1.1.60. अदर्शनं लोपः

यह सूत्र हमें बताता है कि संस्कृत व्याकरण में लोप किसे कहते हैं।

लोप यह एक संज्ञा है। संज्ञा का अर्थ होता है किसी भी मूर्त या अमूर्त वस्तु को दिया गया नाम। अब प्रश्न है कि –

लोप यह किस चीज का नाम है?

अदर्शनं लोपः। इस सूत्र के अनुसार किसी का अदर्शन होना ही लोप है।

अब पुनः प्रश्न यह है कि –

अदर्शन किसे कहते हैं?

अदर्शनम् में नञ् तत्पुरुष समास है। इसका विग्रह ऐसे होता है –

न दर्शनम्

अर्थात् किसी चीज का दर्शन न होना। यानी यदि कोई चीज पहले थी परन्तु अब दिख नहीं रही है तो उसे ही अदर्शन कहते हैं।

लोप संज्ञा और हैरी पॉटर का अदृश्य चोगा

Adarshanam Lopah
अदर्शनं लोपः

हैरी पॉटर के पास अदृश्य चोगा (invisibility cloak) होता है। उस अदृश्य चोगे को पहने के बाद हैरी पॉटर अदृश्य होता है। इसका अर्थ यह है कि हैरी नष्ट नहीं हुआ है। हैरी उसी स्थान पर है परन्तु हैरी किसी अन्य व्यक्ति को दिखता नहीं है। परन्तु अदृश्य चोगे से हैसी सब को देख रहै है। यानी हैरी का अदर्शन हो रहा है। यही लोप है।

लोप संज्ञा होने का अर्थ नाश होना नहीं है।

लोप संज्ञा होने के बाद केवल अदृश्यता आती है। नाश होता नहीं है। संस्कृत व्याकरण में बहुत बार वर्णों का लोप हो जाता है। परन्तु ध्यान रहे की लोप होने के बाद भी वे वर्ण उसी स्थान पर मौजूद होते हैं। वे नष्ट नहीं होते हैं। बस इतना ध्यान में रखना है कि अब लोप संज्ञा हो जाने के बाद उनका दर्शन नहीं हो रहा है।

अदर्शनं लोपः सूत्र पर लघुसिद्धान्त कौमुदी

प्रसक्तस्यादर्शनं लोपसंज्ञं स्यात्॥

लघुसिद्धान्त कौमुदी वृत्ति का पदच्छेद

प्रक्तस्य अदर्शनं लोपसंज्ञं स्यात्।

शब्दार्थ

प्रक्तस्य – जो पहलेसे है उस का, अदर्शनं – न दिखना, गायब होना, लोपसंज्ञं स्यात् – लोप इस संज्ञा से जाना जाए

अर्थ

जो पहले से है उसका यदि दर्शन ना हो तो उसे लोप कहते हैं।

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