जब भी उपसर्गों की बात होती है, तब उपसर्गों के साथ प्रत्ययों (Suffix) की भी बात होती है। क्योंकि ये दोनों भी एक दूसरे के विरुद्ध हैं। यहाँ इस लेख में हम केवल उपसर्गों के बारे में बात करने वाले हैं। प्रत्ययों के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।
शब्दों से पूर्व में जिसे लगाया जाता है, वह उपसर्ग (Prefix) कहलाता है ऐसी उपसर्गों की व्याख्या सामान्यतः बहुतेरे शिक्षक बताते हैं। जैसे – अनुगमनम्। इस शब्द में गमनम् इस पद से पहले अनु यह उपसर्ग है। यहाँ यह उदाहरण सही भी है।
परन्तु यह व्याख्या अधूरी है। देखिए –
- प्रधानमन्त्री – प्रधान + मन्त्री
इस उदाहरण में प्रधान यह शब्द मन्त्री इस पद से पहले है परन्तु इसे उपसर्ग (Suffix) नहीं कह सकते। यह तो समास है। विशेषणविशेष्य समास। यहाँ मन्त्री इस शब्द का विशेषण प्रधान यह शब्द है।
- मन्त्री।
- कैसे मन्त्री?
- ‘प्रधान’ मन्त्री।
यहाँ प्रधान यह शब्द मन्त्री इस शब्द से पहले है। लेकिन यह उपसर्ग नहीं है।
तो उपसर्ग (Prefix) क्या है?
संस्कृत में उपसर्ग की व्याखा अष्टाध्यायी में लिखी है –
इस सूत्र के अनुसार –
निम्नलिखित २२ शब्द यदि किसी क्रिया से पहले आते हैं, तो वे उपसर्ग कहलाते हैं।
ये हैं संस्कृत के मूल २२ उपसर्ग। इन्हे प्रादि उपसर्ग भी कहा जाता है। क्योंकि इनकी शुरुआत में प्र यह उपसर्ग है। अतः प्र+आदि – प्रादि।
हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं ने इन संस्कृत के मूल २२ प्रादि उपसर्गों के साथ अपने अन्य उपसर्ग भी विकसित किए हैं। हिंदी ने तो अपने स्वतन्त्र उपसर्गों के साथ अरबी, फारसी, उर्दू तथा अंग्रेज़ी से भी उपसर्गों को आयात किया है। परन्तु संस्कृत का विचार किया जाए, तो उपसर्ग उन २२ प्रादियों को ही कहा जाता है। हिन्दी में प्रयुक्त किए जाने वाले अन्य भाषाओं के उपसर्गों को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।
उपसर्गों का काम
सामान्यतः इन उपसर्गों का अपना कुछ स्वतन्त्र अर्थ नहीं होता है। परन्तु किसी क्रियावाची शब्द के पूर्व में बैठ कर ये उस क्रिया के अर्थ को अलग छटा देते हैं।
जैसे –
- प्र – इस अकेले उपसर्ग का कोई अर्थ नहीं है।
परन्तु गति इस क्रियावाची शब्द के साथ लगा कर गति इस शब्द के अर्थ में एक नया रंग भरने का काम यह उपसर्ग करता है।
- गति – जाना।
- प्र + गति – प्रगति। अर्थात् तरक्की
यही वह विशेष बात है उपसर्गों में जो इन्हे अलग बनाती है। हमने पहले – प्रधानमन्त्री यह उदाहरण देखा। यहाँ प्रधान इस शब्द को अपना एक स्वतन्त्र अर्थ है। और उसी अर्थ के साथ वह मन्त्री इस शब्द से जुड़ कर – प्रधानमन्त्री इस नए शब्द का निर्माण तो करता है। परन्तु प्रधान यानी मुख्य यह अपना अर्थ भी नहीं छोड़ता।
