इतरेतर द्वन्द्व समास – संस्कृत

संस्कृत भाषा में द्वन्द्व समास के तीन प्रकार हैं –

  • इतरेतर द्वन्द्व समास
  • समाहार द्वन्द्व समास
  • एकशेष द्वन्द्व समास

आज हम इस लेख में इतरेतर द्वन्द्व समास के बारे में पढ़ेंगे।

इतरेतर द्वन्द्व समास कब और किन पदों में होता है?

जब एक ही विभक्ति में दो या दो से ज्यादा पद एक ही विभक्ति में आते हैं तब उन पदों का इतरेतर द्वन्द्व समास होता है। जैसे की –

  • रामः लवस्य कुशस्य च पिता अस्ति।

यहाँ इस उदाहरण में लवस्य और कुशस्य ये दोनों भी पदों की विभक्ति एक ही है – षष्ठी। और साथ ही साथ इस अव्यय की मौजूदगी भी दिखती है। ऐसी स्थिति में इतरेतर द्वन्द्व समास हो कर यही वाक्य कुछ इस प्रकार होगा –

  • रामः लवकुशयोः पिता अस्ति।

ऐसे ही कुछ अन्य उदाहरण देखिए।

  • शिवाय पार्वत्यै च नमः। शिव और पार्वती को नमस्कार है।
  • शिवपार्वतीभ्यां नमः। शिवपार्वती को नमस्कार है।
  • रामः लक्ष्मणः च भ्रातरौ स्तः। राम और लक्ष्मण भाई हैं।
  • रामलक्ष्मणौ भ्रातरौ स्तः। रामलक्ष्मण भाई हैं।
  • कर्णः च अर्जुनः च युद्धं कुरुतः। कर्ण और अर्जुन युद्ध करते हैं।
  • कर्णार्जुनौ युद्धं कुरुतः। कर्णार्जुन युद्ध करते हैं।
  • भक्तः देवाय धूपं च दीपं च नैवेद्यं च अर्पयति। भक्त देव को धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करता है।
  • भक्तः देवाय धूपदीपनैवेद्यानि अर्पयति। भक्त देव को धूपदीपनैवेद्य अर्पित करता है।

इन उदाहरणों को देख कर आप को इतरेतर द्वन्द्व समास के बारे में अंदाजा आ गया होगा। अब चलिए इस इतरेतर द्वन्द्व समास को विस्तार से समझते हैं।

द्वन्द्व समास का पाणिनीय अष्टाध्यायी में सूत्र

इस सूत्र के द्वारा पाणिनीय अष्टाध्यायी में द्वन्द्व समास के बारे में जानकारी मिलती है।

चार्थे द्वन्द्वः।२।२।२९

अष्टाध्यायी

सूत्र का अर्थ

जब अनेक शब्द इस अव्यय से जुड़े होते हैं तब वे एकत्रित आकर समास करते हैं। इस समास को द्वन्दव समास कहते हैं।

अर्थात् –

इस अव्यय का अर्थ होता है – और (and)। इस की मदद से जो पद एक ही वाक्य में और एक ही विभक्ति में एक दूसरे से संबंध बनाते हैं वे द्वन्द्व समास कर सकते हैं।

जैसे की –

  • शिवाय पार्वत्यै नमः।
  • रामः लक्ष्मणः भ्रातरौ स्तः।
  • कर्णः अर्जुनः युद्धं कुरुतः।
  • भक्तः देवाय धूपं दीपं नैवेद्यं अर्पयति।

परन्तु सामान्य व्यवहार में प्रत्येक पद के बाद च इस अव्यय को लिखने की आवश्यकता नहीं होती है। इसीलिए केवल अन्तिम पद के बाद ही च को लिखते (बोलते) हैं। जैसे की –

  • शिवाय पार्वत्यै नमः।
  • रामः लक्ष्मणः भ्रातरौ स्तः।
  • कर्णः अर्जुनः युद्धं कुरुतः।
  • भक्तः देवाय धूपं दीपं नैवेद्यं अर्पयति।

