द्वितीया विभक्ति – संस्कृत

द्वितीया विभक्ति का कारक अर्थ द्वितीया विभक्ति का कारक अर्थ होता है – कर्म (object)। कर्म की व्याख्या इस सूत्र के द्वारा की है –       कर्तुरीप्सिततमं कर्म।१।४।२९॥ कर्ता क्रिया के द्वारा जिस सबसे ज्यादा चाहता है, वह कर्म है। द्वितीया विभक्ति के सूत्र कर्मणि द्वितीया।२।३।२॥ कर्तृवाच्य/कर्तरि प्रयोग (active voice) के वाक्य में कर्म की … Read more

चतुर्थी विभक्ति

चतुर्थी विभक्ति का कारक अर्थ संप्रदान होता है। संप्रदान का सामान्य अर्थ होता है – receiver। जैसे कि – माँ बालक को रोटी देती है। यहां इस वाक्य में बालक रोटी का स्वीकार करने वाला (receiver) है। इसीलिए इसे हम संप्रदान कह सकते हैं। चतुर्थी विभक्ति के उदाहरण एकवचन में चतुर्थी के उदाहरण शिक्षक छात्र … Read more

तृतीया विभक्ति – संस्कृत

तृतीया विभक्ति का कारक अर्थ करण होता है। करण के बारे में संस्कृत भाषा में कहा गया है – साधकतमं करणम्। अर्थात् किसी भी क्रिया को करने के लिए जो सबसे ज्यादा सहायता करता है उसे करण कहते हैं। और करण को तृतीया विभक्ति होती है। हिन्दी भाषा में तृतीया विभक्ति के चिह्न हैं – … Read more

पंचमी विभक्ति – संस्कृत

संस्कृत भाषा में अलगाव (separation) दिखाने के लिए पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। जिसे संस्कृत भाषा में अपादान कहते हैं। अर्थात् हिन्दी भाषा में जहाँ पर ‘से’ इस जिह्न का प्रयोग होता है, वहाँ संस्कृत भाषा में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है। अंग्रेजी की बात करें तो अंग्रेजी के from इस शब्द के … Read more

सप्तमी विभक्ति – संस्कृत

सप्तमी विभक्ति का कारक अर्थ अधिकरण होता है। अर्थात् संस्कृत भाषा में क्रिया जहाँ हो रही है वह स्थान दिखाने के लिए सप्तमी विभक्ति का प्रयोग करते हैं। यदि हिन्दी की बात करें, तो हिन्दी भाषा में जहाँ में अथवा पर इन शब्दों का प्रयोग होता है, वहां संस्कृत भाषा में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग … Read more

षष्ठी विभक्ति – संस्कृत

षष्ठी विभक्ति का अर्थ संस्कृत भाषा में संबंध (relation) को दर्शाने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। अर्थात् हिन्दी भाषा जो अर्थ का / के / की इन शब्दों से प्राप्त होता है, अंग्रेजी में जो अर्थ of, ‘s, s’ इन से प्राप्त होता है, वही अर्थ संस्कृत भाषा में प्राप्त करने के … Read more