इससे पूर्व लेखों में हम ने वाच्य परिवर्तन / प्रयोग (Voice) के सामान्य नियम देखे हैं। इस लेख में हम कुछ विशेष नियमों का अभ्यास कर रहे हैं।
अकारान्त धातु का ईकारान्त होता है।
आकारान्त धातुओं का अन्त्य आकार ईकार में बदल जाता है। जैसे कि –
बालकः जलं पिबति।
- बालकेन जलं (पा + य + ते)
- पा + य + ते
- पी + य + ते
- पीयते
- बालकेन जलं
पायतेपीयते।
बालकः तिष्ठति। बालक रूकता/बैठता है।
- बालकेन (स्था + य + ते) – स्थायते x
- (स्थ् + आ) + य + ते
- (स्थ् + ई) + य + ते
- स्थी + य + ते
- स्थीयते
- बालकेन स्थीयते।
शिक्षकः ज्ञानं ददाति।
- शिक्षकेण ज्ञानं दीयते।
इकारान्त-उकारान्त धातु दीर्घान्त होते हैं।
यदि धातु के अन्त में इकार अथवा उकार हो, तो उनका क्रमशः ईकार और ऊकार होता है।
उदाहरण –
जि – to win
अर्जुनः जयति।
- अर्जुनेन (जि + य + ते)
- (जि) + य + ते
- (ज् + इ) + य + ते
- (ज् + ई) + य + ते
- (जी) + य + ते
- जीयते
- अर्जुनेन जीयते।
चि – to chose (चिनोति)
बालिका पुष्पाणि चिनोति।
- बालिकया पुष्पाणि (चि + य + आत्मने॰)
- (चि) + य + आत्मने॰
- (च् + इ) + य + आत्मने॰
- (च् + ई) + य + आत्मने॰
- (ची) + य + आत्मने॰
- चीयन्ते
- बालिकया पुष्पाणि चीयन्ते।
श्रु – to listen (शृणोति)
छात्रः कवितां शृणोति।
- छात्रेण कविता (श्रु + य + ते)
- (श्रु) + य + ते
- (श्र् + उ) + य + ते
- (श्र् + ऊ) + य + ते
- श्रू + य + ते
- श्रूयते
- छात्रेण कविता श्रूयते।
ऋकारान्त धातु का परिवर्तन
धातु का अन्त में यदि ऋकार हो, तो वहां बदलाव होता है।
कृ – करोति
बालकः कार्यं करोति।
- बालकेन कार्यं क्रियते।
स्मृ – स्मरति
छात्राः श्लोकं स्मरन्ति।
- छात्रैः श्लोकः स्मर्यते।
व् का उ
यदि धातु में कही भी व् यह व्यंजन हो, तो वह उ में बदल जाता है।
वप् – बोना
कृषकः क्षेत्रे बीजानि वपति।
- कृषकेण क्षेत्रे बीजानि उप्यन्ते।
वह् – ढोना (टू कॅरी)
गर्दभः घटान् वहति।
- गर्दभेन घटाः उह्यन्ते।
उपान्त्य अनुनासिक का लोप
उपान्त्य शब्द का अर्थ होता है – आखिरी से दूसरा।
जैसे की –
मन्थ् (मथ्नाति) – मथना (to churn)
यहाँ मथ्नाति का धातु है – मन्थ्
- म् + अ + न् + थ्
यहाँ न् यह व्यंजन उपान्त्य (अन्त से दूसरा) है। और न् यह एक अनुनासिक है। इसीलिए उसका लोप होता है। जैसे की
गोपिका दुग्धं मथ्नाति।
- गोपिकया दुग्धं
मन्थ्यतेमथ्यते।
रञ्ज् – टू इंटरटैन
गीतं रञ्जयति।
यहाँ धातु है – रञ्ज्। इस धातु के उपान्त्य स्थान पर अनुनासिक है – ञ्। जिसका लोप हो जाता है। जैसे कि –
- गीतेन रज्यते।
सिच् (सिञ्चति) – सिचाई करना
कृषकः सस्यं सिञ्चति।
- कृषकेण सस्यं सिच्यते।
बन्ध् (बध्नाति) – बन्धन करना, बांधना
रज्जुः वस्तूनि बध्नाति।
- रज्ज्वा वस्तूनि बध्यन्ते।
और अन्य विशेष रूप
- ज्ञा (जानाति) – ज्ञायते
- गै (गायति) – गीयते
- स्ना (स्नाति) – स्नीयते
- जन् (जायते) – जायते इस धातु के रूप कर्तृ और कर्म वाच्य में समान रूप दिखते हैं।
- ग्रह् (गृह्णाति) – गृह्यते
- नृत् (नृत्यति) – नृत्यते
- वृध् (वर्धते) – वृध्यते
- यज् (यजते) – इज्यते
चतुर्थ गण (दिवादि) के आत्मनेपदी धातु
चतुर्थ गण (दिवादि) के आत्मनेपदी धातुओं में दोनों वाच्यों में भेद नहीं दिखता है।
- विद् (विद्यते) – विद्यते
- मन् (मन्यते) – मन्यते
- युज् (युज्यते) – युज्यते
- उद् + पद् (उत्पद्यते) – उत्पद्यते
- प्र + पद् (प्रपद्यते) – प्रपद्यते