इस सन्धि का दूसरा नाम जश्त्व सन्धि भी है।
जश्त्व सन्धि का सूत्र
वर्गीय प्रथमवर्ण + मृदु वर्ण = वर्गीय प्रथमवर्म –>> वर्गीय तृतीयवर्ण
यदि वर्गीय प्रथम वर्ण के बाद कोई भी मृदु वर्ण आता है, तो उस वर्गीय प्रथम वर्ण का परिवर्तन हो कर उसकी जगह पर वर्गीय तृतीय वर्ण आ जाता है।
वर्गीय शब्द का अर्थ
वर्णमाला में निम्न व्यंजन वर्गीय २५ व्यंजन हैं –
- क् ख् ग् घ् ङ् – कवर्ग
- च् छ् ज् झ् ञ् – चवर्ग
- ट् ठ् ड् ढ् ण् – टवर्ग
- त् थ् द् ध् न् – तवर्ग
- प् फ् ब् भ् म् – पवर्ग
उपर्युक्त व्यंजनों को देखकर हम समझ सकते हैं कि –
- वर्गीय प्रथम वर्ण हैं – क्। च्। ट्। त्। प॥
- वर्गीय तृतीय वर्ण हैं – ग्। ज्। ड्। द्। ब्॥
मृदु वर्ण कौन से हैं
- सारे स्वर मृदु होते हैं।
- वर्गीय व्यंजनों में तीसरा, चौथा और पाँचवा व्यंजन मृदु होता है।
- अवर्गीय व्यंजनों में य्, र्, ल् और व् ये चार व्यंजन मृदु होते हैं।
अब हम जश्त्व सन्धि को सरलता से समझ सकते हैं –
जश्त्व सन्धि का सरल सूत्र
क्/च्/ट्/त्/प् + मृदुवर्ण = क्/च्/ट्/त्/प् –>> ग्/ज्/ड्/द्/ब्
जश्त्व सन्धि के उदाहरण
जगत् + ईशः
- त् + ई
- त् – वर्गीय प्रथम वर्ण
- ई – स्वर (सारे स्वर मृदु होते हैं)
- द् + ई
जगद् + ईशः – जगदीशः।
वाक् + देवी
- क् + दे
- क् – कवर्ग का प्रथम वर्ण।
- द् – तवर्ग का तीसरा वर्ण। अतः यह मृदु है।
- ग् + दे
वाक् + देवी – वाग्देवी। (यानी वाणी की देवता वाग्देवी सरस्वती)
सत् + आचार
- त् + आ
- द् + आ
- दा
सदाचार
वीडिओ से जश्त्व सन्धि सीखिए
वीडिओ १
वीडिओ २
अभ्यास
अन्य उदाहरणों से जश्त्व सन्धि का अभ्यास कीजिए।
भगवद्गीता
- भगवत् + गीता
- भगवद् + गीता
- भगवद्गीता
तुगागम
- तुक् + आगमः
- तुग् + आगमः
- तुगागमः
सुबन्त
- सुप् + अन्तः
- सुब् + अन्तः
- सुबन्तः
सम्राडशोक
- सम्राट् + अशोकः
- सम्राड् + अशोकः
- सम्राडशोकः।
वाग्देवी
- वाक् + देवी
- वाग् + देवी
- वाग्देवी
षडानन
- षट् + आनन
- षड् + आनन
- षडानन
दिगम्बर
- दिक् + अम्बर
- दिग् + अम्बर
- दिगम्बर
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