संस्कृत व्याकरण में नदी यह संज्ञा क्या है?
पानी के प्रवाह को व्यवहार में नदी कहते हैं। परन्तु संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से नदी यह एक अलग संकल्पना है।
आप ने नदी, देवी, वधू इ॰ शब्दों के षष्ठी बहुवचन देखे होंगे – नदीनाम्, देवीनाम्, वधूनाम् इत्यादि। परन्तु जगत्, भवत्, सर्व इ॰ शब्दों के षष्ठी बहुवचन ऐसे होते हैं – जगताम्, भवताम्, सर्वेषाम् इ॰। इन उदाहरणों में आप देख सकते हैं कि नदी, देवी, वधू इन के षष्ठी बहुवचन में नाम् होता है। परन्तु जगत्, भवत्, सर्व इ॰ के षष्ठी बहुवचन में नाम् नहीं होता है। इसका कारण क्या है?
यहाँ कारण है – नदीसंज्ञा। नदी यह संज्ञा जिन शब्दों की होती है उन से आम् प्रत्यय (षष्ठी बहु॰) होने पर बीच में नुट् (न्) यह आगम हो कर आम् के स्थान पर नाम् ऐसा होता है। (सूत्र – ह्रस्वनद्यापो नुट्। 7। 1। 54॥)
इस ही प्रकार आण्नद्याः, ङेराम्नद्याम्नीभ्यः इ सूत्रों में भी नदी इस संज्ञा का प्रयोग होता है।
नदी यह एक संज्ञा (नाम) है। कुछ विशेष प्रकार के स्त्रीलिंग शब्दों की नदी यह संज्ञा होती है। ऐसे नदी-शब्दों को विभक्तिरूप किसी विशेष सूत्र के अनुसार बनते हैं।
कौन से शब्दों की नदी यह संज्ञा होती है?
पाणिनीय अष्टाध्यायी में इन सूत्रों के द्वारा नदी इस संज्ञा का विधान किया है। यानी ये सूत्र बताते हैं कि किन शब्दों को नदी इस संज्ञा (नाम) से जाना जाए।
यू स्त्र्याख्यौ नदी। १। ४। ३॥
– पाणिनीय अष्टाध्यायी
नेयङुवङ्स्थानावस्त्री। १। ४। ४॥
वाऽऽमि। १। ४। ५॥
ङिति ह्रस्वश्च। १। ४। ६॥
इन चार सूत्रों के अनुसार जो –
- स्त्रीलिंग शब्द ईकारान्त अथवा ऊकारान्त हैं, उन शब्दों को नदी कहते हैं।
- ईयङ् और ऊवङ् ये प्रत्यय जिन को होते हैं वे शब्द नदी नहीं होते हैं। परन्तु स्त्री (महिला इस अर्थ में) यह शब्द ईयङ् प्रत्ययवाला होने के बावजूद भी स्त्री इस शब्द की नदी यह संज्ञा होती है।
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