इस लेख में हम यण् सन्धि के विषय में पढ़ेंगे। यह लेख केवल संस्कृत ही नहीं, अपितु हिन्दी, मराठी आदि अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी उपयोगी है। क्योंकि यण् संधि का प्रयोग हर जगह पर होता है।
यण् सन्धि के सूत्र
यण् सन्धि के चार सूत्र हैं।
- इ/ई + अन्यस्वरः = इ/ई –> य्
- उ/ऊ + अन्यस्वरः = उ/ऊ –> व्
- ऋ/ॠ + अन्यस्वरः = ऋ/ॠ –> र्
- ऌ + अन्यस्वरः = ऋ/ॠ –> ल्
इस तरह से हम ने यहाँ यण् संधि के चारों सूत्रों को लिखा है। हम आप छात्रों से अनुरोध करते हैं कि इन चारों सूत्रों को कण्ठस्थ कीजिए। और यदि ये चार सूत्र कण्ठस्थ नहीं होते हैं, तो यण् संधि के अधिक से अधिक उदाहरणों को हल करने का अभ्यास कीजिए। जिससे ये चारों सूत्र अपने आप याद हो जाते हैं।
अन्यस्वर का अर्थ
यहाँ इन सूत्रों में प्रत्येक सूत्र में एक शब्द है – अन्यस्वर। इस पद को समझने का प्रयत्न करें।
अन्यस्वर का अर्थ होता है – कोई दूसरा स्वर। अर्थात् सूत्र के पूर्व में जो दो स्वर हैं, उन के अलवा कोई दूसरा स्वर। जैसे कि पहला सूत्र देखिए – इ/ई + अन्यस्वरः = इ/ई –> य्। यहाँ अन्यस्वर का अर्थ क्या होगा?
इस सूत्र के पूर्व में इ और ई ये दोनों स्वर हैं। यहाँ अन्यस्वर का अर्थ हुआ इ और ई को छोड़कर अन्य कोई भी स्वर। ठीक इसी प्रकार से बाकी तीन सूत्रों में भी आप को समझ लेना है।
यण् सन्धि का पाणिनीय अष्टाध्यायी सूत्र
वस्तुतः शालेय छात्रों के लिए हमने ऊपर चार सूत्र लिखे हैं। और शालेय स्तर पर उनका अभ्यास पर्याप्त है। तथापि आप की जानकारी के लिए बता रहे हैं कि पाणिनीय अष्टाध्यायी में उपर्युक्त यण् आदेश इस सूत्र से होते हैं। यदि आप चाहें, तो इस पाणिनीय सूत्र से भी यण् संधि का अभ्यास कर सकते हैं।
पाणिनीय पद्धति से यण् सन्धि को समझने के लिए ऊपर क्लिक कीजिए।
यण् संधि यह नाम कैसे पड़ा?
चलिए अब देख लेते हैं कि यण् संधि को यण् सन्धि यह नाम कैसे पड़ा। इस सन्धि में य्, र्, ल् और व् ये चार आदेश होते हैं। और इन चारों को संस्कृत व्याकरण में यण् कहते हैं।
य्, र्, ल्, व् = यण्
इसीलिए इस सन्धि को यण् सन्धि कहते हैं।
यण् सन्धि के उदाहरण
१) इ/ई + अन्यस्वरः = इ/ई –> य्
यह यण् सन्धि का पहला सूत्र है। इस सूत्र के अनुसार –
- यदि इ/ई के बाद कोई अन्य (भिन्न) स्वर आता है,
- तो इ/ई की जगह पर य् आदेश हो जाता है।
- यानी जो इ/ई पहले था वह य् में बदल जाता है।
यण् सन्धि के पहले सूत्र को वीडिओ के माध्यम से समझिए –
सुधी + उपास्य – सुध्युपास्य
- धी + उ …यहां सन्धिकार्य हो रहा है।
- ध् + ई + उ … ई के उत्तर में उ यह अन्य स्वर आया है, अतः यहां यण् हो सकता है।
- ध् + य् + उ … ई के स्थान पर् य् आदेश।
- ध्यु … वर्णसम्मेलन
सुध्युपास्य
सुध्युपास्य का अर्थ