और इन के समास को तो आप देख ही चुके हैं। परन्तु इन समासों में आप देख सकते हैं कि समास करते समय च गायब होता है।

  • शिवायपार्वतीभ्यां नमः।
  • रामलक्ष्मणौ भ्रातरौ स्तः।
  • कर्णार्जुनौ युद्धं कुरुतः।
  • भक्तः देवाय धूपदीपनैवेद्यानि अर्पयति।

इतरेतर द्वन्द्व समास कैसे करते हैं?

जब भी आप को ऐसा कोई वाक्य मिले जिसमें आप को एक ही वाक्य में कई शब्द समान विभक्ति में और च से जुड़े मिलते हैं तो निम्न चरणों से उनका समास करें।

  1. सर्वप्रथम च को हटाना।
  2. सभी पदों के विभक्तिप्रत्यय को हटाना।
  3. सभी पदों का सन्धि करना।
  4. अन्तिम पद जिस लिंग का होगा वह ही लिंग पूरे सामासिक शब्द का होगा।
  5. जिस विभक्ति के प्रत्ययों को हटाया था वही विभक्ति अन्तिम पद की होगी।
  6. जितने पदों ने मिल कर समास किया है उन के हिसाब से सामासिक शब्द का वचन होगा। यदि दो पदों का समास हो तो सामासिक शब्द भी द्विवचन का होगा और यदि दो से ज्यादा पदों का समास होगा तो सामासिक शब्द का भी बहुवचन होगा।

इतरेतर द्वन्द्व समास का उदाहरण

हम उदाहरण के लिए इस वाक्य को ले रहे हैं –

  • शिवाय च पार्वत्यै च नमः।

सर्वप्रथम च को हटाते हैं।

  • शिवाय पार्वत्यै नमः।

शिवाय और पार्वत्यै ये दोनों पद चतुर्थी विभक्ति में हैं। इनके चतुर्थी विभक्ति के प्रत्यय को हटाते हैं।

  • शिव पार्वती नमः।

अब इन में सन्धि करेंगे।

  • शिवपार्वती नमः

यहाँ अन्तिम पद (पार्वती) स्त्रीलिंग का शब्द है। अतः पूरा सामासिक शब्द स्त्रीलिंग का होगा।

  • शिवपार्वती + स्त्री॰ नमः।

हम ने चतुर्थी विभक्ति को हटाया था। इसीलिए अब अन्तिम शब्द (जो की पार्वती है) को चतुर्थी विभक्ति लगाएगे।

  • शिवपार्वती + स्त्री॰ + चतुर्थी नमः।

यहाँ दो पदों से समास हुआ है। इसीलिए पूरा सामासिक शब्द द्विवचनी होगा।

  • शिवपार्वती + स्त्री॰ + चतुर्थी + द्विवचनम् नमः।

कुल मिला कर शिवपार्वती यह दीर्घ ईकारान्त शब्द बनता है और यह नदी जैसे चल सकता है। और नदी का चतुर्थी द्विवचन है – नदीभ्याम्। तो शिवपार्वती का भी चतुर्थी द्विवचन होगा – शिवपार्वतीभ्याम्।

तो इस प्रकार से हमारा समास है –

  • शिवपार्वतीभ्यां नमः।

इतरेतर द्वन्द्व समास के अन्य उदाहरण

रामः लक्ष्मणः च भ्रातरौ स्तः।

  1. रामः लक्ष्मणः च भ्रातरौ स्तः। (च का लोप)
  2. रामः लक्ष्मणः भ्रातरौ स्तः। (प्रथमा विभक्ति का लोप)
  3. राम लक्ष्मण भ्रातरौ स्तः। (सन्धि)
  4. रामलक्ष्मण भ्रातरौ स्तः। (अन्तिम पद से पुँल्लिंग)
  5. (रामलक्ष्मण + पुँ॰) भ्रातरौ स्तः। (पुनः प्रथमा विभक्ति)
  6. (रामलक्ष्मण + पुँ॰ + प्रथमा) भ्रातरौ स्तः। (दो पदों से द्विवचन)
  7. (रामलक्ष्मण + पुँ॰ + प्रथमा + द्विवचनम्) भ्रातरौ स्तः।
    • रामलक्ष्मणौ भ्रातरौ स्तः