और हम ने उपसर्ग को देखा की सामान्तयतः अपना अर्थ नहीं होता है। लेकिन धातु (क्रियावाची शब्द) से जुड़कर उसके अर्थ में हेरा-फेरी कर देते हैं।
ध्यान रखिए
अ और अन् ये उपसर्ग नहीं हैं।
- अभय। अचल। अमर। अजय। अक्षय।
- अनादर। अनिच्छा। अनुपयोगी।
संस्कृत की दृष्टि से इन शब्दों में प्रयुक्त अ तथा अन् ये शब्द उपसर्ग नहीं है। बहुतेरे लोग इन्हे उपसर्ग मानते है। परन्तु वास्तव में ये समास है। नञ् – तत्पुरुष समास। यहाँ अ तथा अन् का अर्थ न (नहीं) ऐसा होता है।
२२ प्रादि – धातु से पूर्व ही उपसर्ग कलहाते हैं।
संस्कृत का विचार किया जाए, तो उन २२ प्रादियों को ही उपसर्ग कहा जाता है। और वह भी तब, जब वे धातुओं से पूर्व में उपस्थित हो। अन्यथा नहीं। जैसे –
- सुयशः
- इस शब्द में सु यह प्रादि यशः इस शब्द से पूर्व में तो है। तथापि यशः यह शब्द धातु ना होने की वजह से यहाँ सु यह प्रादि उपसर्ग नहीं है।
- निर्धनः
- इस शब्द में निर् यह प्रादि धनः इस शब्द से पूर्व में तो है। तथापि धनः यह शब्द धातु ना होने की वजह से यहाँ निर् यह प्रादि उपसर्ग नहीं है।
एक से अधिक उपसर्ग वाले शब्द
यह कहना भी गलत है कि किसी एक धातु से एक ही उपसर्ग हो सकता है। क्योंकि एकाधिक उपसर्गों का प्रयोग भी देख सकते हैं –
- प्र + आ + रभ् – प्रारभते। प्रारंभ करता है।
- प्रति + आ + गम् – प्रत्यागच्छति। वापिस आता है।
उपसर्गों के बारे में कारिका
उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।
विहाराहारसंहारप्रहारपरिहारवत्॥
हिन्दी अनुवाद
उपसर्ग से धातु का अर्थ ज़बरन बदल जाता है। जैसे कि – विहार, आहार, संहार, प्रहार, परिहार॥
तात्पर्य
किसी धातु से उपसर्ग लगाने से बहुशः धातु के अर्थ में बदलाव हो जाता है। अब हृ इस धातु का उदाहरण देखिए। हृ धातु से कृदन्त प्रत्यय लगाकर हार यह शब्द बनता है। अब अलग-अलग उपसर्गों से अर्थ कितना बदल जाता है, देखिए।
- वि + हार – विहार। अर्थात् घूमना – फिरना। टहलना।
- आ + हार – आहार। अर्थात् खाना।
- सं + हार – संहार। अर्थात् सर्वनाश।
- प्र + हार – प्रहार। अर्थात् हमला।
- परि + हार – परिहार। यानी दूर करना।
इस तरह के कई अन्य उदाहरण देखे जा सकते हैं। जैसे – गम् – गच्छति। यानी जाता है।
लेकिन –
- आ + गम् – आगच्छति। आता है।
- अनु + गम् – अनुगच्छति। पीछा करता है।
- निर् + गम् – निर्गच्छति। निकल जाता है।
- उप + गम् – उपगच्छति। नज़दीक जाता है।
- उद् + गम् – उद्गच्छति। ऊपर जाता है।
- अव + गम् – अवगच्छति। समझता है।
- Under + Stands – Understands.
