संयोग को ही हिन्दी व्याकरण में संयुक्ताक्षर कहते हैं। यानी इस सूत्र से हमे पता चलता है कि संयुक्ताक्षर किसे कहते हैं। मराठी भाषा में इस संयोग को जोडाक्षर कहते हैं। हलोऽनन्तराः संयोगः इस सूत्र में संयोग इस संज्ञा के बारे में बताया है। यानी इस सूत्र में बताया है कि संयोग किसे कहते हैं।
सूत्र का पदच्छेद
हलः अन्-अन्तराः संयोगः।
सूत्र का अर्थ
हलः – व्यंजन, अन्-अन्तराः – जिन के बीच में कुछ नहीं है, संयोगः – संयोग कहलाते हैं।
सूत्र का हिन्दी अर्थ
ऐसे व्यंजन, जिन के बीच में कुछ भी नहीं है, उन को संयोग कहते हैं।
हमारी वर्णमाला में दो ही विभाग है – १. स्वर, २. व्यंजन। तो फिर जब हम कहते हैं कि व्यंजनों के बीच में कोई और नहीं होना चाहिए तो हम अनुमान लगा सकते हैं कि व्यंजनों के बीच स्वर नहीं होने चाहिए। क्योंकि वर्णमाला में व्यंजनों के बीच आनेवाला स्वरों के अलावा कोई तीसरा नहीं है।
अर्थात् संयोग वे व्यंजन हैं जिनके बीच में कोई स्वर ना हो।
संयोग के उदाहरण
१. तन्वी – त् + अ + न् + व् + ई
इस उदाहरण में त् और न् इन दोनों व्यंजनों के बीच अ यह स्वर है इसीलिए वह संयोग नहीं है।
परन्तु न् और व् इन दोनों व्यंजनों के बीच में कोई स्वर नहीं है। इसीलिए न् + व् यह एक संयोग है।
२. आत्मा – आ + त् + म् + आ
३. राष्ट्रम् – र् + आ + ष् + ट् + र् + अ + म्
४. धर्मः – ध् + अ + र् + म् + अः
५. प्राणाः – प् + र् + आ + ण् + आः
कुछ विशेष संयोग
कुछ विशेष संयोग ऐसे हीं जिन को हमारी वर्णमाला में एक अलग चिह्न दिया गया है। जैसे कि –
१. ज्ञ – ज् + ञ
इस वर्ण का उच्चारण हिन्दी में – ग्य ऐसा होता है।
जैसे कि – ज्ञान
परन्तु इस शब्द का उच्चारण हिन्दी में – ग्यान ऐसा होता है। मराठी भाषा में – द्न्यान ऐसा होता है। परन्तु शुद्ध संस्कृत में इस का उच्चारण – ज्ञान (Jñāna) ऐसा होता है।
२. क्ष – क् + ष
क्षत्रियः, क्षेत्रम्, तक्षकः इत्यादि।
३. श्र – श् + र
श्रवणः, श्रमः, विश्रामः इत्यादि।
सबसे बडा संयोग / संयुक्ताक्षर
कार्त्स्न्य इस शब्द में सबसे बड़ा संयोग (जिसे हिन्दी में संयुक्ताक्षर कहते हैं) मौजूद है।
कार्त्स्न्य – क् + आ + र् + त् + स् + न् + य् + अ
इस शब्द में र्, त्, स्, न् और य् इन पांच वर्णों का संयोग है।
हलोऽनन्तराः संयोगः इस सूत्र पर लघुसिद्धान्त कौमुदी
अज्भिरव्यवहिता हलः संयोगसंज्ञाः स्युः।
पदच्छेद
अज्भिः अव्यवहिताः हलः संयोग-संज्ञाः स्युः।
शब्दार्थ
अज्भिः – अचों से, अव्यवहिताः – बीच में अनुपस्थिति, हलः – व्यंजन, संयोग-संज्ञाः – संयोग-संज्ञक, स्युः – होते हैं।
जिन व्यंजनों के बीच में स्वरों की अनुपस्थिति होती है उन व्यंजनों को (व्यंजनों के समूह को) संयोग इस संज्ञा से जाना जाता है।