बहुव्रीहि समास
१. समासकार्यम्
बहुव्रीहि समास में हमें कुछ इस प्रकार के पद दिए जाते हैं जिनका हमें समास कार्य करना होता है।
- नीलः कण्ठः यस्य सः।
– इन को ध्यान से देखा जाए तो इनका प्रारूप कुछ इस प्रकार का होता है। - <पूर्वपद> <उत्तरपद> <यत्> <तत्>
– पूर्वोक्त उदाहरण में नीलः पूर्वपद है, कण्ठः उत्तरपद है, यस्य यत् शब्द का रूप है तथा सः तत् शब्द का रूप है।
अब हम समासकार्य आरंभ कर रहे हैं। हमने समासकार्य के लिए चार बिन्दु दिए हैं। इन चारों बिन्दुओं पर शान्ति से विचार करने के बाद ही अपना अन्तिम उत्तर लिखे।
१. ऐसी स्थिति में हमें समासकार्य करने के लिए केवल पूर्वपद और उत्तरपद की आवश्यकता होती है। बाकी यत् और तत् शब्द का हमें कोई काम नहीं होता है। इसीलिए अब हम यत् और तत् शब्द के रूपों को निकाल देगे।
- नीलः कण्ठः यस्य सः
- नीलः कण्ठः
२. अब हम पूर्वपद और उत्तरपद को लगी हुई विभक्ति, लिंग, वचन इत्यादि के सभी प्रत्ययों को निकाल कर उनके मूल प्रातिपदिक अवस्था में लेकर आएंगे।
- नील कण्ठ
३. अब हमें देखना है कि इन दोनों में कोई सन्धिकार्य होता है या नहीं। यदि सन्धिकार्य करने का अवसर मिलता है तो सन्धिकार्य अवश्य करना चाहिए।
- नील + कण्ठ।
– यहाँ कोई सन्धि नहीं हो सकता। इसीलिए हम इन्हे ऐसे ही रहने देते हैं। - नीलकण्ठ
४. अब हमें प्राप्त शब्द को सही लिंग – वचन – विभक्ति का प्रत्यय लगाना है जो कि अन्यपद के अनुरूप होगा। यदि अन्यपद नही हो तो तत् शब्द का जो रूप समासविच्छेद में दिया था उसी के अनुरूप हमें कार्य करना है। – नीलः कण्ठः यस्य सः। इस उदाहरण में तत् शब्द का रूप सः है। जो कि पुँलिङ्ग – प्रथमा – एकवचन में है। तो समस्त पद – नीलकण्ठ भी पुँल्लिङ्ग – प्रथमा – एकवचन में होना चाहिए।
- नीलकण्ठः
इस प्रकार से हमे उत्तर मिल गया।
नीलः कण्ठः यस्य सः – नीलकण्ठः।
यहां कुछ अन्य उदाहरणों का भी अभ्यास किया जाना चाहिए।
नमस्ते मेरा नाम मधुकर है फुल स्टॉप
- लम्बम् उदरं यस्य सः
- लम्बम् उदरम् ….. यस्य और सः को निकाल दिया।
- लम्ब उदर ….. पूर्व और उत्तर पद को मूल रूप में लाया।
- लम्बोदर …. दोनों के बीच गुणसन्धि को अवसर मिला तो सन्धिकार्य भी कर लिया।
- लम्बोदरः ….. तत् शब्द का रूप सः पुँ॰ प्रथमा एकवचन था तो समस्तपद को भी उसी रूप में रखा।