संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय बहुत जगहों पर होते हैं। परन्तु इस प्रत्ययों का अधिकारी कौन है? किसे प्रत्यय लगते हैं? क्या हम किसी भी शब्द को संस्कृत का कोई भी प्रत्यय लगा सकते हैं?
संस्कृत को छोडिए। क्या अंग्रेजी के जो कोई भी प्रत्यय (suffix) हैं, वे किसी भी शब्द से हो सकते हैं? – नहीं।
इसीलिए कौन से प्रत्यय कहाँ हो सकते हैं? किस तरह के शब्द से कौन सा प्रत्यय हो सकता है यह विचार करना बहुत आवश्यक होता है। और इस बात में प्रातिपदिक संज्ञा बहुत महत्त्वपूर्ण है।
प्रातिपदिक की संकल्पना
हम प्रतिदिन अनेक वाक्य बोलते हैं। इन वाक्यों की मदद से हम किसी वस्तु (मूर्त या अमूर्त) के बारे में बाते करते हैं। वहीं तो प्रातिपदिक होते हैं। अर्थात् हम प्रातिपदिक के बारे में यह कह सकते हैं कि वाक्य में जिस मूर्त अथवा अमूर्त चीज के बारे में बात होती है वह प्रातिपदिक होता है। जैसे कि यह वाक्य देखिए –
राम ने भोजन का विचार किया।
इस वाक्य में तीन वस्तुओं के बारे में बात हैं – १. राम, २. भोजन, ३. विचार। ये तीनों प्रातिपदिक हैं।
प्रातिपदिक संज्ञा का प्रयोजन
विभक्तिप्रत्यय, तद्धितप्रत्यय और स्त्रीप्रत्यय उन ही शब्दों को लग सकते हैं जो प्रातिपदिक हैं। यानी इन प्रत्ययों का विधान केवल प्रातिपदिक शब्दों से हो सकता है।
प्रातिपदिक संज्ञा हमे यह बताती है कि उपर्युक्त प्रत्ययों को किस शब्द को लगाना है और किस को नहीं।
प्रातिपदिक से विभक्तिप्रत्यय
प्रातिपदिकों को ही विभक्तिप्रत्यय लगते हैं और इन विभक्तिप्रत्ययों की मदद से हम पता चलता है कि प्रातिपदिकों की वाक्य में भूमिका क्या है। जैसे कि उपर्युक्त वाक्य में –
- राम प्रातिपदिक को ने यह प्रथमा विभक्ति का प्रत्यय लगा है। इससे हम पता चला की यह वाक्य में कर्ता (subject) है।
- भोजन इस प्रातिपदिक को का यह षष्ठी विभक्ति का प्रत्यय लगा है। इससे पता चला की भोजन संबंध है।
- हालांकि विचार इस प्रातिपदिक को कोई प्रत्यय लगा दिखता नहीं है। तथापि यह द्वितीया में है, अतः यह कर्म (object) है।
एक बात ध्यान रखे – विभक्तियाँ केवल प्रातिपदिक को ही लग सकती है। यानी यदि आप विभक्तिप्रत्यय किसी शब्द को लगाना चाहते हैं तो पहले वह प्रातिपदिक होना चाहिए। यदि कोई शब्द प्रातिपदिक नहीं है तो उसे कोई भी विभक्ति नहीं हो सकती।
प्रातिपदिक से तद्धितप्रत्यय
बुद्धि यह एक प्रातिपदिक है। इस से मतुप् प्रत्यय हो कर बुद्धिमान् यह पद बनता है। यहाँ मतुप् यह पद किसी प्रातिपदिक से ही हो सकता है। यदि प्रातिपदिक नहीं है तो मतुप् प्रत्यय भी वहाँ नहीं होगा।
प्रातिपदिक से स्त्रीप्रत्यय
छात्र यह एक प्रातिपदिक है। इस का स्त्रीलिंग बनाने के लिए इस से टाप् इस स्त्रीप्रत्यय का विधान होता है।
- छात्र + टाप् – छात्रा
अब बताईए कि क्या यह टाप् प्रत्यय किसी निरर्थक शब्द से हो सकता है?
जिस से हमें यह टाप् प्रत्यय करना है वह कोई अर्थवाला शब्द होना चाहिए। अर्थात् वह प्रातिपदिक होना चाहिए।
संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से प्रातिपदिक किसे कहते हैं?
महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी में प्रातिपदिक संज्ञा का विधान इन दो सूत्रों से किया है –
अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम्। १। २। ४५॥
कृत्तद्धितसमासाश्च। १। २। ४६॥
इन दोनों सूत्रों का अर्थ –
१. जो शब्द अर्थयुक्त है, धातु नहीं है और प्रत्यय युक्त नहीं है वह प्रातिपदिक है।
२. कृदन्त तथा तद्धित प्रत्यय वाले शब्द और समास से बने शब्द भी प्रातिपदिक होते हैं।
चलिए इस विषय को हम विस्तार से समझते है।
अर्थयुक्त शब्द प्रातिपदिक होता है (अर्थवत्)
अर्थयुक्त शब्द के लिए प्रस्तुत सूत्र में अर्थवत् (अर्थ + मतुप्) इस शब्द का प्रयोग किया है। यानी ऐसा शब्द जिसे कोई अर्थ हो।
हम वाक्य में उन ही शब्द का प्रयोग करते हैं जिसे कोई अर्थ होता है और ऐसे अर्थयुक्त शब्द को हम विभक्तियाँ लगाकर वाक्य में इस्तेमाल करते हैं।
संस्कृत के बारे में ऐसा कहते हैं कि प्रायः सभी शब्द किसी ना किसी प्रकार के व्याकरणीय प्रक्रिया से बने होते हैं। यानी वे व्याकरण के द्वारा व्युत्पन्न होते हैं। परन्तु कुछ ऐसे भी शब्द होते हैं जिनकी व्युत्पत्ति व्याकरण में नहीं मिलती अथवा कभी कभी खींच-तान कर व्युत्पत्ति लगाते हैं।
आजकल विदेशी (प्रायः अंग्रेजी) शब्दों का बड़ा प्रचलन है। ऐसे में जिस वस्तु का विदेश में ही निर्माण हुआ है ऐसे वस्तु का संस्कृत नाम कैसे रखे? हालांकि बहुतांश वस्तुओं के गुणधर्मों के आधार पर हम उनके लिए संस्कृत शब्द भी बना सकते हैं।
परन्तु विदेशी शब्दों का भी कुछ अर्थ होता है और जिस किसी भी शब्द का कोई अर्थ हो वह प्रातिपदिक है। ऐसे प्रातिपदिका संस्कृत में प्रयोग हो सकता है और उसे सभी विभक्तियाँ भी लग सकती है।
एक बार हमारे किसी छात्र ने भरी कक्षा में हम से पूछा – सर, टाई को संस्कृत में क्या कहते हैं?
हम ने कहा – बेटा, यह विदेश में बनी एक वस्तु का वहाँ के लोगों ने रखा हुआ एक नाम है। ऐसे नाम का संस्कृत में अनुवाद करने की क्या आवश्यकता है? तुम ऐसे ही – एतत् टाई अस्ति ऐसा बोल सकते हो।
लेकिन फिर भी छात्र ने जिद की – फिर भी बताईए ना? प्लीज। और बाकी के छात्र भी एकसाथ पूछने लगे।
तो हम ने कुछ सोच कर जवाद दिया – कंठलंगोट।
यह सुनते ही पूरी कक्षा में सभी छात्र हँसी से लोटपोट हो गए।
इस उदाहरण से हमारे कहने का तात्पर्य क्या था? – किसी भी अर्थयुक्त शब्द का भाषा में प्रयोग हो सकता है। ऐसा अर्थयुक्त शब्द यदि व्याकरण से व्युत्पन्न भी हो सकता है और व्याकरण से अव्युत्पन्न भी हो सकता है।
जो शब्द धातु नहीं है वह प्रातिपदिक है (अधातु)
इससे पूर्व हम ने चर्चा की कि जिस शब्द को अर्थ होता है वह प्रातिपदिक है और उस के सभी विभक्तिप्रत्यय लग सकते हैं। परन्तु अर्थ तो धातुओं का भी होता है। जैसे कि गम् धातु का अर्थ है जाना, पठ् धातु का अर्थ है पढ़ना, लिख् धातु का अर्थ है लिखना इ॰
इसीलिए म॰ पाणिनि ने अपने सूत्र में यह शब्द सम्मिलित किया – अधातु। अर्थात् धातुओँ के अर्थ होने के बावजूद उन को प्रातिपदिक नहीं कहते।
यदि इस शब्द का प्रयोग ना करते तो धातुओं को भी विभक्तियाँ लग सकती थी और पठः-पठौ-पठाः, पठम्-पठौ-पठान्, पठेन-पठाभ्याम्-पठैः इ॰ पद भी सिद्ध होते। धातुओं के लिए तो लकार होते हैं। इसीलिए इस बात को समझना है कि धातु अर्थवान् होने के बावजूद भी ये प्रातिपदिक नहीं हैं।
जिस से प्रत्यय लगा नहीं है वह प्रातिपदिक है (अप्रत्यय)
प्रातिपदिक संज्ञा बनाई ही गई है विभक्तिप्रत्यय लगाने के लिए है। इसीलिए जिसे प्रत्यय नहीं लगा है उससे ही प्रत्यय होगा। एकबार विभक्तिप्रत्यय लगने के बाद वह शब्द प्रातिपदिक नहीं रहता।