- स्था – तिष्ठति। रुकता है।
- प्र + स्था – प्रतिष्ठते। प्रस्थान करता है।
उपसर्गों को स्मरण रखने की कॢप्ति।
उपसर्ग Trick
ये हैं २२ संस्कृत के प्रादि उपसर्ग –
प्र परा अप सम् अनु अव निस् निर् दुस् दुर् वि आङ् नि अधि अपि अति सु उत् अभि प्रति परि उप
इनको ऐसे ही क्रम से स्मरण रखना कठिन है। इसीलिए हम इनके आदिवर्ण (शुरुआती अक्षर) से इनको छांटते हैं। हमने प्रादि उपसर्गों के छः विभाग किए हैं।
- प्र। परा। प्रति। परि॥
- अप। अनु। अव। आ॥
- अपान्ववा
- अपान्ववा
- अधि। अपि। अति। अभि॥
- अध्यप्यत्यभि
- अध्यप्यत्यभि
- निस्। निर्। नि॥
- निस्निर्नि
- निस्निर्नि
- सम्। सु॥
- दुस्। दुर्। वि। उद्। उप।
- दुस्दुर्व्युदुप।
इनको कुल मिलाकर ऐसी पंक्ति हमें स्मरण रखनी है –
- प्रपराप्रतिपरि – अपान्ववा – अध्यप्यत्यभि – निस्निर्नि – सम्सु – दुस्दुर्व्युदुप
यदि आप ने इस क्रम से इन को कुछ बार रट लिया तो आप इनको कभी नहीं भूलोंगे। यह मेरा अनुभव है। मैंने भी ऐसे ही इनको याद रखा था (है)।
उपसर्गों के सामान्य अर्थ तथा उपसर्गों के उदाहरण
यूँ तो उपसर्गों के अर्थ बहुत अलग अलग होते हैं। उनका कोई निश्चित अर्थ नहीं है। तथापि सामान्यतः कुछ उदाहरण देने का हम प्रयास कर रहे हैं। वस्तुतः प्राचीन ग्रन्थों में प्रादियों को इस क्रम से दिया गया है –
- प्र परा अप सम् अनु अव निस् निर् दुस् दुर् वि आङ् नि अधि अपि अति सु उद् अभि प्रति परि उप
तथापि हमने जो कॢप्ति इन्हे याद करने के लिए बताई है, उसी क्रम से हम यहाँ उनके सामान्य अर्थों को लिख रहे हैं।
प्रपराप्रतिपरि
- प्र
- प्र + स्था – प्रतिष्ठते। प्रस्थान करता है।
- प्र + विश् – प्रविशति। प्रवेश करता है।
- प्र + दा – प्रददाति। प्रदान करता है। देता है।
- forth, on, away, forward, very, excessive, great
- परा
- परा + जि – पराजयते। हार जाता है।
- परा + भू – पराभवति। हार जाता है।
- परा + क्रम् – पराक्रमते। पराक्रम करता है।
- away, off, aside
- प्रति
- प्रति + कृ – प्रतिकरोति। प्रतिकार करता है।
- प्रति + वद् – प्रतिवदति। उत्तर देता है।
- प्रति + इष् – प्रतीच्छति। मांगता है।
- towards, in opposition to, against, upon, in return, back, likeness, every
- परि
- परि + क्रम् – परिक्रमते। परिक्रमा (गोल घूमना) करता है।
- परि + ईक्ष् – परीक्षते। परीक्षा करता है।
- परि + धा – परिदधाति। परिधान करता (पहनता) है।
- परि + चि – परिचिनोति। पहचानता है। (परिचय)
- round, about, fully
अपान्ववा
- अप
- अप + सृ – अपसरति। हट जाता है।
- अप + ईक्ष् – अपेक्षते। उम्मीद रखता है।
- अप + आ + कृ – अपाकरोति। हटाता है। नष्ट करता है।
- away, off, back, down, negation, bad, wrong
- अनु
- अनु + कृ – अनुकरोति। अनुकरण करता है।
- अनु + मुद् – अनुमोदते। मान लेता है। Agree
- अनु + कम्प् – अनुकम्पते। दया करता है।
- after, behind, along, near, with, orderly
- अव
- अव + गम् – अवगच्छति। समझता है।
- अव + तॄ – अवतरति। उतरता है।
- अव + ज्ञा – अवजानाति। अवज्ञा करता है। disobey
- down, off, away
- आ
- आ + गम् – आगच्छति। आता है।
- आ + क्रम् – आक्रमते। आक्रमण करता है।
- आ + दा – आददाति। आदान करता है। लेता है।
- towards, near, opposite, limit, diminutive
अध्यप्यत्यभि
- अधि
- अधि + कृ – अधिकरोति। अधिकार करता है।
- अधि + आप् – अध्यापयति। सिखाता है।
- अधि + ग्रह् – अधिगृह्णाति। कब्जा करता है।
- above, additional, upon
- अपि
- अपि + धा – अपिदधाति। ढ़कता है।
- अपि + नी – अपिनयति। brings to a state or condition
- अपि + भू – अपिभवति। हिस्सा लेता है। has part in, be in.
