सन्धि के प्रकार

सन्धि किसे कहते हैं? तथा सन्धि व सन्धिकार्य में क्या अन्तर है इस बात को हमने पिछले लेख में देखा (पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।) आज का विषय है सन्धि के प्रकार।

जब भी सन्धि के प्रकारों की बात चलती है, तो आम तौर पर शिक्षक सन्धि के तीन प्रकार बताते हैं –

  • स्वरसन्धि
  • व्यञ्जनसन्धि
  • विसर्गसन्धि

परन्तु संस्कृत की दृष्टि से देखा जाए, तो हक़ीकत ऐसी नहीं है।

संस्कृत में सन्धि के पांच प्रकार होते हैं।

  • स्वरसन्धि
  • व्यञ्जनसन्धि
  • विसर्गसन्धि
  • स्वादिसन्धि
  • प्रकृतिभावसन्धि

इन पांचों सन्धि के प्रकारों में पहले तीन (स्वर, व्यंजन और विसर्ग) सन्धिप्रकारों के बारे में अधिकतर लोग जानते हैं। परन्तु स्वादिसन्धि और प्रकृतिभावसन्धि के विषय में कम ही लोग जानते हैं। चलिए, हम क्रमशः इन सभी प्रकारों का खुलासा करते हैं। लेकिन उससे पहले हमें पूर्ववर्ण और उत्तरवर्ण ये दोनों संकल्पनाएं जान लेनी ज़रूरी है। क्योंकि सन्धि के प्रकारों को समझने के लिए हर बार पूर्ववर्ण अथवा उत्तरवर्ण इन शब्दों का प्रयोग होता रहेगा।

पूर्ववर्ण और उत्तरवर्ण

जैसे कि हमने पिछले लेख में देखा कि सन्धिकार्य वर्णों में होता है। ना कि पदों में। अतः यहां पूर्ववर्ण तथा उत्तरवर्ण ऐसे शब्दों का प्रयोग हम कर रहे हैं। सन्धि कार्य में पूर्वपद तथा उत्तरपद ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे। क्योंकि सन्धि तो वर्णों में होता है, पदों में समास होता है। समासकार्य में हम पूर्वपद तथा उत्तरपद ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंगे। हां, कभी कबार इतना ज़रूर कह सकते हैं – पूर्वपद का अन्तिम वर्ण (यानी पूर्ववर्ण) और उत्तरपद का आदिवर्ण (यानी उत्तरवर्ण)। उत्तरवर्ण को परवर्ण भी कहते हैं।

पूर्ववर्ण तथा उत्तरवर्ण को हम इस आकृति के द्वारा समझ सकते हैं –

sandhi ke prakar - purvavarna aur uttar varna
पूर्ववर्ण और उत्तरवर्ण में अन्तर

अब हमें सन्धि के प्रकारों को समझना सुलभ होगा।

स्वरसन्धि (अच्सन्धि)

स्वरों को ही व्याकरण शास्त्र में अच् भी कहते हैं। इसीलिए स्वरसन्धि को अच्सन्धि (अच्-सन्धि) भी कहते हैं। यहां एक बात तो निश्चित है कि स्वरसन्धि में केवल स्वर ही हिस्सा लेते होंगे। अर्थात् स्वरसन्धि में पूर्ववर्ण और उत्तरवर्ण भी स्वर ही होता है।

स्वरसन्धि के उदाहरण

स्वरसन्धि के कुछ सामान्य उदाहरण हम यहां दे रहे हैं, जो सामान्यतः छात्रों को पता होने चाहिए। ध्यान रखिए यहां हमने उन ही सन्धिकार्यों को लिख रहे हैं जिनका सामान्यतः संस्कृत छात्रों को काम पड़ता है।

  • सवर्णदीर्घ
  • गुण
  • वृद्धि
  • यण्
  • अयादि-सन्धि
  • पूर्वरूप-सन्धि

इसे भी पढ़िए –

व्यंजनसन्धि (हल्सन्धि)

जैसे कि हमने अच्सन्धि (स्वरसन्धि) में देखा कि पूर्ववर्ण और उत्तरवर्ण दोनों भी यदि स्वर हैं, तो वह स्वरसन्धि होती है। परन्तु व्यञ्जनसन्थि के मामले में ऐसा नहीं है। व्यञ्जनसन्धि में पूर्ववर्ण और उत्तरवर्ण इन दोनों का व्यंजन होना जरूरी नहीं है। दोनों में से कोई एक भी व्यंजन हो तो भी काम चल सकता है।

व्यंजनसंधि किसे कहते हैं?

