वैसे तो वृद्धि इस शब्द का अर्थ होता है बढ़ौतरी होना। परन्तु संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से देखा जाए तो यह एक संज्ञा है। संस्कृत भाषा के तीन स्वर ऐसे हैं जिन को वृद्धि इस नाम से जानते हैं।
वृद्धि संज्ञा का सूत्र
अष्टाध्यायी में इस सूत्र के द्वारा वृद्धि संज्ञा का विधान किया है –
इस सूत्र की विशेष बात यह है कि यह सूत्र अष्टाध्यायी का पहला ही सूत्र है। यानी प्रथम अध्याय के प्रथम पाद का प्रथम सूत्र।
वृद्धिरादैच् इस सूत्र के अनुसार आ, ऐ और औ इन तीन स्वरों को वृद्धि कहते हैं।
वृद्धि इस संज्ञा की मदद से पाणिनीय अष्टाध्यायी में अनेक कार्य होते हैं।
वृद्धि संज्ञा और वृद्धि संधि में अंतर
वृद्धिरादैच् इस सूत्र के द्वारा वृद्धि इस संज्ञा का विधान होता है जो कि आ, ऐ और औ इन तीनों स्वरों का एक नाम है। परन्तु वृद्धि संधि एक ऐसा सन्धि है जिस में सन्धिकार्य के में जो आदेश (यानी सन्धि कार्य के उत्तर) होते हैं वे इन वृद्धिस्वरों में से होते हैं। जैसे कि – अ + ए = ऐ। इस सूत्र में ऐ यह आदेश हुआ है। यह ऐ स्वर एक वृद्धिस्वर है इसीलिए यह संधि वृद्धिसंधि है। वृद्धिसंधि का पाणिनीय सूत्र वृद्धिरेचि यह है।
वृद्धिसंधि के बारे में अधिक जानने के लिए इस सूत्र पर क्लिक करें –