वृद्धि सन्धि

इस संधि को वृद्धि सन्धि यह नाम क्यों पड़ा? पाणिनीय अष्टाध्यायी का सबसे पहला सूत्र है –

वृद्धिरादैच्।१।१।१॥

– पाणिनीय सूत्रपाठ (अष्टाध्यायी)

इस सूत्र का कहना यह है कि आ, ऐ तथा औ इन तीनों स्वरों को वृद्धि कहा जाएं। यानी इन तीनों स्वरों को वृद्धि कहते हैं। यदि हम वृद्धि संधि के सूत्रों को देखें, तो पता चलता है कि इस सन्धि में जो आदेश हो रहे हैं, वे यही वृद्धि स्वर हैं।

वृद्धि संधि का वीडिओ

इस वृद्धि संधि को आप इस वीडिओ के माध्यम से बी सीख सकते हैं।

वृद्धि संधि

यदि आप लिखत रूप में वृद्धि संधि को पढ़ना चाहते हैं तो इस लेख को पढ़ना जारी रखिए।

वृद्धि सन्धि के सूत्र

यूँ तो पाणिनीय अष्टाध्यायी में वृद्धि सन्धि के लिए वृद्धिरेचि ६।१।८८॥ यह सूत्र पढ़ा गया है। तथापि यदि आप शालेय स्तर के छात्र हैं अथवा सामान्य अध्येता हैं, तो आप के लिए वृद्धि सन्धि ये दो सूत्र उपयुक्त हैं –

  1. अ/आ + ए/ऐ – ऐ
  2. अ/आ + ओ/औ – औ

इन दोनों सूत्रों को अब हम विस्तार से पढ़ते हैं। चलिए पढ़ते हैं पहला सूत्र –

१) अ/आ + ए/ऐ – ऐ

यदि सन्धिकार्य करते समय –

  • पूर्ववर्ण अ अथवा आ हो,
  • तथा उत्तरवर्ण ए अथवा ऐ हो, तो

दोनों के स्थान पर यह आदेश हो जाता है।

उपर्युक्त सूत्र के लिए वृद्धि सन्धि का उदाहरण

सदा + एव – सदैव। सदा – हमेशा, एव – ही। सदैव – हमेशा ही।यहाँ दा और ए इन दोनों स्थानों पर सन्धिकार्य होने जा रहा है।

  • दा + ए। यहाँ सर्वप्रथम दा का वर्णच्छेद करना होगा।
  • द् + आ + ए।यहाँ हम साफ साफ देख सकते हैं कि यहाँ उपर्युक्त वृद्धि सन्धि का सूत्र लागू होता है।
  • द् + + । आ और ए दोनों भी अपने स्थानों से हट जाएंगे और ऐ यह आदेश होगा।
  • द् + ऐ। वृद्धिसन्धि का कार्य हो गया है।
  • दै

दैव।

अन्य उदाहरणों से वृद्धिसन्धि के प्रथम सूत्र का अभ्यास

  • तथा + एव – तथैव।
  • च + एव – चैव।
  • मा + एवम् – मैवम्।
  • न + एतत् – नैतत्।
  • सा + एषा – सैषा।
  • एक + एकम् – एकैकम्।
  • कृष्ण + एकत्वम् – कृष्णैकत्वम्।
  • राष्ट्र + ऐक्यम् – राष्ट्रैक्यम्।
  • मत + ऐक्यम् – मतैक्यम्।
  • देव + ऐश्वर्यम् – देवैश्वर्यम्।

अब हम वृद्धि सन्धि के दूसरे सूत्र का अभ्यास करेंगे।

२) अ/आ + ओ/औ – औ

यदि सन्धिकार्य करते समय –

  • पूर्ववर्ण अ अथवा आ हो,
  • तथा उत्तरवर्ण ओ अथवा औ हो, तो

दोनों के स्थान पर यह आदेश हो जाता है।

उपर्युक्त सूत्र के लिए वृद्धि सन्धि का उदाहरण

वन + औषधम् – वनौषधम्। वन – जंगल। औषधम् – दवा। वनौषधम् – जंगली दवा। यहाँ न और औ इन दोनों स्थानों पर सन्धिकार्य होने जा रहा है।

  • न + औ। यहाँ सर्वप्रथम का वर्णच्छेद करना होगा।
  • न् + अ + औ।यहाँ हम साफ साफ देख सकते हैं कि यहाँ उपर्युक्त वृद्धि सन्धि का सूत्र लागू होता है।
  • न् + + । अ और औ दोनों भी अपने स्थानों से हट जाएंगे और औ यह आदेश होगा।
  • न् + औ। वृद्धिसन्धि का कार्य हो गया है।
  • नौ

नौषधम्।

अन्य उदाहरणों से वृद्धिसन्धि के द्वितीय सूत्र का अभ्यास

  • कण्ठ + ओष्ठम् – कण्ठौष्ठम्।
  • गङ्गा + ओघ – गङ्गौघ।
  • कर्ण + औदार्य – कर्णौदार्य।
  • मम + औदासीन्यम् – ममौदासीन्यम्।
  • बाल + औत्सुक्यम् – बालौत्सुक्यम्।
  • बालक + औत्सुक्यम् – बालकौत्सुक्यम्।
  • बालिका + औत्सुक्यम् – बालिकौत्सुक्यम्।

उपसंहार

इस प्रकार से हमने ढेर सारे उदाहरणों के साथ वृद्धि संधि का विस्तार से अध्ययन किया। यदि आप को कोई भी शंका, समस्या अथवा प्रश्न हो तो हमसे नीचे टिप्पणी (कमेंट) के द्वारा जरूर पूछ सकते हैं।

धन्यवाद!

2 thoughts on “वृद्धि सन्धि”

  1. It seems you are blessed with a real capability for writing original content. I agree with your way of thinking. My appreciation for writing this.

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