जैसे कि – रामस्य।
यहाँ राम इस प्रातिपदिक को स्य यह षष्ठी प्रत्यय है। तो अब यह प्रातिपदिक नहीं रहा। अपितु विभक्तिप्रत्यय लगने के अब यह पद बन चुका है। अब हम इसे पुनः षष्ठी लगाकर रामस्यस्य नहीं बना सकते हैं।
परन्तु कृत् और तद्धित प्रत्ययवाले शब्द प्रत्यय होते हैं (कृत् – तद्धित)
हम ने पूर्व में बताया कि प्रत्ययवाले शब्द प्रातिपदिक नहीं होते हैं। परन्तु यह अपवाद है। जो शब्द कृदन्त अथवा तद्धित प्रत्यय से व्युत्पन्न हैं, उन को प्रातिपदिक कह सकते हैं। जैसे कि –
कृदन्त से प्रातिपदिक
- पठ् + क्त – पठित
इस उदाहरण में पठ् इस धात से क्त प्रत्यय हुआ है। यहाँ पठित को प्रातिपदिक मान कर उस से विभक्तिप्रत्यय हो सकते हैं। जैसे कि – छात्रः पाठस्य पठनं करोति।
तद्धित से प्रातिपदिक
- बुद्धि + मतुप् – बुद्धिमत्
इस उदाहरण में बुद्धि इस प्रातिपदिक से मतुप् यह प्रत्यय हुआ है। हालाँकि यहाँ बुद्धि यह पहले से ही प्रातिपदिक था। परन्तु मतुप् यह तद्धित प्रत्यय होने के बाद बना शब्द बुद्धिमत् भी प्रातिपदिक है। इससे पुनः विभक्तिप्रत्यय, स्त्रीप्रत्यय अथवा तद्धितप्रत्यय हो सकते हैं।
- विभक्तिप्रत्यय – बुद्धिमान् – बुद्धिमन्तौ – बुद्धिमन्तः
- स्त्रीप्रत्यय – बुद्धिमती
- तद्धितप्रत्यय – बुद्धिमत्ता
सामासिक शब्द प्रातिपदिक होता है (समासाः)
जो शब्द समास हो कर बनते हैं वे भी प्रातिपदिक होते हैं और उन से विभक्त्यादि प्रत्यय हो सकते हैं। जैसे कि रूपसुन्दर यह समास है।
- विभक्तिप्रत्यय – रूपसुन्दरः
- स्त्रीप्रत्यय – रूपसुन्दरी
- तद्धितप्रत्यय – रूपसुन्दरता
क्या स्त्रीप्रत्यय से युक्त शब्द को प्रातिपदिक कह सकते हैं?
पूर्व में हम ने जाना कि प्रातिपदिक कौन कौन होते हैं। इन सब बातों का यह अर्थ हुआ कि जिन शब्दों से कोई भी प्रत्यय नहीँ हुआ है वे प्रातिपदिक हैं। परन्तु कृदन्त प्रत्यय और तद्धितप्रत्यय इस के अपवाद हैं।
परन्तु अब बात करते हैं स्त्रीप्रत्ययों की। स्त्रीप्रत्यय पुँल्लिंग शब्द को स्त्रीलिंग बनाते हैं। स्त्रीप्रत्यय का जिक्र तो उपर्युक्त सूत्रों में नहीं है। अतः स्त्रीप्रत्यय से युक्त शब्द प्रातिपदिक नहीं है। और ऐसे स्त्रीप्रत्यय युक्त शब्द से विभक्ति आदि प्रत्यय नहीं हो सकते हैं। जैसे कि –
- छात्र + टाप् – छात्रा
इस उदाहरण में छात्र इस प्रातिपदिक से टाप् प्रत्यय लगाकर छात्रा यह शब्द बना है। अबतक हमने जो जाना उस के अनुसार जिन शब्दों को कोई प्रत्यय नहीं (कृदन्त और तद्धित छोड़कर) लगा है वे प्रातिपदिक है। अब यहाँ तो टाप् यह प्रत्यय हो गया है। अतः छात्रा यह शब्द प्रत्ययान्त है। इसीलिए यह प्रातिपदिक नहीं है। और छात्रा से कोई भी विभक्ति आदि प्रत्यय नहीं हो सकता। यानी हम छात्रा-छात्रे-छात्राः, छात्राम्-छात्रे-छात्राः, छात्रया-छात्राभ्याम्-छात्राभिः आदि विभक्तिरूप नहीं बना सकते। छात्रावान् कक्षः इत्यादि तद्धितप्रत्यय भी नहीं कर सकते हैं।
यह तो परेशानी है। और बड़ी परेशानी यह है कि इन दोनों सूत्रों में इस का हल नहीं मिलता। परन्तु इस परेशानी को दूर करने के लिए एक परिभाषा काम में आती है।
प्रातिपादिकग्रहणे लिङ्गविशिष्टस्यापि ग्रहणम्।
– परिभाषेन्दुशेखरः।
इस परिभाषा के इनुसार प्रातिपदिकों के लिए बताए कार्य स्त्रीप्रत्यय करने के बावजूद भी कर सकते हैं। यानी स्त्रीप्रत्यय होने के बाद भी हम किसी शब्द को प्रातिपदिक मान कर उससे संबंधित कार्य कर सकते हैं।