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कक्षा कौमुदी.in से नवीनतम लेख
- शब्दों का नपुंसकलिंग और एकवचन में परिवर्तनअव्ययीभाव समास में शब्दों को नपुंसकलिंग और एकवचन में परिवर्तित करना पड़ता है। अतः अव्ययीभाव समास का अध्ययन करनेवाले छात्रों को ये नियम समझना बहुत आवश्यक है। अव्ययीभाव समास में शब्दों को नपुंसकलिंग और एकवचन में परिवर्तित करना पड़ता है। अतः अव्ययीभाव समास का अध्ययन करनेवाले छात्रों को ये नियम समझना बहुत आवश्यक है। नियम … Read more
- यदा – तदायदा ….. तदा ….. उदाहरण जब बारिष होती है तब फलस होती है। जब रोगी औषध लेता है तब वह स्वस्थ होता है। जब छात्र पढ़ता है तब वह उत्तीर्ण होता है। जब सूर्य अस्त होता है तब रात होती है। जब शिक्षक आते हैं तब वे पढ़ा ते हैं। जब छात्र पुस्तक देखता है … Read more
- मनस् शब्द रूप Manas Shabda Roop in Sanskritमनस् शब्द एक सकारान्त शब्द है। यह एक नपुंसकलिंग का शब्द है। सकारान्त किसे कहते हैं? What is Sakārānta जिस शब्द के अन्त में स् यह ध्वनि होती है वह सकारान्त शब्द होता है। अन्य सकारान्त शब्द अन्य भी सकारान्त शब्द हैं। उनके भी रूप मनस् शब्द के समान चलते हैं। जैसे कि – तेजस्, … Read more
- राजन् शब्द रूप Rajan Shabda Roop in Sanskritराजन् शब्द एक नकारान्त शब्द है। यह एक पुँल्लिंग का शब्द है। नकारान्त किसे कहते हैं? जिस शब्द के अन्त में न् यह ध्वनि होती है वह नकारान्त शब्द होता है। अन्य नकारान्त शब्द नकारान्त शब्द अनेक प्रकार के होते हैं। विभिन्न प्रत्यय लगकर अलग-अलग तरह के नकारान्त शब्द बनते हैं। राजन् शब्द के सभी … Read more
- 8.4.58. अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः।यह सूत्र परसवर्ण संधि का पहला सूत्र है। हालांकि परसवर्ण संधि को सीखने के लिए इन तीनों सूत्रों का अध्ययन होना आवश्यक है – इस लेख में हम 8.4.58. अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः। इस सूत्र का अध्ययन कर रहे हैं। बाकी दोनों सूत्रों का भी अध्ययन हम आने वाले लेखों में करेंगे। 8.4.58. अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः … Read more
- अकः सवर्णे दीर्घः । ६ । १ । १०१ ॥अकः सवर्णे दीर्घः । ६ । १ । १०१ ॥ यह सूत्र दीर्घ सन्धि का विधान करने वाला सूत्र है। अनुवृत्ति अनुवृत्ति के साथ संपूर्ण सूत्र अकः पूर्वपरयोः एकः दीर्घः सवर्णे अचि। सूत्र का हिन्दी शब्दार्थ अकः – अक् का, पूर्वपरयोः – पूर्व और पर दोनों के स्थान पर, एकः – एक, दीर्घः – दीर्घ … Read more
- 1.3.9. तस्य लोपःतस्य लोपः इस सूत्र को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें यह समझना पड़ेगा कि इत् किसे कहते हैं। पाणिनीय अष्टाध्यायी में उपदेशेऽजनुनासिक इत्। (१.३.२) इस सूत्र से लेकर न विभक्तौ तुस्माः। (१.३.८) इन सात सूत्रों में बताया है कि इत् इसे कहते हैं। और यदि बात लघुसिद्धान्तकौमुदी की करें तो लघुसिद्धान्त कौमुदी में हलन्त्यम् इस … Read more
- 1.1.71. आदिरन्त्येन सहेतायह सूत्र एक संज्ञासूत्र है जो प्रत्याहार-संज्ञा का विधान करता है। यानी इस सूत्र से हमे पता चलता है कि प्रत्याहार किस प्रकार से होता है। सूत्र का पदच्छेद आदिः अन्त्येन सह इता अनुवृत्तिसहित सूत्र आदिः अन्त्येन इता सह स्वस्य रूपस्य (बोधकः भवति) शब्दार्थ अर्थात् – आदि आखरी इत् के साथ खुद के रूप का … Read more
