संयोग किसे कहते हैं? संस्कृत व्याकरण का संयुक्ताक्षर

What is Samyoga in Sanskrit grammar?

संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से संयोग यह एक संज्ञा है।

जिसे हिन्दी में संयुक्ताक्षर कहते हैं, उसे ही संस्कृत व्याकरण में संयोग इस संज्ञा से जानते हैं। मराठी में इसे जोडाक्षर भी कहते हैं।

संयोग का पाणिनीय सूत्र Panini’s sutra of Samyoga

हलोऽनन्ततराः संयोगः। १। १। ७॥

इस सूत्र का अर्थ यह है कि यदि अनेक व्यंजनों बिना किसी व्यवधान के एकत्र समूह को संयोग कहते हैं।

व्यवधान का अर्थ होता है – बीच में आना। और उपर्युक्त व्याख्या में बताया है कि जब व्यंजन बिना किसी व्यवधान के एकत्र आते हैं तो वह संयोग है।

अर्थात् जब व्यंजनों के बीच अन्य कुछ भी नहीं होता है तो वह संयोग होता है।

संयोग के उदाहरण Examples of Samyoga

वाक्यम् – व् + आ + क् + य् + अ + म्।

इस उदाहरण में क् और य् इन दोनों व्यंजनों के बीच अन्य कोई भी स्वर अथवा विराम इत्यादि नहीं है। अतः यह संयोग है।

कर्णः – क् + अ + र् + ण् + अ + : (विसर्गः)

इस उदाहरण में र् और ण् इन दोनों व्यंजनों के बीच अन्य कोई भी स्वर अथवा विराम इत्यादि नहीं है। अतः यह संयोग है।

बुद्ध्या – ब् + उ + द् + ध् + य् + आ

इस उदाहरण में द्, ध् और य् इन तीनों व्यंजनों के बीच अन्य कोई भी स्वर अथवा विराम इत्यादि नहीं है। अतः यह संयोग है।

संस्कृत में सबसे लंबा संयोग The longest samyoga in Sanskrit

कार्त्स्न्य – क् + आ + र् + त् + स् + न् + य् + अ

इस उदाहरण में र्, त्, स्, न् और य् इन पांच व्यंजनों के बीच अन्य कोई भी स्वर अथवा विराम इत्यादि नहीं है। अतः यह संयोग है।

हिन्दी में इसे पाँच व्यंजनों वाला संयुक्ताक्षर भी कहते हैं।

कार्त्स्न्य का अर्थ होता है – संपूर्णता

एस स्थान पर कितने संयोग हो सकते हैं? How many Samyogas may be at one place?

जहाँ तीन या तीन से अधिक व्यंजन एकत्रित होते हैं तो वहाँ कितने संयोग हो सकते हैं?

क्या वहाँ दो-दो व्यंजनों के हिसाब से एकाधिक संयोग होते हैं अथवा सभी व्यंजनों का मिलाकर एक ही संयोग होता है?

जैसे कि – बुद्ध्या

यहाँ द् + ध् + य् इन तीन व्यंजनों से संयोग हो रहा है। तो क्या यहाँ १. (द् + ध्) और २. (ध् + य्) ऐसे दो संयोग हैं? या इन तीनों का मिलकर १. (द् + ध् + य्) एक ही संयोग होगा?

इस विषय पर पातंजल महाभाष्य में विस्तार से चर्चा है। अन्ततः भाष्यकार पतंजलि ने कहा है कि दोनों भी तरह से विचार करने पर कोई भी हानि नहीं होती है। अतः दोनों भी तरह से विचार हो सकता है। कोई समस्या नहीं।

संयोग यह संज्ञा किस की होती है? Who is Samyoga?

संयोग यह संज्ञा स्वर अथवा विराम इत्यादि के व्यवधानरहित (बीच में न आना) व्यंजनों के समूह की होती है। व्यंजनों की नहीं।

अर्थात् संयोग में सम्मिलित व्यंजन को संयोग नहीं कहते। अपितु संयोग में सम्मिलित व्यंजनों के समुदाय (ग्रूप) को संयोग कहते हैं।

संयोग और संहिता में अंतर Difference between Sanyoga and Samhita

दो वर्ण (फिर वे स्वर, व्यंजन इ॰ कोई भी हो) जब बिल्कुल नजदीक आते हैं, तो उसे संहिता कहते हैं। (इस लेख को पढ़िए)

परन्तु संयोग केवल व्यंजनों से संबंधित संज्ञा है।

अर्थात् प्रत्येक संयोग संहिता है। परन्तु प्रत्येक संहिता संयोग नहीं हो सकती। क्योंकि स्वर और व्यंजन एकत्रित हो कर भी संहिता बनती है। जब कि संयोग में केवल व्यंजन होते हैं।

इस प्रकार से हम ने संयोग इस संज्ञा को समझाने का प्रयत्न किया है। यदि आप को इस विषय में कोई शंका, समस्या अथवा प्रश्न हो तो आप नीचे जरूर टिप्पणी करें।

धन्यवाद।

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