यह सूत्र एक संज्ञासूत्र है जो प्रत्याहार-संज्ञा का विधान करता है। यानी इस सूत्र से हमे पता चलता है कि प्रत्याहार किस प्रकार से होता है।
सूत्र का पदच्छेद
आदिः अन्त्येन सह इता
अनुवृत्तिसहित सूत्र
आदिः अन्त्येन इता सह स्वस्य रूपस्य (बोधकः भवति)
शब्दार्थ
- आदिः – प्रथम, पहला
- अन्त्येन – अन्तिम
- इता सह – इत के साथ
- स्वस्य – खुद के
- रूपस्य – रूप का
- बोधकः – बताने वाला
- भवति – होता है
अर्थात् – आदि आखरी इत् के साथ खुद के रूप का बोधक होता है।
परन्तु केवल इतना पढ़ने से इस सूत्र का रूप स्पष्ट नहीं होता है। आदिरन्त्येन सहेता इस सूत्र को समझने के लिए लघुसिद्धान्त कौमुदी भी पढ़ना आवश्यक है।
आदिरन्त्येन सहेता इस सूत्र पर लघुसिद्धान्त कौमुदी
अन्त्येनेता सहित आदिर्मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात् ।
पदच्छेद
अन्त्येन इता सहितः आदिः मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात् ।
शब्दार्थ
- अन्त्येन इता सहितः – आखरी इत् के साथ
- आदिः – शुरुवाती
- मध्यगानां – बीच के सभी का
- स्वस्य च – और खुद की
- संज्ञा स्यात् – संज्ञा होता है।
यहाँ तीन शब्दों को समझना जरूरी है – १. अन्त्य इत् २. आदि, ३. मध्यग
१. अन्त्य इत्
हम ने हलन्त्यम् इस सूत्र से समझा है कि इत् किसे कहते हैं।
माहेश्वर सूत्रों की मदद से जो प्रत्याहार बनते हैं उन के अन्त में एक व्यंजन होता है उस को ही अन्त्य इत् कहते हैं। जैसे कि –
- इक् इस प्रत्याहार में क् यह अन्त्य इत् है।
- यण् इस प्रत्याहार में ण् यह अन्त्य इत् है।
- अच् इस प्रत्याहार में च् यह अन्त्य इत् है।
२. आदि
माहेश्वर सूत्रों की मदद से जो प्रत्याहार बनाए जाते हैं उन की शुरुआत में जो वर्ण होता है उस को ही आदि कहते हैं।
- इक् इस प्रत्याहार में इ यह आदि है।
- यण् इस प्रत्याहार में य यह आदि है।
- अच् इस प्रत्याहार में अ यह आदि है।
३. मध्यग
माहेश्वर सूत्रों की मदद से जो प्रत्याहार बनते हैं उन में आदि और अन्त्य इत् के मध्य जो वर्ण आते हैं उन को मध्यग कहते हैं। जैसे की –
- इक् इस प्रत्याहार में इ इस आदि और क् इस अन्त्य इत् के मध्य उ, ऋ, ऌ ये ३ मध्यग है।
- अइउण्। ऋऌक्।
- यण् इस प्रत्याहार में य इस आदि और ण् इस अन्त्य इत् के मध्य व, र, ल ये ३ मध्यग हैं।
- हयवरट्। लण्।
- अच् इस प्रत्याहार में अ इस आदि और च् इस अन्त्य इत् के मध्य इ, उ, ऋ, ऌ, ए, ओ, ऐ, औ ये ८ मध्यग हैं।
- अइउण्। ऋऌक्। एओङ्। ऐऔच्।
अब एक बार अन्त्य इत्, आदि और मध्यग इन तीनों बातों को समझने के बाद आदिरन्त्येन सहेता इस सूत्र को समझना बहुत ही आसान हो जाता है। सूत्र का कहना यह है कि –
यदि किसी आदि को किसी अन्त्य इत् के साथ लिया जाए तो वह आदि खुद का और सभी मध्यगों का बोधक होता है।
इस बात एक उदाहरण से समझते हैं। इन माहेश्वर सूत्रों की मदद से अच् इस प्रत्याहार को बनाईए।
१. अइउण् । २. ऋऌक् । ३. एओङ् । ४. ऐऔच् । ५. हयवरट्र। ६. लण् । ७. ञमङणनम् । ८. झभञ् । ९. घढधष् । १०. जबगडदश् । ११. खफछठथचटतव् । १२. कपय् । १३. शषसर् । १४. हल् ॥
अट् – प्रत्याहार बनाने के लिए हमें माहेश्वर सूत्रों में से निम्न ४ सूत्रों की आवश्यकता होगी।
- १. अइउण् । २. ऋऌक् । ३. एओङ् । ४. ऐऔच् ।
इन चारों माहेश्वर सूत्रों पर हम अष्टाध्यायी के सूत्रों की मदद से अट् प्रत्याहार बनाएंगे। यहाँ सर्वप्रथम हलन्त्यम् यह सूत्र काम आएगा –
यहाँ सर्वप्रथम हलन्त्यम् इस सूत्र नें हमें बताया कि इन चारों सूत्रों में जो आखरी व्यंजन है वह इत् है।
इस के बाद अदर्शनं लोपः इस सूत्र नें बताया कि लोप किसे कहते हैं। किसी वर्ण का न दिखना ही लोप है।
लोप किसे कहते हैं यह बताने के बाद बताते हैं कि लोप किसका करना है। तस्य लोपः यह सूत्र कहता है कि जिस जिस को इत् कहा जाएंगा उसका लोप (तस्य लोपः) होगा।
यानी जो चार माहेश्वर सूत्र हम ने लिए थे उन सब में मौजूद इत् का लोप हो जाने के बाद अब ये चार सूत्र कुछ ऐसे दिखेंगे –
- १. अइउ । २. ऋऌ । ३. एओ । ४. ऐऔ ।
यहाँ हमारा आदिरन्त्येन सहेता यह सूत्र लगाकर अच् प्रत्याहार बनेगा।
- आदिरन्त्येन सहेता।
आदिरन्त्येन सहेता इस सूत्र के अनुसार १. अइउण् इस पहले सूत्र से अ इस आदि को ४. ऐऔच् इस चतुर्थ सूत्र के इत् के साथ लेंगे तो ऐसा प्रत्याहार बनेगा –
- अच्
इस प्रत्याहार में मौजूद अ यह अकेला ही वर्ण अ से लेकर च् तक जितने भी बीच में आनेवाले मध्यग हैं उन सभी का बोधक होता है।
इस प्रकार से अच् यह प्रत्याहार सिद्ध हुआ। इस ही प्रकार से अन्य प्रत्याहार भी बन सकते हैं। जैसे कि –
- इक् – इ = इउऋऌ
- अट् – अ = अइउऋऌएओऐऔहयवर
- अङ् – अ = अइउऋऌएओ