अकः सवर्णे दीर्घः । ६ । १ । १०१ ॥ यह सूत्र दीर्घ सन्धि का विधान करने वाला सूत्र है।
अनुवृत्ति
- अचि ….. इको यणचि।
- एकः पूर्वपरयोः …. एकः पूर्वपरयोः।
अनुवृत्ति के साथ संपूर्ण सूत्र
अकः पूर्वपरयोः एकः दीर्घः सवर्णे अचि।
सूत्र का हिन्दी शब्दार्थ
अकः – अक् का, पूर्वपरयोः – पूर्व और पर दोनों के स्थान पर, एकः – एक, दीर्घः – दीर्घ (होता है), सवर्णे – सवर्ण, अचि – स्वर में।
सूत्र का हिन्दी अर्थ
अक् का पूर्व और पर दोनों के स्थान पर एक दीर्घ आदेश होता है जब सामने सवर्ण स्वर हो तो।
उदाहरण
अकः पूर्वपरयोः एकः दीर्घः सवर्णे अचि।
दैत्य + अरिः
- त्य + अ
- त् + य् + अ + अ
- अक् – अ इ उ ऋ ऌ
- अच् – अ इ उ ऋ ऌ ए ओ ऐ औ
- तुल्यास्यप्रयन्तं सवर्णम्।
- त् + य् +
अ + अ….. अकः सवर्णे दीर्घः। - त् + य् + आ
- त्या
दैत्यारिः
श्री + ईशः
- श्री + ई ….. परः सन्निकर्षः संहिता।
- श् + र् +
ई + ई….. अकः सवर्णे दीर्घः। - श् + र् + ई
- श्री
श्रीशः
भानु + उदयः
- नु + उ ….. परः सन्निकर्षः संहिता।
- न् +
उ + उ….. अकः सवर्णे दीर्घः। - न् + ऊ
- नू
भानूदयः
होतृ + ऋकारः
- तृ + ऋ
- त् +
ऋ + ऋ….. अकः सवर्णे दीर्घः। - त् + ॠ
- तॄ
होतॄकारः
अवधेयम् – तृ – त् + ऋ। तॄ – त् + ॠ। त्रु – त् + र् + उ॥
लघुसिद्धान्त कौमुदी
अकः सवर्णेऽचि परे पूर्वपरयोर्दीर्घ एकादेशः स्यात्। दैत्यारिः। श्रीशः। विष्णूदयः। होतॄकारः॥