1.3.9. तस्य लोपः

तस्य लोपः इस सूत्र को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें यह समझना पड़ेगा कि इत् किसे कहते हैं। पाणिनीय अष्टाध्यायी में उपदेशेऽजनुनासिक इत्। (१.३.२) इस सूत्र से लेकर न विभक्तौ तुस्माः। (१.३.८) इन सात सूत्रों में बताया है कि इत् इसे कहते हैं। और यदि बात लघुसिद्धान्तकौमुदी की करें तो लघुसिद्धान्त कौमुदी में हलन्त्यम् इस सूत्र ने बताया है कि इत् किसे कहते हैं।

एक बार इत् को समझने के बाद आती है लोप करने की। परन्तु पहले पता होना चाहिए कि लोप किसे कहते हैं। इस बात को अदर्शनं लोपः इस सूत्र ने बताया कि किसी चीज का अदर्शन होना (यानी न दिखना, अदृश्य होना) लोप होता है।

और अन्त में तस्य लोपः। (१.३.९) इस सूत्र से बताया है कि उस इत् का लोप होता है। यानी जिस जिस को इत् कहा जाएगा उस का इस सूत्र से लोप होगा।

यानी तस्य लोपः यह एक विधिसूत्र है। क्योंकि इस सूत्र ने लोप करने के लिए कहा है।

इस सूत्र में केवल दो शब्द हैं – तस्य लोपः।

  • तस्य – उस का
  • लोपः – लोप (हो जाए)

तस्य लोपः इस सूत्र में अनुवृत्ति

उपदेशेऽजनुनासिक इत् इस सूत्र से इत् इस पद को षष्ठी लगाकर इतः यह अनुवृत्ति होती है।

अब हमारा सूत्र बनता है – तस्य इतः लोपः।

यानी उस इत् का लोप हो जाए। जिस जिस को इत् कहा जाए उन सब का अन्त में लोप हो जाता है।

तस्य लोपः इस सूत्र पर लघुसिद्धान्त कौमुदी

तस्येतो लोपः स्यात्। णादयोऽणाद्यर्थाः॥

तस्येतो लोपः स्यात्।

पदच्छेद – तस्य इतः लोपः स्यात्।

शब्दार्थ – तस्य – उस, इतः – इत् का, लोपः – लोप, स्यात् – हो जाए

उदाहरण

अइउण्।

  • अइउण्। …. हलन्त्यम्।
  • अइउण्। …. अदर्शनं लोपः।
  • अइउ। …. तस्य लोपः।

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