इससे पूर्व हम ने द्वन्द्व समास की शृंखला में इतरेतर द्वन्द्व समास का अध्ययन किया है। जिस में हम ने देखा था कि यदि एक ही वाक्य में दो या दो से ज्यादा पद एक ही विभक्ति में आते हैं और च इस अव्यय से आपस में संबंधित होते हैं तो उन का इतरेतर द्वन्द्व समास होता है।
और इस इतरेतर द्वन्द्व समास में महत्त्वपूर्ण बात यह हैं कि यह समास या तो द्विवचन का होता है अथवा बहुवचन का होता है। जैसे की –
- रामः च कृष्णः च – रामकृष्णौ
- रामः च श्यामः च कृष्णः च – रामश्यामकृष्णाः
और विभिन्न लिंगों में भी होते हैं। जैसे कि –
- रामः च सीता च – रामसीते
- पत्रं च पुष्पं च फलं च – पत्रपुष्पफलानि
इतरेतर द्वन्द्व समास के बारे में अधिक विस्तार से पढ़ने के लिए इस सूत्र पर जाएं –
समाहार द्वन्द्व समास की आवश्यकता
परन्तु बहुत बार हम व्यवहार में देख सकते हैं कि दो या अधिक शब्द मिलकर बना हुआ शब्द भी एकवचन में प्रयुक्त किया जाता है। जैसे कि –
- मैं ने आलुपराठा खाया।
- मुझे दालरोटी पसंद है।
- मुझे पानीपुरी पसंद नहीं है।
यही समाहार द्वन्द्व समास होता है।
इन वाक्यों में आलुपराठा यह शब्द आलु और पराठा इन दो शब्दों से बना है। फिर भी आलुपराठा यह शब्द एकवचनी है – मैं ने आलुपराठा खाया।
इस वाक्य में हम आलु और पराठा इन दोनों चीजों की अलग अलग बात नहीं कर रहे हैं। अपितु दोनों चीजों से बनी हुई एक वस्तु – आलुपराठा की बात कर रहे हैं।
अतः आलुपराठा यह एकवचनी शब्द है।
ठीक वैसे ही दालरोटी यह शब्द भी दो पदों से बना है। परन्तु हम दाल और रोटी इन को अलग-अलग नहीं मानते हैं। परन्तु यहाँ हम दाल और रोटी को एकत्रित एक पदार्थ मान कर व्यवहार करते हैं। इसीलिए दालरोटी यह एकवचनी शब्द है।
पानीपुरी (गोलगप्पा) इस शब्द में भी पानी और पुरी इन दोनों को मिलाकर जो पदार्थ तैयार होता है उस को ध्यान में रख कर व्यवहार होता है। इसीलिए पानीपुरी भी एकवचनी शब्द है।
संस्कृत में समाहार द्वन्द्व समास क्या होता है?
जब द्वन्द्व समास में समास करनेवाले पद बहुत संख्या में होने के बावजूद उन सभी पदों को एकत्रित समूह मानकर एकवचन में व्यवहार करते हैं तो ऐसी स्थिति में वह सामासिक शब्द समाहार द्वन्द्व कहलाता है।
संस्कृत भाषा की बात करें तो समाहार द्वन्द्व समास का अन्तिम पद किसी भी लिंग का हो और समास में कितने भी पद हो, समाहार द्वन्द्व समास हमेशा नपुंसकलिंग और एकवचन का ही होता है।
समाहार द्वन्द्व समास का विग्रह वाक्य
