इस सन्धि में विसर्ग के स्थान पर रुँ यह आदेश होता है। तथापि यहां जो उँ यह स्वर है वह इत् होने की वजह से उसका लोप हो जाता है। अतः केवल र् बचता है। अर्थात् विसर्ग के स्थान पर केवल र् इतना ही आदेश बाकी रह जाता है। इसीलिए बहुतेरे लोग इस सन्धिकार्य को रत्व भी कहतै हैं। पाणिनीय व्याकरण के अभ्यास के समय इस सन्धिकार्य को रुत्व इस नाम से जाना जाता है। तथा शालेय छात्रों को सरलता की दृष्टि से केवल रत्व इस नाम से प्रायः पढ़ाया जाता है।
अर्थात् रुत्व और रत्व एक ही सन्धिकार्य का नाम है।
रुत्व सन्धि का सूत्र
अ/आ-भिन्नस्वर + : + मृदुवर्ण = : –> र्
उदाहरण
मुनिः यजते।
- न् + इ + : + य
- न् + इ + र् + य
- निर्य
मुनिर्यजते।
अभ्यास
अन्य उदाहरणों के द्वारा रुत्व सन्धि का अभ्यास कीजिए
- विष्णुः गच्छति – विष्णुर्गच्छति।
- मुनेः + यज्ञः – मुनेर्यज्ञः
- ऋषिः + मुनिः – ऋषिर्मुनिः
- तैः + अपि – तैर् + अपि – तैरपि
- शनैः धावति – शैनैर्धावति
रुत्व सन्धि को वीडिओ के माध्यम से पढ़िए –
यदि कोई भी शंका या प्रश्न हो, तो जरूर पूछिए।
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