तृतीया विभक्ति – संस्कृत

तृतीया विभक्ति का कारक अर्थ करण होता है। करण के बारे में संस्कृत भाषा में कहा गया है – साधकतमं करणम्। अर्थात् किसी भी क्रिया को करने के लिए जो सबसे ज्यादा सहायता करता है उसे करण कहते हैं। और करण को तृतीया विभक्ति होती है। हिन्दी भाषा में तृतीया विभक्ति के चिह्न हैं – १) से २) के द्वारा। जैसे कि – छात्र हाथ से लिखता है; महेश विमान के द्वारा लंदन जाता है। इनमें भी से यह चिह्न पंचमी विभक्ति का भी होता है। तथापि पंचमी और तृतीया में अन्तर होता है। इस बात को भी हमें जान लेना चाहिए। तथैव अंग्रेजी में तृतीया विभक्ति को इन्स्ट्रूमेंटल केस (instrumental case) कहते हैं। जो कि अंग्रेजी में by इस चिह्न के द्वारा दिखाई जाती है।

विशेष बात यह है कि तृतीया विभक्ति का प्रयोग केवल करण ही नहीं, बल्कि कर्ता के लिए भी होता है। कर्तृवाच्य के वाक्यों में तृतीया विभक्ति का प्रयोग करण इस कारक अर्थ के लिए होता है। परन्तु कर्मवाच्य और भाववाच्य के वाक्यों में तो तृतीया विभक्ति कर्ता (subject) के लिए भी होती है।

इस लेख में हम संस्कृत भाषा की दृष्टि से तृतीया विभक्ति को समझने का प्रयत्न कर रहे हैं।

तृतीया विभक्ति का अर्थ

तृतीया विभक्ति के हिन्दी तथा अंग्रेजी चिह्नों के द्वारा आप को तृतीया विभक्ति का ठीक-ठीक अर्थ पता लग सकता है। और वही अर्थ संस्कृत भाषा में व्यक्त करने का प्रयत्न हम करेंगे।

इन चिह्नों की मदद से समझने का प्रयत्न करें कि तृतीया विभक्ति क्या है . . . .

  • हिन्दी में – से, के द्वारा
  • अंग्रेजी में – by

एक उदाहरण से इसे समझने का प्रयत्न करते हैं। जरा इस वाक्य को पढ़िए –

  • छात्र हाथ लिखता है।

इस वाक्य का क्या अर्थ हो सकता है? कोई भी छात्र हाथ नहीं लिख सकता। हाथ तो लिखने का साधन है। अतः यह वाक्य ऐसे होना चाहिेए –

छात्र हाथ से लिखता है।

इस उदाहरण में हम देख सकते हैं कि हाथ यह पद तृतीया विभक्ति में है। यहाँ हाथ को तृतीया विभक्ति का चिह्न से कैसे लगा?

  • इस वाक्य में क्रिया कौनसी हो रही है? – लिखने की।
  • लिखने के लिए किस सहायता हो रही है? – हाथ की।

तो इसका अर्थ है कि इस वाक्य में हाथ करण है। और करण से तृतीया होती है। इसीलिए हम ने कहा – हाथ से लिखता है।

इस लेख में हम पढ़ेगे कि यही अर्थ संस्कृत भाषा में तृतीया विभक्ति के द्वारा कैसे व्यक्त होता है ….

तृतीया विभक्ति का कारक अर्थ

तृतीया विभक्ति को कारक विभक्ति कहा गया है। तृतीया विभक्ति का कारक अर्थ करण है। करण की व्याख्या इस सूत्र के द्वारा बताई गई है –

साधकतमं करणम्।

अष्टाध्यायी १।४।४२॥

अर्थात् किसी क्रिया की सिद्धि के लिए जो सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है, उसे करण कहते हैं। और वाक्य में करण से तृतीया विभक्ति होती है।

जो वाक्य कर्मवाच्य के होते हैं, उन वाक्यों में कर्ता से तृतीया विभक्ति होती है। जैसे कि –

  • रामेण रावण मारितः।

इस वाक्य में राम कर्ता है। तथापि यह वाक्य कर्मवाच्य में है, अतः राम इस कर्ता से तृतीया विभक्ति हुई।

संस्कृत में तृतीया विभक्ति के रूप

इस कोष्टक में सामान्य संस्कृत शब्दों के तृतीया विभक्ति के रूप लिखे हैं। हालांकि ये संपूर्ण नहीं है, तथापि इतने से काम चल जाएगा।

 
अर्थ…. से/के द्वारा
by ….
दोनों …. से/के द्वारा
by both ….
सभी …. से/के द्वारा
by all ….
अकारान्तदेवेनदेवाभ्याम्देवैः
आकारान्तलतयालताभ्याम्लताभिः
इकारान्त पुँ॰मुनिनामुनिभ्याम्मुनिभिः
इकारान्त स्त्री॰मत्यामतिभ्याम्मतिभिः
ईकारान्तनद्यानदीभ्याम्नदीभिः

तृतीया विभक्ति के संस्कृत वाक्य

तृतीया विभक्ति (संस्कृत) एकवचनी उदाहरण

  • बालक हाथ से लिखता है।
    बालकः हस्तेन लिखति।
  • छात्र लेखनी से लिखता है।
    छात्रः लेखन्या लिखति।
  • मनुष्य मुँह से बोलता है।
    मनुष्यः मुखेन वदति।
  • मनुष्य नाक से सूंघता है।
    मनुष्यः नासिकया जिघ्रति।

तृतीया विभक्ति (संस्कृत) द्विवचनी उदाहरण

  • मनुष्य आँखों से देखता है।
    मनुष्य नेत्राभ्यां पश्यति।
  • मनुष्य पैरों से चलता है।
    मनुष्य चरणाभ्यां चलति।
  • मनुष्य कानों से सुनता है।
  • बालक लकड़ी को दोनों हाथों से उठाता है।
    बालकः काष्ठं हस्ताभ्याम् उद्धरति।
  • मनुष्यः कर्णाभ्यां शृणोति।

तृतीया विभक्ति (संस्कृत) बहुचनी उदाहरण

  • भक्त देव कों फूलों से पूजता है।
  • भक्तः देवं पुष्पैः पूजयति।
  • महिला खुद को रत्नों से सजाती है।
    महिला आत्मानं रत्नैः विभूषयति।
  • रात्रि में आकाश तारों से सजा होता है।
    रात्रौ आकाशः तारिकाभिः विभूषितः भवति।
  • सांप दातों से काटता है।
  • सर्पः दन्तैः दशति।
  • देवी राक्षस को (बहुत सारे) हाथों से मारती है।
  • देवी राक्षसं हस्तैः मारयति।

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