अर्थात् यदि सन्धि में पूर्ववर्ण और उत्तरवर्ण दोनों व्यंजन हो, अथवा दोनों में से कोई एक व्यंजन हो तो वह व्यंजसन्धि होता है। जैसे कि – जगत् + नाथ इस उदाहरण में त् + न् यह स्थिति है। दोनों भी व्यंजन हैं। अतः यह व्यंजनसन्धि है। परन्तु जगत् + ईश इस उदाहरण में त् + ई ऐसी स्थिति है। यहां पूर्ववर्ण त् एक व्यंजन है और उत्तरवर्ण ई एक स्वर है। तथापि यह व्यंजनसन्धि है।

व्यंजनसंधि के उदाहरण

  • जश्त्व – वर्गीयप्रथमवर्णानां तृतीयवर्णे परिवर्तनम्
  • अनुनासिकत्व – वर्गीयप्रथमवर्णानां पञ्चमवर्णे परिवर्तनम्
  • श्चुत्व
  • ष्टुत्व
  • मोऽनुस्वार
  • तुगागम

विसर्ग सन्धि

वस्तुतः विसर्ग एक स्वतन्त्र वर्ण है जो स्वरों पर आश्रित रहता है। अर्थात् बिना स्वर के विसर्ग का उच्चारण सम्भव नहीं है। इस बात को हमने पिछले लेख स्वर – संस्कृत वर्णमाला में पढ़ा था।

विसर्ग सन्धि के उदाहरण

  • उत्व
  • रुत्व
  • सत्व
    • विसर्गस्य श
    • विसर्गस्य ष
    • विसर्गस्य स
  • विसर्गस्य लोपः

मित्रों, स्वरसन्धि, व्यञ्जनसन्धि तथा विसर्गसन्धि के बारे में अधिकांश लोग जानते हैं। अब हम स्वादिसन्धि और प्रकृतिभावसन्धि का भी परिचय कर लेते हैं। हालांकि अधिकांश पाठ्यक्रमों में स्वर, व्यंजन और विसर्ग सन्धि ही होतै हैं। स्वादि और प्रकृतिभाव सन्ध नहीं होते। इसीलिए शालेय छात्रों को स्वादिसन्धि और प्रकृतिभावसन्धि का अध्ययन करने का अवसर बहुत ही कम मिलता है। इसीलिए इन दोनों का परिचय हम बिल्कुल संक्षेप में कर रहे हैं।

स्वादिसन्धि

स्वादिसन्धि को समझने के लिए स्वादि इस नाम को समझना ज़रूरी है। यहाँ यण् सन्धि है – सु + आदि = स्वादि। यहां सु एक विभक्तिप्रत्यय है जो प्रथमा एकवचन में प्रयुक्त होता है। इसके साथ आदि यह शब्द मिलाने से (सुआदि – स्वादि) मतलब बन जाता है – सु और अन्य सभी विभक्ति प्रत्यय।

अर्थात् स्वादि से तात्पर्य यह हुआ कि किसी प्रादिपदिक नाम से विभक्ति प्रत्यय जुडते समय जो खास कार्य होता है वह स्वादिसन्धि के नाम से जाना जाता है। लघुसिद्धान्त कौमुदी नामक ग्रन्थ में इस सन्धिकार्यों को विसर्गसन्धि में ही शामिल किया है। तथापि वैयाकरणसिद्धान्त कौमुदी नाम ग्रन्थ में इनके लिए स्वतन्त्र प्रकरण बना है। इस प्रकरण के कुछ प्रमुख सूत्र हैं –

प्रकृतिभावसन्धि

कभी कभी दो वर्णों में सन्धि भी होता है और सन्धिकार्य करने के लिए अनुकूल परिस्थिति भी होती है, तथापि सन्धि कार्य नहीं किया जाता है। ऐसी दशा को प्रकृतिभाव कहते हैं। जैसे कि –

  • मुनी + एतौ = मुनी एतौ

प्रस्तुत उदाहरण में ई + ए इस स्थिति में यण् हो सकता था। तथापि ईदूदेद् द्विवचनं प्रगृह्यम्। इस सूत्र से यहां सन्धि कार्य नहीं होता है। इसीलिए ऐसी स्थिति में यह प्रकृतिभाव है। यानी सन्धिकार्य के लिए मौका होने के बावजूद भी सन्धिकार्य ना करना

उपसंहार

तो इस प्रकार हमने सन्धिप्रकरण की पूर्वपीठिका को समझने का प्रयत्न किया। अब तक जितने लेख हमने पढ़े वे सभी बुनियाद पक्की करने वाले थे। आगे से हम साक्षात् सन्धिकार्य की प्रक्रिया देखने वाले हैं। हमे आशा है कि हमारा यह प्रयास संस्कृतछात्रों के लिए मददगार साबित होगा।

धन्यवाद

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