माहेश्वर सूत्र

माहेश्वर सूत्र
माहेश्वर सूत्र

पाणिनीय पद्धति से संस्कृत व्याकरण सीखने के लिए सर्वप्रथम माहेश्वर सूत्र पढ़ना बहुत आवश्यक होता है। इन माहेश्वर सूत्रों की ही मदद से प्रत्याहार बनते हैं।

१४ माहेश्वर सूत्र निम्न हैं

१. अइउण् । २. ऋऌक् । ३. एओङ् । ४. ऐऔच् । ५. हयवरट् । ६. लण् । ७. ञमङणनम् । ८. झभञ् । ९. घढधष् । १०. जबगडदश् । ११. खफछठथचटतव् । १२. कपय् । १३. शषसर् । १४. हल् ॥

माहेश्वर सूत्रों पर लघुसिद्धान्तकौमुदी वृत्ति

इति माहेश्वराणि सूत्राण्यणादिसंज्ञार्थानि । एषामन्त्याः इतः । हकारादिष्वकार उच्चारणार्थः । लण्मध्ये त्वित्संज्ञकः॥

लघुसिद्धान्त कौमुदी में सर्वप्रथम 14 माहेश्वर सूत्र पढ़े गए हैं। और इन सूत्रों के बारे में अधिक जानकारी देने के लिए ऊपर लिखा हुआ लेख लिखा है। इस लेख को वृत्ति कहते हैं।

हम इस वृत्ति को समझने का प्रयास करेंगे।

पदविभागः (पदच्छेद)

इति माहेश्वराणि सूत्राणि अणादि-संज्ञार्थानि । एषाम् अन्त्याः इतः। हकारादिषु अकारः उच्चारणार्थः । लण् मध्ये तु इत्-संज्ञकः ॥

सन्धि वगैरह का विच्छेद करने के बाद यह वृत्ति कुछ इस प्रकार से दिखती है। अब इसे पढ़ना और समझना आसान होता है।

हिन्दी अनुवाद

अब हम इस वृत्ति का हिन्दी अनुवाद करेंगे। इस वृत्ति का हिन्दी अनुवाद एक-एक वाक्य को लेकर करेंगे।

१. इति माहेश्वराणि सूत्राणि अणादि-संज्ञार्थानि

ये माहेश्वर सूत्र अणादि संज्ञाओं के लिए हैं।

अर्थात् इन 14 माहेश्वर सूत्रों का प्रयोजन अणादि संज्ञाओं को बनाना है। इन 14 माहेश्वर सूत्रों की मदद से अण्-आदि संज्ञाएं बानती है। इन को ही हम प्रत्याहार कहते हैं।

माहेश्वर सूत्रों के मदद से अण्-आदि संज्ञाएं कैसे बनती हैंं?

लघुसिद्धान्त कौमुदी के संज्ञा प्रकरण में माहेश्वर सूत्रों की मदद से अण्-आदि संज्ञाओं को बनाने की ही बात की गई है। इस के लिए पूरा संज्ञा प्रकरण पढ़ना आवश्यक है।

अभी के लिए केवल इतना जानना पर्याप्त है कि इन 14 सूत्रों से अणादि संज्ञाएं बनने वाली है। जिन का आगे संस्कृत व्याकरण सीखने में बहुत काम पड़ेगा।

जिन सूत्रों की शुरुआत (आदि) में अण् आता है वे सूत्र अणादि सूत्र कहलाते हैं।

२. एषामन्त्याः इतः।

एषाम् अन्त्याः इतः।

  • एषाम् – इन के
  • अन्त्याः – अन्त में जो हैं वे
  • इतः – वे इत् हैं।
    • इतः is the plural form of इत्

इन (माहेश्वर सूत्रों) के अन्त में जो (व्यञ्जन) हैं वे इत् (कहलाते हैं)।

जैसे कि –

अइउण् यह एक माहेश्वर सूत्र है। इस सूत्र में अन्तिम व्यंजन है – ण्। तो यह अन्तिम व्यंजन को इत् कहते हैं। ठीक इसी प्रकार से हयवरट् इस सूत्र का इत् है – ट्।

बाकी सभी सूत्रों में भी ऐसे ही समझना है।

३. हकारादिष्वकार उच्चारणार्थः।

हकारादिषु अकारः उच्चारणार्थः

  • अकारः
    • The letter अ
    • The sound of अ
  • उच्चारणार्थः
    • For the sake of pronunciation only

हकारादि सूत्रों में जो अ यह स्वर दिखता है वह केवल उच्चारण के लिए है।

हकारदि का अर्थ

14 माहेश्वर सूत्र में पांचवे क्रमांक का सूत्र है – हयवरट्। इस सूत्र से लेकर अंतिम सूत्र तक जो नौ सूत्र हैं उन को हकारादि माहेश्वर सूत्र कहते हैं। वे इस प्रकार हैं –

५. हयवरट् । ६. लण् । ७. ञमङणनम् । ८. झभञ् । ९. घढधष् । १०. जबगडदश् । ११. खफछठथचटतव् । १२. कपय् । १३. शषसर् । १४. हल् ॥

इन सूत्रों का निरीक्षण करें तो हमे पता चलता है कि इन सूत्रों में व्यंजन तो हैं परन्तु इन सभी सूत्रों के व्यंजनों के बीच अ यह स्वर भी उपस्थित है। जैसे कि – हयवरट्

  • ह् + अ + य् + अ + व् + अ + र् + अ + ट्

इस सूत्र में जो अकार दिख रहा है वह केवल उच्चारण के लिए है। क्योंकि बिना स्वर की सहायता के व्यंजनों का उच्चारण नहीं होता। यदि यहाँ बीच में अकार ना होता तो यह सूत्र कुछ ऐसे दिखता जो कि पढ़ना सरल नहीं है –

  • ह् + य् + व् + र् + ट्
  • ह्य्व्र्ट्

इस का तात्पर्य यह है कि जब भी आगे व्याकरण पढ़ाते समय हकारादि माहेश्वर सूत्रों की बात होगी तब उन में मौजूद अकार का ग्रहण नहीं करना है। अकार को गिनती में नहीं लेना है। वह अकार केवल उच्चारण के लिए मात्र है।

४. लण्मध्ये त्वित्संज्ञकः।

लण् मध्ये तु इत्-संज्ञकः

  • लण् मध्ये – लण् इस सूत्र में
  • तु – तो
  • इत्-संज्ञकः – इत् माना जाता है।

लण् इस सूत्र में अकार इत् संज्ञक होता है।

यह वृत्ति इससे पूर्व लिखित वाक्य का अपवाद (एक्सेप्शन) है। यानी जिस बात को पूर्व वृत्तिवाक्य ने कहा उस बात को यह वृत्तिवाक्य लण् इस सूत्र के संदर्भ में काट रहा है।

14 माहेश्वर सूत्रों में लण् यह छटवां सूत्र है। इल सूत्र में तीन वर्ण हैं –

  • ल् + अ + ण्।

इससे पूर्व वाक्य ने कहा था कि हकारादि माहेश्वर सूत्रों में अकार केवल उच्चारण के लिए है। परन्तु अब लण्मध्ये त्वित्संज्ञकः यह वाक्य कहता है कि – हकारादि माहेश्वर सूत्रों में अकार केवल उच्चारण के लिए ही है परन्तु लण् इस सूत्र में अकार इत् भी होगा

अर्थात् इस सूत्र में ल् के बाद जो अ है वह भी इत् माना जाता है। इस प्रकार से इस सूत्र में अ और ण् ये दोनों भी इत् माने जाते हैं।

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