1.3.3. हलन्त्यम्

हलन्त्यम् यह सूत्र एक संज्ञा सूत्र है। पाणिनीय अष्टाध्यायी में इस सूत्र का क्रमांक है – १.३.३। हलन्त्यम् यह सूत्र ‘इत् संज्ञा विधायक’ सूत्र है। हलन्त्यम् सूत्र से हम पता चलता है कि इत् किसे कहते हैं। संज्ञा शब्द का अर्थ होता है – नाम। यानी किसी चीज को यदि कोई नाम दिया जाए तो उस नाम को ही उस चीज की संज्ञा कहते हैं। हलन्त्यम् सूत्र से हमें पता चलता है कि माहेश्वर सूत्रों के आखरी व्यंजन को इत् कहते हैं।

सूत्र का पदच्छेद

हलन्त्यम् इस सूत्र में दो पद हैं –

हल् अन्त्यम्

हलन्त्यम् सूत्र में अनुवृत्ति

इस सूत्र में जो दो पद हैं उन से इस सूत्र का अर्थ समझता नहीं है। इसीलिए अनुवृत्ति की मदद लेनी पडती है। अनुवृत्ति का अर्थ होता है पूर्व के किसी सूत्र से कुछ शब्दों को नीचे खींच कर सूत्र के अर्थ को पूर्ण करना। एकबार हमारे सूत्र को पुनः देखिए –

१.३.३. हलन्त्यम्

इस सूत्र की संख्या है – १.३.३.

अर्थात् यह सूत्र पहले अध्याय के तीसरे पाद का तीसरा सूत्र है। इस सूत्र से पहले एक सूत्र है –

१.३.२. उपदेशेऽजनुनासिक इत्।

इस सूत्र से यदि उपदेशे और इत् इन दोनों पदों को हलन्त्यम् इस सूत्र में सम्मिलित किया जाए तो इस सूत्र का अर्थ समझता है। अनुवृत्ति के साथ यह सूत्र कुछ ऐसा होगा –

(उपदेशे) हल् अन्त्यम् (इत्)।

अब यह सूत्र सम्पूर्ण हो गया है। इस सूत्र का अर्थ हिन्दी में जानने का प्रयत्न करते हैं।

हलन्त्यम् सूत्र का शब्दार्थ

  • उपदेशे – उपदेश में
  • हल् – व्यंजन
  • अन्त्यम् – आखरी, अन्तिम
  • इत् – इत्

हलन्त्यम् सूत्र का हिन्दी अर्थ

उपदेश में जो व्यंजन (हल्) अन्तिम होता है वह इत् है।

सूत्र की व्याख्या

यहाँ उपदेश इस शब्द का तात्पर्य माहेश्वर सूत्र हैं।

माहेश्वर सूत्र –

१. अइउण् । २. ऋऌक् । ३. एओङ् । ४. ऐऔच् । ५. हयवरट् । ६. लण् । ७. ञमङणनम् । ८. झभञ् । ९. घढधष् । १०. जबगडदश् । ११. खफछठथचटतव् । १२. कपय् । १३. शषसर् । १४. हल् ॥

ये कुल मिला कर १४ सूत्र हैं। इन में प्रत्येक सूत्र के अन्त में एक एक हल् (यानी व्यंजन) है। उस अन्तिम व्यंजन को हल् कहते हैं।

यहाँ पहला माहेश्वर सूत्र है – अइउण्। इस माहेश्वर सूत्र में अन्तिम व्यंजन है – ण्। तो हलन्त्यम् सूत्र के अनुसार ण् यह एक इत् है। क्योंकि वह अइउण् इस उपदेश का आखरी व्यंजन है।

इस ही प्रकार से नौवा सूत्र है – घढधष्। इस सूत्र में इत् किसे कहेगे? – ष् को। क्यों कि इस सूत्र में वह आखरी व्यंजन है।

halantyam
हलन्त्यम्

हलन्त्यम् इस सूत्र पर लघुसिद्धान्त कौमुदी

हलन्त्यम् इस सूत्र पर वरदराज जी की व्याख्या

श्री॰ वरदराज जी हलन्त्यम् इस अष्टाध्यायी के सूत्र पर इस प्रकार से स्पष्टीकरण दे रहे हैं –

उपदेशेऽन्त्यं हलित्स्यात्। उपदेश आद्योच्चारणम्। सूत्रेष्वदृष्टं पदं सूत्रान्तरादनुवर्तनीयं सर्वत्र॥

लघुसिद्धान्तकौमुदी। संज्ञाप्रकरणम्।

पदच्छेद

उपदेशे अन्त्यं हल् इत् स्त्यात्। उपदेशः आद्य-उच्चारणम्। सूत्रेषु अदृष्टं पदं सूत्रान्तरात् अनुवर्तनीयं सर्वत्र॥

अब हम इस वृत्ति के तीनों वाक्यों का स्वतन्त्र अभ्यास करेंगे। पहला वाक्य –

१. उपदेशेऽन्त्यं हलित्स्यात्।

पदच्छेद – उपदेशे अन्त्यं हल् इत् स्यात्

शब्दार्थ

  • उपदेशे – उपदेश में
  • अन्त्यम् – अन्तिम
  • हल् – व्यंजन
  • इत् – इत्
  • स्यात् – should be. But here – will be known as

उपदेश में अन्त्य व्यंजन इत् (होता है।)

इस प्रकार वरदराज जी ने समझाया है कि उपदेश का अन्तिम व्यंजन इत् होता है। अब प्रश्न सामने आता है कि –

उपदेश किसे कहते हैं?

इस प्रश्न का उत्तर अगले वाक्य में दे रहे हैं।

२. उपदेश आद्योच्चारणम्।

पदच्छेद – उपदेशः आद्य-उच्चारणम्।

शब्दार्थ –

  • उपदेशः – उपदेश
  • आद्य – पहला, शुरुआती
  • उच्चारणम् – कही हुई बात

सबसे पहले बताई बात ही उपदेश है। यहाँ उपदेश से तात्पर्य 14 माहेश्वर सूत्रों से हैं। यानी माहेश्वर सूत्र हीं उपदेश है।

३. सूत्रेष्वदृष्टं पदं सूत्रान्तरादनुवर्तनीयं सर्वत्र॥

पदच्छेद – सूत्रेषु अदृष्टं पदं सूत्रान्तरात् अनुवर्तनीयं सर्वत्र

शब्दार्थ – सूत्रेषु – सूत्रों में। अदृष्टं – अदृश्य। पदं – शब्द। सूत्रान्तरात् – दूसरे सूत्रों से। अनुवर्तनीयं – लेना चाहिए। सर्वत्र – हर जगह॥

यदि हम हलन्त्यम् सूत्र को देखें तो पता चलता है कि इस सूत्र में केवल दो ही पद हैं – हल् अन्त्यम्। इन दोनों का अर्थ होता है – व्यंजन जो आखरी है

परन्तु इतने से कोई भी अर्थबोध नहीं होता है। इसीलिए इस सूत्र से समझाते हैं कि यदि किसी सूत्र में कोई शब्द कम हो तो पूर्व के सूत्रों से भी किसी शब्द लेकर सूत्र का अर्थ पूरा करना चाहिए।

अतः हलन्त्यम् इस सूत्र के पूर्व के सूत्र – उपदेशेऽजनुनासिक इत्। इस सूत्र से उपदेशे और इत् इस दोनों पदों को लेकर हलन्त्यम् यह सूत्र पूरा होता है और इसका अर्थ होता है –

उपदेश का अन्तिम व्यंजन इत् होता है।

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