समाहार द्वन्द्व समास का पहला चरण इतरेतर द्वन्द्व समास जैसा ही होता है। बाद में तत्/इदम् शब्द का योग्य षष्ठी रूप और अन्त में समाहारः यह शब्द होता है। जैसे कि –
- दधि च ओदनं च एतयोः समाहारः।
जैसे कि हम देख सकते हैं इस उदाहरण में दधि च ओदनं च यहाँ तक इतरेतर कै जैसे ही है। परन्तु एतयोः समाहारः ये दो शब्द ज्यादा हैं। अब इनकी प्रक्रिया देखें।
समाहार द्वन्द्व समास का कार्य
- च, विभक्ति और एतयोः/एतेषां समाहारः इन सभी का लोप
- सन्धि
- प्राप्त सामासिक शब्द को नपुंसक लिंग और एकवचन में लिखना
समाहार द्वन्द्व समास के उदाहरण
प्रश्नः १ – दधि च ओदनं च एतयोः समाहारः इत्यस्य समासकार्यं कुरुत।
- दधि च ओदनं च एतयोः समाहारः
- दधि ओदन (लोपः)
- दध्योदन (सन्धिः)
- दध्योदनम् (नपुंसकलिङ्ग-एकवनचम्)
उत्तरम् – दध्योदनम्
प्रश्नः २ – प्रश्नः च उत्तरं च एतयोः समाहारः इत्यस्य समासकार्यं कुरुत।
- प्रश्नः च उत्तरं च एतयोः समाहारः
- प्रश्न उत्तर (लोपः)
- प्रश्नोत्तर (सन्धिः)
- प्रश्नोत्तरम् (नपुंसकलिङ्ग-एकवनचम्)
उत्तरम् – प्रश्नोत्तरम्
प्रश्नः ३ – कण्ठः च ओष्ठौ च एतेषां समाहारः इत्यस्य समासकार्यं कुरुत।
- कण्ठः च ओष्ठौ च एतेषां समाहारः
- कण्ठ ओष्ठ (लोपः)
- कण्ठौष्ठ (सन्धिः)
- कण्ठौष्ठम् (नपुंसकलिङ्ग-एकवनचम्)
उत्तरम् – कण्ठौष्ठम्
प्रश्नः ४ – पाणिः च पादौ च एतेषां समाहारः इत्यस्य समासकार्यं कुरुत।
- पाणिः च पादौ च एतेषां समाहारः
- पाणि पाद (लोपः)
- पाणिपाद (सन्धिः)
- पाणिपादम् (नपुंसकलिङ्ग-एकवनचम्)
उत्तरम् – पाणिपादम्
समाहार द्वन्द्व समास का अभ्यास
नीचे हम ने आप के अभ्यास के लिए कुछ और उदाहरण दिए हैं। कृपया उन को हल करें और उनके उत्तर नीचे टिप्पणी (कमेंट) में जरूर लिखिए।
- रामः च कृष्णः च एतयोः समाहारः
- पठनं च पाठनं च एतयोः समाहारः
- पत्रं च पुष्पं च फलं च एतेषां समाहारः
- चरः च अचरः च एतयोः समाहारः
- देवः च राक्षसः च एतयोः समाहारः
- देवाः च राक्षसाः च एतेषां समाहारः
- अन्नं च वस्त्रं च गृहं च एतेषां समाहारः
- नदी च समुद्रः च एतयोः समाहारः
- नदी च समुद्रः च तडागः च एतेषां समाहारः
- नदी च समुद्रः च तडागः च कूपः च एतेषां समाहारः
अनकारान्त (जो शब्द अकारान्त नहीं हैं) समाहार द्वन्द्व को नपुंसक बनाने का तरीका
समाहारद्वन्द्व समास हमेशा नपुंसकलिङ्ग एकवचन में ही होता है। जैसे कि –
- नदी च समुद्रः च एतयोः समाहारः – नदीसमुद्रम्।
परन्तु यदि –
- समुद्रः च नदी च एतयोः समाहारः।
ऐसा प्रश्न रहा तो क्या इसका उत्तर – समुद्रनदीम् ऐसा लिखना सही है?
