यह सूत्र हमें ‘पद’ संज्ञा के बारे में बताता है।
बहुत बार हिन्दी में पद और शब्द इन दोनों को समानार्थक मानते हैं। परन्तु इन दोनों में भेद है। किसी भी सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं। परन्तु संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से देखा जाए तो पद एक भिन्न संज्ञा है। इस संज्ञा को सुप्तिङन्तं पदम् इस सूत्र से समझ सकते हैं।
सूत्र का पदच्छेद
सुप्-तिङ्-अन्तं पदम्।
सूत्र का शब्दार्थ
- सुप् – विभक्ति
- तिङ् – लकार
- अन्त – आखिरी
- पदम् – पद
सूत्र का हिन्दी में अर्थ
जिस शब्द के अन्त में विभक्ति अथवा लकार प्रत्यय हो उस शब्द को पद कहते हैं।
राम यह केवल एक शब्द है। क्योंकि इस को कोई भी विभक्ति नहीं लगी है। परन्तु रामः, रामम्, रामेण इत्यादि पद हैं। क्योंकि इन को विभक्तिप्रत्यय लगा है।
भू यह केवल एक शब्द है। यह एक धातु है परन्तु इस को कोई लकार लगा नहीं है। जब हम भू को लकार लगाकर कोई क्रियापद बनाएंगे तब जाकर वर एक पद बनेगा। जैसे कि – भवति, भवतः, भवन्ति, अभवत् इत्यादि।
सुप्तिङन्तं पदम् इस सूत्र पर लघुसिद्धान्त कौमुदी
सुबन्तं तिङन्तं च पदसंज्ञं स्यात्।
शब्दार्थ
- सुबन्तं – जिस के अन्त में सुप् (विभक्ति) हो
- तिङन्तं – जिस के अन्त में तिङ् (लकार) हो
- च – और
- पदसंज्ञं – पद इस संज्ञा का, पद इस नाम का
- स्यात् – होता है
जिस के अन्त में सुप् (विभक्ति) हो और जिस के अन्त में तिङ् (लकार) हो उस को पद इसं संज्ञा जाना जाता है।
पद का वाक्य में महत्त्व
इस सूत्र के संदर्भ में एक और बात हमें समझी चाहिए –
अपदं न प्रयुञ्जीत।
अर्थात् –
- अपदं – जो पद नहीं है उस का
- न प्रयुञ्जीत – प्रयोग नहीं करना चाहिए
अर्थात् जो शब्द पद नहीं है उस का वाक्य में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
बिना पद बनाए किसी भी शब्द को वाक्य में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है। क्योंकि इस से वाक्य का अर्थ ठीक से समझ ही नहीं सकेगा। जैसे कि इस वाक्य को देखिए। इस वाक्य में केवल शब्द हैं –
राम बाण रावण युद्ध मार्।
परन्तु अब विभक्ति और लकार लगा कर देखिए –
राम ने बाण से रावण को युद्ध में मारता है।
यही संस्कृत में ऐसा होगा –
रामः बाणेन रावणं युद्धे मारयति।
अयादि और पूर्वरूप संधि के संदर्भ में पद संज्ञा का महत्त्व
इन उदाहरणों को देखिए
१. वने + अस्मिन् – वनेऽस्मिन्
- ने + अ
- न् + ए + अ
- न् + ए + ऽ
- नेऽ
यहाँ वनयस्मिन् ऐसा अयादि संधि क्यों नहीं हुआ?
२. ने + अनम् – नयम्
- ने + अ
- न् + ए + अ
- न् + अय् + अ
- नय
यहाँ नेऽनम् ऐसा पूर्वरूप सन्धि क्यों नहीं हुआ?
कारण बहुत सरल है। दोनों भी उदाहरणों में ए + अ ऐसी ही स्थिति है। परन्तु उदाहरण १. वने + अस्मिन् में वने यह शब्द एक पद है। इसीलिए यहाँ पूर्वरूप सन्धि हुआ और उदाहरण २. ने + अनम् इस में ने एक पद नहीं था इसीलिए यहाँ अयादि सन्धि हुआ।
अर्थात् केवल पद होने या ना होने से भी सन्धि के नियमों में बदलाव आ जाता है।
Hello, is this explanation available in the form of a book, which I can buy? DR P. L. Jathar.
मुझे आनंद है कि यह लेख आप को पसंद है। परंतु खेद भी इस बात का है कि परिस्थितिवशात् हम ने इतने लेख नहीं लिखे हैं कि पुस्तक बन पाए।