उकारान्त शब्द किसे कहते हैं?
जिन शब्दों के अन्त में – उ यह ध्वनि सुनाई देती है वे शब्द उकारान्त शब्द होते हैं। जैसे कि गुरु, रघु, राहु, केतु, शन्तनु इत्यादि। इन शब्दों के अन्त में उ यह स्वह है।
उकारान्त शब्दों में पुँल्लिंग स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिंग – अर्थात् तीनों लिंग के शब्द पाए जाते हैं।
इस लेख में हम उकारान्त पुँल्लिङ्ग शब्दों में से उदाहरण के लिए गुरु शब्द के रूप दे रहे हैं। इसीप्रकार से अन्य उकारान्त पुँल्लिंग शब्दों के भी रूप आप आसानी से बना सकते हैं।
गुरु शब्द के रूप। उकारान्त पुँल्लिंग शब्द
एक॰ | द्वि॰ | बहु॰ | |
प्रथमा | गुरुः | गुरू | गुरवः |
द्वितीया | गुरुम् | गुरू | गुरून् |
तृतीया | गुरुना | गुरुभ्याम् | गुरुभिः |
चतुर्थी | गुरवे | गुरुभ्याम् | गुरुभ्यः |
पञ्चमी | गुरोः | गुरुभ्याम् | गुरुभ्यः |
षष्ठी | गुरोः | गुर्वोः | गुरूनाम् |
सप्तमी | गुरौ | गुर्वोः | गुरुषु |
सम्बोधनम् | गुरो | गुरू | गुरवः |
गुरु इस शब्द में में णत्वविधान लागू होता है। जैसे कि – शत्रु। गुरु॥ ऐसे अन्य शब्दों के रूपों का अभ्यास करने के लिए इस कड़ी – शब्दरूपों में णत्व पर क्लिक कीजिए।
जिन शब्दों में णत्व लागू नहीं होता है (जैसे कि – भानु) का अभ्यास करने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।
उकारान्त पुँल्लिंग शब्द के रूपों की इकारान्त पुँल्लिंग शब्दों के रूपों से तुलना
यदि आप को इकारान्त पुँल्लिंग शब्दों के रूप (जैसे कि – मुनि) कण्ठस्थ हैं, तो आप उकारान्त शब्दों को कण्ठस्थ करने में अधिक कष्ठ उठाने की आवश्यकता नहीं है।
इकारान्त (मुनि) शब्दों के रूपों में जहाँ-जहाँ य् का प्रयोग होता है, वहा उकारान्त (गुरु) शब्दों में व् का प्रयोग होता है। जैसे कि –
- मुनयः – गुरवः
- मुनये – गुरवे
- मुन्योः – गुर्वोः
और पञ्चमी और षष्ठी का एकवचन किंचित भिन्न होता है।
- मुनेः – गुरोः
बाकी सभी रूप लगभग समान ही होते हैं। यदि आप इस बात का ख्याल रख कर उकारान्त शब्दों के रूपों को पढ़ते हैं, तो आप को रूपों का अभ्यास करने में बहुत आसानी होगी।
उकारान्त पुँल्लिंग शब्द के रूपों का वाक्यों में प्रयोग
प्रथमा
- गुरुः यज्ञं करोति।
गुरु यज्ञ करता है। - गुरू यज्ञं कुरुतः।
दो गुरु यज्ञ करते हैं। - गुरवः यज्ञं कुर्वन्ति।
बहुत सारे गुरु यज्ञ करते हैं।
द्वितीया
- राजा भानुं प्रणमति।
राजा गुरु को प्रणाम करता है। - राजा गुरू प्रणमति।
राजा (दो) गुरुओं को प्रणाम करता है। - राजा गुरून् प्रणमति।
राजा गुरुओं को प्रणाम कता है।
तृतीया
- गुरुना यज्ञः क्रियते।
गुरु के द्वारा यज्ञ किया जाता है। - गुरुभ्यां यज्ञः क्रियते।
(दो) गुरुओं के द्वारा यज्ञ किया जाता है। - गुरुभिः यज्ञः क्रियते।
गुरुओं के द्वारा यज्ञ किया जाता है।
चतुर्थी
- राजा गुरवे धेनुं ददाति।
राजा गुरु को गाय देता है। - राजा गुरुभ्यां धेनुं ददाति।
राजा दो गुरुओं को गाय देता है। - राजा गुरुभ्यः धेनुं ददाति।
राजा बहुत सारे गुरुओं को गाय देता है।
पञ्चमी
- राजा गुरोः ज्ञानं गृह्णाति।
राजा गुरु से ज्ञान लेता है। - राजा गुरुभ्याम् ज्ञानं गृह्णाति।
राजा दो गुरुओं से ज्ञान लेता है। - राजा गुरुभ्यः ज्ञानं गृह्णाति।
राजा बहुत सारे गुरुओं से ज्ञान लेता है।
षष्ठी
- एषः गुरोः आश्रमः अस्ति।
यह गुरु का आश्रम है। - एषः गुर्वोः आश्रमः अस्ति।
यह दो गुरुओं का आश्रम है। - एषः गुरूनाम् आश्रमः अस्ति।
यह बहुत सारे गुरुओं का आश्रम है।
सप्तमी
- राजा गुरौ विश्वसिति।
राजा गुरु पर विश्वास करता है। - राजा गुर्वोः विश्वसिति।
राजा दोनों गुरुओं पर विश्वास करता है। - राजा गुरुषु विश्वसिति।
राजा सभी गुरुओं पर विश्वास करता है।
संबोधनम्
- हे गुरो! यज्ञं करोतु।
हे गुरु! यज्ञ करो। - हे गुरू! यज्ञं करोतु।
हे दोनों गुरुओं! यज्ञ कीजिए। - हे गुरवः! यज्ञं करोतु।
हे गुरुओं! यज्ञ कीजिए।
उहसंहार
इस प्रकार से हमने गुरु के माध्यम से उकारान्त पुँल्लिंग शब्दों के रूपों को समझाने की चेष्टा की है। गुरु को आधार मानकर आप शन्तनु। राहु। केतु। रघु॥ वगैरह शब्दों का भी संस्कृत वाक्यों में प्रयोग कीजिए और नवनवीन वाक्य बनाईए।
Bhanu shabda roop, Sanskrit shabda roop, Ukarant pulling shabda roop