • बालकः पश्यति।
  • रावणः सीतां नयति।
  • कर्णः यच्छति।

यहाँ पश्यति, नयति और यच्छति इन तीनों क्रियापदों का प्रयोग हुआ है। परन्तु बहुतेरे छात्रों को इन क्रियापदों का मूल धातु पता नहीं होता है।

क्रियापद x गलत धातु ✓ सही धातु
पश्यति पश् दृश्
नयति नय् नी
यच्छति यच्छ् दा

कर्मवाच्य क्रियापदों के मूल धातु से होता है। इसीलिए छात्रों को चाहिए कि क्रियापदों के धातुओं की भी जानकारी रखें।

सकर्मक और अकर्मक

सकर्मक –

जिस क्रिया का परिणाम कर्म को मिलता है वह सकर्मक होती है।

जैसे कि – रामः रावणं मारयति। राम रावण को मारता है। इस वाक्य में क्रिया है – मारना

क्रिया का फल मिल रहा है – रावण को (जो इस वाक्य में कर्म है)

अतः यह वाक्य सकर्मक है।

अकर्मक –

जिस क्रिया का फल कर्ता को मिलता है वह अकर्मक होती है।

जैसे कि – कुम्भकर्णः शेते। कुम्भकर्ण सोता है। इस वाक्य में क्रिया है – सोना

क्रिया का फल मिल रहा है – कुम्भकर्ण को (जो इस वाक्य में कर्ता है)

अतः यह वाक्य अकर्मक है।

वाच्य / प्रयोग (Voice) सीखने के लिए छात्र को कर्ता, कर्म और क्रिया की अच्छी समझ होनी जरूरी है।

धातुओं के तीन प्रकार – परस्मैपद, आत्मनेपद और उभयपद

यूँ तो परस्मैपद और आत्मनेपद एक स्वतन्त्र विषय है। जिसपर बहुत विस्तार से एक लेखमालिका लिख सकते हैं। तथापि आप को वाच्यप्रकरण (प्रयोग) सीखने के लिए केवल परस्मैपद और आत्मनेपद के प्रत्ययों को याद रखना ही पर्याप्त है।

परस्मैपदी प्रत्यय (लट् लकार)

पाणिनीय धातुपाठ में कुछ धातु परस्मैपदी धातु होते हैं। जिन को केवल परस्मैपद के ही प्रत्यय लगते हैं।

एक॰ द्वि॰ बहु॰
प्रथमः पुरुषः ति तः न्ति
मध्यमः पुरुषः सि थः
उत्तमः पुरुषः मि वः मः

· भू = भवति – भवतः – भवन्ति

· पठ् = पठति – पठतः – पठन्ति

· चल् = चलति – चलतः – चलन्ति

आत्मनेपदी प्रत्यय (लट् लकार)

पाणिनीय धातुपाठ में कुछ धातु आत्मनेपदी होते हैं। जिन को परस्मैपद के प्रत्यय नहीं लगते हैं। उनको केवल आत्मनेपदी प्रत्यय ही लगाए जाते हैं।

एक॰ द्वि॰ बहु॰
प्रथमः पुरुषः ते इते न्ते
मध्यमः पुरुषः से इथे ध्वे
उत्तमः पुरुषः वहे महे

· सेव् = सेवते – सेवेते – सेवन्ते

· वन्द् = वन्दते – वन्देते – वन्दन्ते

· याच् = याचते – याचेते – याचन्चे

उभयपद

उभय इस शब्द का अर्थ होता है – दोनों।

पाणिनीय धातुपाठ में कुछ धातु ऐसे भी हैं जिनको परस्मैपद तथा आत्मनेपद, दोनों प्रत्यय लगाए जा सकते हैं। ऐसे धातुओं को उभयपदी धातु कहते हैं।

  • · नी

o नयति – नयतः – नयन्ति

o नयते – नयेते – नयन्ते

  • · जि

o जयति – जयतः – जयन्ति

o जयते – जयेते – जयन्ते

  • · कृ

o करोति – कुरुतः – कुर्वन्ति

o कुरुते – कुर्वाते – कुर्वते

इन उदाहरणों में देखा जा सकता है कि इन धातुओं को परस्मैपद तथा आत्मनेपद के प्रत्यय लगाए जा सकते हैं।

उपसंहार

इस प्रकार से हमने अपेक्षित पूर्वज्ञान प्राप्त किया है। आप अब संस्कृत में वाच्य परिवर्तन / प्रयोग (Voice) सीख सकते हैं।

1 thought on “अपेक्षित पूर्वज्ञान”

Leave a Comment