विसर्ग का लोप कैसे होता है? विसर्गलोप सन्धि

विसर्ग का लोप कैसे होता है?

 

प्रस्तावना

 
विसर्ग का लोप समझने से पहले हमें लोप किसे कहते हैं यह समझना जरूरी है।  लोप की व्याख्या अष्टाध्यायी में दी गई है – अदर्शनं लोपः।१।१।६०॥ 
यह सूत्र कहता है कि  और दर्शन यानी लोप है।  और दर्शन यानी न दिखना।  गायब हो जाना। इसे ही लोप कहा जाता है।
परंतु इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि जिसका भी लोग हुआ है वह नष्ट हो गया है।  बल्कि इसका तात्पर्य यह है कि  वह केवल गायब हुआ है,  वह नहीं दिख रहा है। अर्थात वह अस्तित्व में है केवल दिख नहीं रहा है।
हम विसर्ग का लोग सीख रहे हैं। इसका मतलब यह है कि विसर्ग का लोप होने के  बाद भी वह वही पर रहेगा केवल दिखेगा नहीं।

उदाहरण –

अर्जुन : + उवाच।

इस उदाहरण में यदि किसी नियम से विसर्ग  का लोप हो जाए तो हमें उत्तर ऐसे मिलेगा –

 अर्जुन  उवाच।

इस हालात में गुण संधि के नियम से – अर्जुनोवाच।  ऐसा अगला उत्तर हो सकता है। परंतु यहां हमें एक बात ध्यान में रखनी है कि विसर्ग  केवल गायब हुआ है उसका और दर्शन हुआ है।  यानी वह दिख नहीं रहा है। वह वहीं पर है  जहां पहले था। इसीलिए बीच में मौजूद विसर्ग गुण संधि को होने नहीं देखा। 

 

हम इसका निचोड़ इस तरह से  निकाल सकते हैं –

एक बार विसर्ग संधि होने के बाद  फिर से संधि नहीं होगा तथा पूर्व पद और उत्तर पद में अंतर बना रहेगा।

हम विसर्ग  संधि के तीन नियम सीखने वाले हैं –

  1. अ + विसर्गः + अभिन्नस्वरः
  2. आ + विसर्गः + मृदुवर्णः
  3. सः/एषः + अभिन्नवर्णः
उपर्युक्त स्थितियों में विसर्ग का लोप हो जाता है। हम बारी-बारी सभी को सीखने वाले हैं।

१. अ + विसर्गः + अभिन्नस्वरः

उपर्युक्त नियम को ध्यान से समझे। 
  • विसर्ग से पहले – अ यह स्वर होना चाहिए।  जैसे कि – रामः। देवः। चन्द्रः। विनायकः।  इन शब्दों में : से पहले अ  यह स्वर है। 
  • और  विसर्ग  के बाद अभिन्नस्वर  होना चाहिए। भिन्न शब्द का मतलब होता है अलग। अतः अभिन्नस्वरः  इसका मतलब है वह अ छोड़कर दूसरा कोई भी स्वर।
  •  ऐसी स्थिति होने पर विसर्ग  का लोप हो जाएगा।

उदाहरण

  • अर्जुनः + उवाच = अर्जुन उवाच। (ध्यान रखिए कि फिर से गुण संधि नहीं होगा)
    • न् + अ + : + उ
      • यहां विसर्ग से पहले अ है।
      • विसर्ग के बाद उ  यह स्वर है। यानी अभिन्नस्वर है।

अन्य उदाहरण

  • अतः + एव = अत एव
  • बालकः + इच्छति = बालक इच्छति।

२. आ + विसर्गः + मृदुवर्णः

इस नियम में बताया गया है कि –
  • विसर्ग से पहले – आ  यह स्वर होना चाहिए। जबकि इससे पहले संधि में बताया गया था कि विसर्ग से पहले आ होना चाहिए।
  •  तथा विसर्ग  के बाद कोई भी मृदुवर्ण होना चाहिए। (मृदु वर्ण के बारे में समझने के लिए इस कड़ी पर जाए।) 
  • ऐसी स्थिति होने पर विसर्ग का लोप हो जाएगा।

 उदाहरण

  • देवाः + गच्छन्ति = देवा गच्छन्ति।
    • व् + आ + : + ग
      • यहाँ विसर्ग से पहले आ है।
      •  और विसर्ग  के बाद ग है। जो कि एक मृदु वर्ण है।

अन्य उदाहरण

  • देवाः + आगच्छन्ति = देवा आगच्छन्ति।
  • ताः + बालिकाः = ता बालिकाः।
  • शिक्षकाः + वदन्ति = शिक्षका वदन्ति।
  • खगाः + उत्पतन्ति = खगा उत्पतन्ति।

३. सः/एषः + अभिन्नवर्णः

 इस नियम को जरा सावधानी से पढ़िए। 
  • सः अथवा एषः इन दोनों शब्दों के लिए ही खास तौर पर यह नियम बनाया गया है। यहाँ सः तत् शब्द का पुँल्लिङ्ग प्रथमा एकवचन है। तथा एषः एतत् शब्द का पुँल्लिङ्ग प्रथमा एकवचन है। 
  • यदि इन शब्दों के बाद कोई भी अभिन्नवर्ण आता है,  तो विसर्ग  का लोप हो जाता है।
    • अभिन्नवर्ण  क्या है?
      • अ से भिन्न वर्ण। भिन्न यानी अलग। हमारी वर्णमाला में स्वर और व्यंजन मिलाकर बहुत सारे वर्ण होते हैं।  उनमें से पहला वर्ण अ  को छोड़कर बाकी सभी वर्ण अभिन्नवर्ण हैं। फिर चाहे वह मृदु हो या कठोर हो इस से कोई फर्क नहीं पडता।
      • पहले नियम में अभिन्नस्वर का उल्लेख किया गया है। जिसका अर्थ है अ से अलग कोई भी स्वर। जैसे – आ इ उ ऋ इत्यादि। परन्तु अभिन्नवर्ण में अ को छोड कर स्वर और व्यञ्जनों सहित पूरी वर्णमाला समाहित है।

उदाहरण

  • सः
    • सः + पठति = स पठति।
    • सः + चलति = स चलति।
    • सः + गायति = स गायति।
    • सः + गच्छति = स गच्छति।
    • सः + आगच्छति = स आगच्छति।
  • एषः
    • एषः + पठति = एष पठति।
    • एषः + चलति = एष चलति।
    • एषः + गायति = एष गायति।
    • एषः + गच्छति = एष गच्छति।
    • एषः + आगच्छति = एष आगच्छति।

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