गङ्गा च यमुना च नद्यौ स्तः।

  1. गङ्गा च यमुना च नद्यौ स्तः। (च का लोप)
  2. गङ्गा यमुना नद्यौ स्तः। (प्रथमा विभक्ति का लोप। स्त्रीलिंग में प्रथमा विभक्ति का कोई प्रत्यय ना होने से विभक्तिलोप के बावजूद भी गङ्गा और यमुना ये पद समान ही रहेंगे।)
  3. गङ्गा यमुना नद्यौ स्तः। (सन्धि)
  4. गङ्गायमुना नद्यौ स्तः। (अन्तिम पद से स्त्रीलिंग)
  5. (गङ्गायमुना + स्त्री॰) नद्यौ स्तः। (पुनः प्रथमा विभक्ति)
  6. (गङ्गायमुना + स्त्री॰ + प्रथमा) नद्यौ स्तः। (दो पदों से द्विवचन)
  7. (गङ्गायमुना + स्त्री॰ + द्विवचनम्) नद्यौ स्तः।
    • गङ्गायमुने नद्यौ स्तः।

अग्निः च आकाशः च वायुः च पृथ्वी च जलं च।

  1. अग्निः च आकाशः च वायुः च पृथ्वी च जलं च। (च का लोप)
  2. अग्निः आकाशः वायुः पृथ्वी जलम्। (प्रथमा विभक्ति का लोप)
  3. अग्नि आकाश वायु पृथ्वी जल। (सन्धि)
  4. अग्न्याकाशवायुपृथ्वीजल। (अन्तिम पद से नपुंसकलिंग)
  5. (अग्न्याकाशवायुपृथ्वीजल + नपुं॰)। (पुनः प्रथमा विभक्ति)
  6. (अग्न्याकाशवायुपृथ्वीजल + नपुं॰ + प्रथमा)। (बहुत सारे पदों से बहुवचन)
  7. (अग्न्याकाशवायुपृथ्वीजल + नपुं॰ + प्रथमा + बहु॰)।
    • अग्न्याकाशवायुपृथ्वीजलानि।

देवाः च दानवाः च युद्धं कुर्वन्ति।

  1. देवाः च दानवाः च। (च का लोप)
  2. देवाः दानवाः। (प्रथमा विभक्ति का लोप)
  3. देव दानव। (सन्धि)
  4. देवदानव (अन्तिम पद से पुँल्लिंग)
  5. (देवदानव + पुँ॰)। (पुनः प्रथमा विभक्ति)
  6. (देवदानव + पुँ॰ + प्रथमा)। (यहाँ भलेही केवल देव और दानव ऐसे दो ही पद दिख रहे हैं। परन्तु मूल उदाहरण में ये दोनों भी पद बहुवचन में हैं। इसीलिए देव और दानवों की कुल संख्या दो से ज्यादा होती है। इसीलिए बहुवचन होगा।)
  7. (देवदानव + पुँ॰ + प्रथमा + बहु॰) = देवदानवाः
    • देवदानवाः युद्धं कुर्वन्ति।