बिल्कुल नहीं। यहाँ कुछ नियम हैं।
अनकारान्त समाहार द्वन्द्व का नियम १
यदि अनकारान्त (अनकारान्त – जो अकारान्त नहीं है। यानी इकारान्त, उकारान्त इत्यादि) शब्द को नपुंसक बनाना हो तो उसे ह्रस्व बनाते हैं और उसे – अम् यह प्रत्यय नहीं होगा और विसर्ग भी नहीं होगा।
जैसे कि –
- नदी – नदि
- चमू – चमु
- मुनिः – मुनि
- भक्तिः – भक्ति
- हरिः – हरि
- दाता – धातृ
- नेता – नेतृ
उदाहरण
यहाँ हम दो प्रकार के उदाहरणों का अध्ययन करेंगे। पहला प्रकार दीर्घान्त पदों का रहेगा। यानी उन शब्दों को रहेंगा जिनके अन्त में दीर्घ स्वर हो। और दूसरे प्रकार में हम ह्रस्वान्त पदों का, यानी ऐसे अनकारान्त पद जिनके अन्त में ह्रस्व स्वर होगे, का अध्ययन करेंगे।
उदाहरण प्रकार १
- समुद्रः च नदी च एतयोः समाहारः – समुद्रनदि।
- वरः च वधू च एतयोः समाहारः – वरवधु।
- सूर्यः च पृथिवी च एतयोः समाहारः – सूर्यपृथिवि।
- शिवः च पार्वती च एतयोः समाहारः – शिवपार्वति।
उपर्युक्त शब्द ई या ऊ से अन्त होने वाले थे। अर्थात् दीर्घ ईकारान्त और ऊकारान्त। इन को नपुसंक बनाने के लिए इनकी जगह क्रमशः इ तथा उ पुनर्थापित (रीप्लेस) करने पड़ते हैं। और उनको अम् प्रत्यय नहीं करना है। यानी समुद्रनदिम्। वरवधुम्। ऐसा नहीं लिखना है। केवल समुद्रनदि, वरवधु इतना ही ठीक है।
उदाहरण प्रकार २
- नदी च भूमिः च एतयोः समाहारः – नदीभूमि।
- शिवः च विष्णुः च एतयोः समाहारः – शिवविष्णु।
- भक्तः च भक्तिः च एतयोः समाहारः – भक्तभक्ति।
- देवः च मुनिः च एतयोः समाहारः – देवमुनि।
देवः च ऋषिः च एतयोः समाहारः – देवर्षि। (यहाँ देव + ऋषि में गुण सन्धि है।)
उपर्युक्त शब्दों में ह्रस्व इ या उ से अन्त होने वाले शब्द थे। अब ये शब्द पहले से ही ह्रस्व हैं तो इन को पुनः ह्रस्व बनाने की आवश्यकता नहीं है। बस इन की पुँल्लिङ्ग या स्त्रीलिङ्ग की प्रथमा के जगह नपुंसकलिङ्ग वाली प्रथमा हमें लगानी है। भूमिः विष्णुः भक्तिः इत्यादि शब्दों की नपुंसक प्रथमा भूमि, विष्णु, भक्ति ऐसी होती है।
अनकारान्त समाहार द्वन्द्व का नियम १
परन्तु यदि आकारान्त शब्द को नपुंसक बनाना हो तो, उसका ह्रस्व अ बनेगा और उसे अम् यह प्रत्यय भी होगा।
- रमा – रमम्
- बालिका – बालिकम्
- अजा – अजम्
- अश्वा – अश्वम्
- दत्ता – दत्तम्
- प्रिया – प्रियम्
उदाहरण
- वृक्षः च लता च एतयोः समाहारः – वृक्षलतम्।
- रामः च सीता च एतयोः समाहारः – रामसीतम्।
- गङ्गा च यमुना च एतयोः समाहारः – गङ्गायमुनम्।
- सिन्धुः च गङ्गा च एतयोः समाहारः – सिन्धुगङ्गम्।
उपर्युक्त उदाहरणों में अन्तिम पद आकारान्त हैं। इनका नपुंसक रूप अकारान्त बन जाता है। और उसे अम् भी लग जाता है। लता, सीता, गङ्गा इन का नपुंसक रूप लतम्, सीतम्, गङ्गम् ऐसा बन जाता है।
उपसंहार
इस प्रकार से हम ने समाहार द्वन्द्व समास को सरल भाषा में समझाने का प्रयत्न किया है। यदि आप को इस समाहार द्वन्द्व समास के संबंध में कोई भी शंका, समस्या अथवा प्रश्न हो तो आप हमें जरूर पूछ सकते हैं। यदि आप को किसी समहार द्वन्द्व समास के प्रश्न का उत्तर चाहिए तो नीचे टिप्पणी (कमेंट) जरूर करें।
धन्यवाद।
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