उत्व सन्धि

उत्व संधि यह एक विसर्गसंधि है। अर्थात् इस संधि में पूर्ववर्ण विसर्ग होता है। और उत्व संधि का सूत्र लग जाने से विसर्ग की जगह यह आदेश प्राप्त हो जाता है। इसीलिए इस सन्धि का नाम उत्व सन्धि (Utwa Sandhi) ऐसा पड़ा है।

इस संधि को बहुत सावधानी से पढना चाहिए। क्योंकि यहाँ विसर्ग का उत्व होने के बाद तत्क्षण गुणसंधि भी होता है। अर्थात् हमें एक ही समय पर दो कार्य करने पड़ते हैं। यानी एक संधि में दो कार्य करने हैं।

आप चिन्ता ना करें, हम ने कक्षा कौमुदी के द्वारा इस उत्व संधि को विस्तार से उदाहरण के साथ समझाया है।

उत्व संधि का वीडिओ

उत्व संधि को हमने वीडिओ के द्वारा भी समझाया है। यदि आप चाहे, तो इस वीडिओ को अन्त तक देख सकते हैं।

विसर्ग सन्धि – उत्व

यदि आप लिखित स्वरूप में ही उत्व संधि को पढ़ना चाहते हैं, तो इस लेख को पढ़ना जारी रखिए। अथवा वीडिओ देखने के बाद भी कोई शंका, समस्या अथवा प्रश्न हो, तो हमें यहाँ बताईए। इस लेख के द्वारा हम आपके प्रश्नों को हल कर सकते हैं।

उत्व सन्धि का सूत्र

यह सूत्र शालेय छात्रों के लिए है। विसर्ग के स्थान पर यह आदेश इस स्थिति में होता है –

  • अ + : + मृदुव्यंजन = अ + उ + मृदुव्यंजन

अर्थात् –

  1. यदि विसर्ग के पूर्व में यह स्वर हो,
  2. तथा विसर्ग के उत्तर में कोई भी मृदुव्यंजन हो,
  3. तो विसर्ग का बन जाता है।

यहां एक और बात ध्यान में रखनी है कि विसर्ग का उत्व होने के बाद (यानी उ बनने के बाद) विसर्ग के पूर्ववर्ती अ के साथ गुण सन्धि के कारण बन जाता है।

यदि आप मृदुव्यंजनों के बारे में नहीं जातने हैं तो कृपया इस लेख को पढ़िए –

https://kakshakaumudi.in/वर्णमाला/व्यंजन-संस्कृत-वर्णमाला।/

उत्व सन्धि कैसे होता है?

उत्व संधि करने के बाद गुण संधि भी होता है इस बात का ध्यान रखिए। इन बिन्दुओं को ध्यान से पढ़िए।

  • अ + : + मृदुव्यंजन … इस स्थिति में उत्व हो सकता है।
  • अ + + मृदुव्यंजन … विसर्ग के स्थान पर उ आदेश होता है।
  • अ + उ + मृदुव्यंजन … यहां गुणसन्धि का नियम लागू होता है।
  • ओ + मृदुव्यंजन … गुण सन्धि के नियम से ओ आदेश होता है।

उत्व सन्धि का उदाहरण

यशः + धाम – यशोधाम

  • श् + अः + धा … यहां विसर्ग से पहले यह स्वर है। तथा विसर्ग के उत्तर में ध् यह मृदु व्यंजन है।
  • श् + अः + धायहां उत्व हो सकता है। क्योंकि विसर्ग से पहले यह स्वर है और विसर्ग के बाद मृदु व्यंजन है।
  • श् + अ + + धा … विसर्ग के स्थान पर उ आदेश।
  • श् + अ + उ + धा … यहां गुणसन्धि हो सकता है। (अ + उ – ओ)
  • श् + + धा … अ और उ के स्थान पर गुणादेश – ओ।
  • शोधा … वर्णसम्मेलन

हम उत्व संधि की प्रक्रिया से प्राप्त शोधा को मूल पदों में मिलाकर हमे अन्तिम उत्तर प्राप्त होता है –

  • शोधा

उत्व सन्धि का अभ्यास

इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों की मदद से आप उत्व सन्धि का अभ्यास कीजिए

  • मनः + हर – मनोहर
  • पयः + धि – पयोधि
  • अम्भः + ज – अम्भोज
  • तेजः + मयः – तेजोमय

जरूरी बात

जब एक ही पद में उत्व होता है, अथवा समास में उत्व होता है तो उत्व के बाद वर्णों में अन्तर (स्पेस) नहीं रहता है। परन्तु यदि दो विभिन्न पदों में उत्व होता है, तो दोनों पदों में अन्तर (स्पेस) रहता है।

जैसे कि –

एक ही पद में उत्व

  • मनः + भ्याम् – मनोभ्याम्
  • वचः + भ्याम् – वचोभ्याम्
  • तपः + भिः – तपोभिः

समास में उत्व

मनसः विकासः

  • मनः + विकासः
  • मनोविकासः

तमसः निशा

  • तमः + निशा
  • तमोनिशा

तपसे वनम् –

  • तपः + वनम्
  • तपोवनम्

परन्तु यदि प्रस्तुत उत्व दो विभिन्न पदों में होता है, तो दोनों पदों में अन्तर (स्पेस) रहता है।

दो भिन्न पदों में उत्व

इस विषय को ठीक से समझने के लिए आप को पद को समझना चाहिए। पद को समझने के लिए यहां क्लिक कीजिए।

अर्जनः + जयति – अर्जुनो जयति

जैसे कि आप देख सकते हैं, यहां अर्जुनः एक पद है और जयति यह एक पद है। अतः उत्व होने के बाद इन दोनों पदों में अन्तर है। ठीक ऐसे ही अन्य उदाहरणों में भी देखा जा सकता है –

  • मुनिभ्यः + जलम् – मुनिभ्यो जलम्
  • अतिथिदेवः + भव – अतिथिदेवो भव
  • देवः + महेश्वरः – देवो महेश्वरः
  • असतः + मा – असतो मा
  • तमसः + मा – तमसो मा
  • बालकः + गच्छति – बालको गच्छति

उपसंहार

इस प्रकार से हमने उत्व सन्धि (utva sandhi) को पढ़ने का प्रयत्न किया है। इस विषय से सम्बन्धित आप के कोई भी प्रश्न हो तो आप निःसंकोच पूछ सकते हैं।

धन्यवाद!