सुधी – अच्छी बुद्धि वाले लोग (योगी)। उपास्य – उपासना करने योग्य। अच्छी बुद्धि वाले (योगी) लोगों के द्वारा उपासना करने योग्य। यह ऐसा तृतीया तत्पुरुष समास है – सुधीभिः उपास्यः – सुद्ध्युपास्यः। अर्थात् ईश्वर।
अभ्यास
नदी + उगम – नद्युगम
- दी + उ। यहाँ दी और उ इन दोनों में सन्धिकार्य हो रहा है।
- द् + ई + उ। यहाँ हम ने दी का विग्रह किया जिससे हम ने देखा की दी बना है द् और ई इन दोनों वर्णों से। और यहाँ पर ही हम देख सकते हैं कि ई + उ ऐसी स्थिति हो रही है। यहाँ ई के स्थान पर य् ऐसा आदेश प्राप्त होता है।
- द् + य् + उ। तो हम ने यहाँ ई के स्थान पर य् को रख दिया है।
- द्यु। और अन्त में द्, य् तथा उ को जोड़ कर द्यु बन जाता है।
नद्युगम। और अन्त में हमें ऐसा उत्तर मिल जाता है।
ठीक ऐसे ही अन्य उदाहरणों में भी प्रक्रिया होती है।
प्रति + एक – प्रत्येक
- ति + ए
- त् + इ + ए
- त् + य् + ए
- त्ये
प्रत्येक
मुनि + आदेशः – मुन्यादेशः
- नि + आ
- न् + ई + आ
- न् + य् + आ
- न्या
मुन्यादेशः
इन प्रत्येक उदाहरण में इ अथवा ई के स्थान पर य् आदेश हुआ है। क्योंकि इ/ई के बाद अन्यस्वर आया है। इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों का भी अभ्यास किया जा सकता है।
- यदि + अपि – यद्यपि (इ+अ)
- देवी + अर्पण – देव्यर्पण (ई+अ)
- रवि + उदय – रव्युदय (इ+उ)
- इति + आदि – इत्यादि (इ+आ)
इस प्रकार से हम ने यण् संधि के पहले सूत्र का अभ्यास किया है। अब चलिए अन्य सूत्रों का भी अभ्यास कर लेते हैं। अब दूसरा सूत्र है –
२) उ/ऊ + अन्यस्वरः = उ/ऊ –> व्
यदि उ/ऊ के बाद कोई अन्य (भिन्न) स्वर आता है, तो उ/ऊ की जगह पर व् आदेश हो जाता है। यानी जो उ/ऊ पहले था वह य् में बदल जाता है।
भानु + अस्त – भान्वस्त
- नु + अ … यहां सन्धि होता है।
- न् + उ + अ … यहां उ के बाद अ यह अन्यस्वर है; अतः यहां यण् हो सकता है।
- न् + व् + अ … यण्। अर्थात् उ के स्थान पर व् आदेश हुआ।
- न्व … वर्णसम्मेलन
भान्वस्त
भान्वस्त का अर्थ
भानु – सूर्य। अस्त – डूबना। सूर्य का डूबना। यानी सूर्यास्त।
अभ्यास
अनु + अय
- नु + अ
- न् + उ + अ
- न् + व् + अ
- न्व
अन्वय
इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों का भी अभ्यास किया जा सकता है।
- वधू + आगमन – वध्वागमन (ऊ+आ)
- बहु + आनन्द – बह्वानन्द (उ+आ)
- जानु + आसन – जान्वासन (उ+आ)
- अनु + इत – अन्वित (उ+इ)
३) ऋ/ॠ + अन्यस्वरः = ऋ/ॠ –> र्
यदि ऋ/ॠ के बाद कोई अन्य (भिन्न) स्वर आता है, तो ऋ/ॠ की जगह पर र् आदेश हो जाता है। यानी जो ऋ/ॠ पहले था वह र् में बदल जाता है।
पितृ + आज्ञा
- तृ + आ … यहां सन्धि होता है।
- त् + ऋ + आ … यहां ऋ के बाद आ यह अन्यस्वर है; अतः यहां यण् हो सकता है।