इतरेतर द्वन्द्व समास का अभ्यास

निम्नलिखित उदाहरणों से आप इतरेतर द्वन्द्व समास का सम्यक अभ्यास कर सकते हैं।

  1. शिवः च केशवः च – शिवकेशवौ।
  2. ईशः च कृष्णः च – ईशकृष्णौ।
  3. न्यायः च वैशेशिकः च – न्यायवैशेशिकौ।
  4. हरिः च हरः च – हरिहरौ।
  5. हरये च हराय च – हरिहराभ्याम्।
  6. हरौ च हरे च – हरिहरयोः।
  7. पिके च काके च – पिककाकयोः।
  8. कृषकः च बलीवर्दौ च – कृषकबलिवर्दाः।
  9. सुखं च दुःखं च – सुखदुःखे।
  10. फलं च पुष्पं च – फलपुष्पे।
  11. फलानि च पुष्पानि च – फलपुष्पानि।
  12. कौरवानां च पाण्डवानां च – कौरवपाण्डवानाम्।
  13. लता च तरुः च गुल्माः च – लतातरुगुल्माः।
  14. धर्मः च अर्थः च कामः च मोक्षः च – धर्मार्थकाममोक्षाः।
  15. जले च वायौ च – जलवाय्वोः।
  16. माता च पिता च – मातापितरौ। (यहाँ ‘पितरौ’ ऐसा एकशेष द्वन्द्व समास भी बनता है। उसे हमें स्वतन्त्र लेख में पढ़ेगे। परन्तु ऐसा करना वैकल्पिक है। अतः यहाँ मातापितरौ और पितरौ ये दोनों भी उत्तर सही हैं।)

द्वन्द्व समास में कौनसा पद पहले लेना चाहिए?

आप जानते हैं कि द्वन्द्व समास में अनेक पद एकत्रित आकर समास बनाते हैं। ऐसे में किस पद को पहले लिया जाए और किस को बाद में लिया जाए यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है।

इस के लिए कुछ नियम हैं।

नियम १

इस में पहला नियम इस सूत्र में है –

अजाद्यन्तम्।२।२।३३॥

अष्टाध्यायी
  • द्वन्द्वे अच्-आदि-अत्-अन्तं पूर्वम्।

इस सूत्र का कहना यह है कि यदि द्वन्द्व समास में कोई –

  • स्वरादि (जिसकी शुरुआत में कोई स्वर हो), और
  • अकारान्त (जिसके अन्त में अ यह स्वर हो)

तो ऐसे पद को पहले लेते हैं। जैसे की – ईशः च कृष्णः च। यहाँ ईशः यह शब्द स्वरादि है और अकारान्त भी है। अतः समास में पहले आया।

नियम २

दूसरा नियम इस सूत्र में है –

अल्पाच्तरम्।२।२।३४॥

अष्टाध्यायी
  • द्वन्द्वे अल्प-अच्-तरं पूर्वम्।

इस सूत्र का कहना यह है कि जिस पद में कम स्वर हो वह पद पहले लिया जाता है। जैसे की – शिवः च केशवः च। इस उदाहरण में शिवः ( श् + + व् + + : ) इस पद में कुल दो स्वर हैं और केशवः ( क् + ए + श् + अ + व् + अ + :  ) इस पद में कुल तीन स्वर हैं।

यहाँ शिवः इस पद में कम स्वर हैं। इसीलिए शिव यह शब्द समास में पहले आया – शिवकेशवौ।

इस प्रकार से हमने ये दोनों नियम तो देखे परन्तु प्रायः देखने में यह आता है कि ये नियम व्यवहार में लोग अपनी मर्जी से प्रयुक्त करते हैं। लोगों को जो सुविधाजनक लगता है वही करते हैं। प्रयोगशरणाः वैयाकरणाः।

उपसंहार

इस प्रकार से हम ने यथाशक्ति, यथामति इतरेतर द्वन्द्व समास को समझाने का प्रयत्न किया है। यदि आप को कोई शंका, प्रश्न और समस्या (शङ्काप्रश्नसमस्याः J) हो तो हमे जरूर पूछ सकते हैं।

धन्यवाद।

इतरेतर द्वन्द्व समास (संस्कृत) – वीडिओ