- placing over, uniting, proximity, in addition to
- अति
- अति + रिच् – अतिरिच्यते। Becomes more.
- अति + क्रम् – अतिक्रामति। मर्यादा को पार करता है।
- अति + वृत् – अतिवर्तते। Overcomes, gets over, violate
- excessive, surpassing, over, beyond
- अभि
- अभि + कॢ – अभिकल्पते। अभिकल्पना करता है। Design
- अभि + वाद् – अभिवादयते। अभिवादन करता है। (प्रणाम)
- अभि + मन् – अभिमन्यते। अभिमान करता है।
- intensive, over, towards, on, upon
सम्सु
- सम्
- सम् + चि – सञ्चिनोति। संचय करता है।
- सम् + चर् – सञ्चरति। संचार करता है।
- सम् + हृ – संहरति। संहार करता है।
- with, together, completely
- सु
- सु + शुभ् – सुशोभते। सुन्दर दिखता है। मम
- सु + जि – सुजयति। आसानी से जीतता है।
- सु + लभ् – सुलभते। आसानी से मिलता है।
- good, well, easy
निस्निर्नि
- निस्
- निस् + सृ – निस्सरति। नीचे फिसलता है।
- निस् + चि – निश्चिनोति। निश्चित करता है।
- निस् + तॄ – निस्तरति। Gets our of, escapes from
- negative, out, away, forth, intensive
- निर्
- निर् + नी – निर्णयति। निर्णय लेता है।
- निर् + ईक्षते – निरीक्षते। निरीक्षण करता है।
- निर् + गम् – निर्गच्छति। निकल जाता है।
- negative, out, away, forth, intensive
- नि
- नि + वृत् – निवर्तते। चला जाता है।
- नि + वेद् – निवेदयति। निवेदन करता है।
- नि + वस् – निवसति। निवास करता है।
- negative, out, away, forth, intensive
दुस्दुर्व्युदुप
- दुस्
- दुस् + चर् – दुश्चरति। बुरे काम करता है।
- दुस् + कृ – दुष्करोति। कठिन काम करता है।
- दुस् + तॄ – दुस्तरति। दुस्तर (कठिन) काम करता है।
- bad, hard, difficult, inferior
- दुर्
- दुर् + गम् – दुर्गच्छति। मुश्किल जगह जाता है।
- दुर् + बोध् – दुर्बोधयति। कठिन समझाता है।
- दुर् + वद् – दुर्वदति। भला बुरा बोलता है।
- bad, hard, difficult, inferior
- वि
- वि + तॄ – वितरति। बाँटता है।
- वि + जि – विजयते। विजयी होता है।
- वि + आ + कृ – व्याकरोति। स्पष्ट समझाता है। (व्याकरण)
- without, apart, away, opposite, intensive, different
- उद्
- उद् + धृ – उद्धरति। उठाता है।
- उद् + पत् – उत्पतति। कूदता है। उड़ता है।
- उद् + स्था – उत्तिष्ठति। उठता है।
- up, upwards, off, away, out, out of, over
- उप
- उप + गम् – उपगच्छति। पास जाता है।
- उप + दिश् – उपदिशति। उपदेश देता है।
- उप + करेति – उपकरोति। उपकार करता है।
- near, inferior, subordinate, towards, under, on
उपसंहार
उपसर्ग एक ऐसी वस्तु है, जो धातुओं के मूल अर्थों के साथ छेडखानी करते हैं। कभी कभी ये उन अर्थों की छटा के बदल देते हैं, कभी उन के अर्थों को और विस्तृत कर देते हैं, कभी कभी उनके पद में अन्तर कर देते हैं और कभी कभी तो पूरा ही बदल देते हैं। इसीलिए उपसर्गों का प्रयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए।
उपसर्गों का हमें संस्कृत व्याकरण में बहुत जगह विशेष ध्यान रखना पड़ता है। जैसे – क्त्वा और ल्यप् प्रत्यय। यहाँ किसी उपसर्ग के होने या ना होने से प्रत्यय में ही अन्तर पड़ जाता है।
बहु उत्तमं कार्यं, मधुकर
धन्यवाद
बहु उपयुक्तं अस्ति एतत्
धन्यवाद