- त् + र् + आ … यण्। अर्थात् ऋ के स्थान पर र् आदेश हुआ।
- त्रा … वर्णसम्मेलन
ध्यान रखिए – त् + र् = त्र्
पित्राज्ञा
पित्राज्ञा का अर्थ
पितृ – पिता। आज्ञा – आदेश। पित्राज्ञा – पिताजी का आदेश। राम पित्राज्ञा से वन गए थे।
अभ्यास
मातृ + इच्छा
- तृ + इ
- त् + ऋ + इ
- त् + र् + इ
- त्रि
मात्रिच्छा
इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों का भी अभ्यास किया जा सकता है।
- धातृ + अंश – धात्रंश (ऋ+अं)
- कॄ + इति – क्रिति (ॠ+इ)
- कर्तृ + आदेश – कर्त्रादेश (ऋ+आ)
- दातृ + ऐश्वर्य – दात्रैश्वर्य (ऋ+ऐ)
४) ऌ + अन्यस्वरः = ऌ –> ल्
इस सूत्र के अनुसार यदि ऌ के बाद कोई अन्य (भिन्न) स्वर आता है, तो ऌ की जगह पर ल् आदेश हो जाता है। यानी जो ऌ पहले था वह ल् में बदल जाता है।
ऌ + आकृति
- ऌ + आ … यहां ऌ के बाद आ यह अन्यस्वर है; अतः यहां यण् हो सकता है।
- ल् + आ … यण्। अर्थात् ऌ के स्थान पर ल् आदेश हुआ।
- ला … वर्णसम्मेलन
लाकृति
लाकृति का अर्थ
ऌ – ऌ के जैसा (टेढा)। आकृति – आकार। लाकृति – ऌ के जैसा (टेढ़ा) आकार। बहुत बार नौ (९) इस संख्या को भी लाकृति कहते हैं। क्योंकि ९ को किसी भी संख्या से गुणिए, जो गुणाकार मिलता है उस में मौजूद अंकों को फिर से मिलाने पर पुनः ९ ही प्राप्त होतै हैं। जैसे कि –
९ x ४ = ३६ । ३ + ६ = ९।
अर्थात् ९ यह संख्या अपना (टेढा) गुण नहीं छोडती है। चाहे किस से भी गुणाकार कर लो। अतः इसे भी लाकृति कहते हैं। यानी अपना टेढ़ा स्वभाव ना छोडने वाली।
अभ्यास
घसॢ + आदेश
- सॢ + आ
- स् + ऌ + आ
- स् + ल् + आ
- स्ला
घस्लादेश
इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों का भी अभ्यास किया जा सकता है।
- गमॢ + इति – गम्लिति
वस्तुतः ऌ इस स्वर का भाषा में बहुत कम प्रयोग किया जाता है। इसीलिए ऌ इस स्वर सम्बन्धी उदाहरण बहुत कम पाए जाते हैं।

उपसंहार
संधिप्रकरण में यण् संधि एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संधि है। इस संधि का अभ्यास प्रायः सभी परीक्षाओं में होता है। इसीलिए सभी संस्कृत के छात्रों को (साथ में हिन्दी के भी) यण् संधि का अभ्यास अवश्य ही करना चाहिए।
हम ने इस लेख के माध्यम से यण् संधि के बारे में जानकारी देने का प्रयत्न किया है। यदि आप के कोई शंका, समस्या अथवा प्रश्न हो, तो अवश्य ही हमें बताईए।
धन्यवाद।
फारचं छान,गणिताप्रमाणे फोड करुन सांगितल्याने लवकर कळतं,पूर्व पदाचा अंतिम वर्ण आणि उत्तर पदाचा प्रथम वर्ण
जसे:–यदि+अपि
यदि=य्+अ+द्+(इ)
अपि=(अ)+प्+इ
इ+अ=य
य्+अ+द्+य+प्+इ=यद्यपि
धन्यवाद! गीता जी।
आभारी आहे।
धन्यवाद! गीता जी।
आभारी आहे।
Ankit roll 4 class 6thg
बहु समीचीनम् उत्तमं च अस्ति।
धन्यवादः मत्प्रियात्मीय बन्धो
बहु समीचीनम् उत्तमं च।
It’s Very Nice Information…