- 1.4.14. सुप्तिङन्तं पदम्यह सूत्र हमें ‘पद’ संज्ञा के बारे में बताता है। बहुत बार हिन्दी में पद और शब्द इन दोनों को समानार्थक मानते हैं। परन्तु इन दोनों में भेद है। किसी भी सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं। परन्तु संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से देखा जाए तो पद एक भिन्न संज्ञा है। इस संज्ञा को सुप्तिङन्तं … Read more
- 1.4.109. परः सन्निकर्षः संहिताइस सूत्र में हमें बताया है कि संहिता किसे कहते हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात जिसे हमें ध्यान में रखना है कि संहिता को ही सन्धि कहते हैं। अर्थात् परः सन्निकर्षः संहिता यह सूत्र हमें बताता है कि सन्धि किसे कहते हैं। यानी इस सूत्र में सन्धि की परिभाषा बताई गई है। सूत्र का शब्दार्थ इस … Read more
- 1.1.7. हलोऽनन्तराः संयोगःसंयोग को ही हिन्दी व्याकरण में संयुक्ताक्षर कहते हैं। यानी इस सूत्र से हमे पता चलता है कि संयुक्ताक्षर किसे कहते हैं। मराठी भाषा में इस संयोग को जोडाक्षर कहते हैं। हलोऽनन्तराः संयोगः इस सूत्र में संयोग इस संज्ञा के बारे में बताया है। यानी इस सूत्र में बताया है कि संयोग किसे कहते हैं। … Read more
- 1.1.60. अदर्शनं लोपःयह सूत्र हमें बताता है कि संस्कृत व्याकरण में लोप किसे कहते हैं। लोप यह एक संज्ञा है। संज्ञा का अर्थ होता है किसी भी मूर्त या अमूर्त वस्तु को दिया गया नाम। अब प्रश्न है कि – लोप यह किस चीज का नाम है? अदर्शनं लोपः। इस सूत्र के अनुसार किसी का अदर्शन होना … Read more
- 1.3.3. हलन्त्यम्हलन्त्यम् यह सूत्र एक संज्ञा सूत्र है। पाणिनीय अष्टाध्यायी में इस सूत्र का क्रमांक है – १.३.३। हलन्त्यम् यह सूत्र ‘इत् संज्ञा विधायक’ सूत्र है। हलन्त्यम् सूत्र से हम पता चलता है कि इत् किसे कहते हैं। संज्ञा शब्द का अर्थ होता है – नाम। यानी किसी चीज को यदि कोई नाम दिया जाए तो … Read more
- माहेश्वर सूत्रपाणिनीय पद्धति से संस्कृत व्याकरण सीखने के लिए सर्वप्रथम माहेश्वर सूत्र पढ़ना बहुत आवश्यक होता है। इन माहेश्वर सूत्रों की ही मदद से प्रत्याहार बनते हैं। १४ माहेश्वर सूत्र निम्न हैं १. अइउण् । २. ऋऌक् । ३. एओङ् । ४. ऐऔच् । ५. हयवरट् । ६. लण् । ७. ञमङणनम् । ८. झभञ् । … Read more
- वर्णों का उच्चारण काल अर्थात् किस वर्ण की कितनी मात्राएं होती हैं?हमारी संस्कृत वर्णमाला में स्वर और व्यंजन ऐसे दो स्पष्ट विभाग दिखते हैं। इन में से स्वरों के तीन प्रकार हैं – ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत। निम्न कारिका में तीनों प्रकार के स्वरों के और व्यंजनों के काल के बारे में जानकारी मिलती है। कारिका एकमात्रो भवेद्ध्रस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते।त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयः व्यञ्जनं त्वर्धमात्रिकम् ॥ … Read more
- नदी किसे कहते हैं? संस्कृत व्याकरण में नदी संज्ञासंस्कृत व्याकरण में नदी यह संज्ञा क्या है? पानी के प्रवाह को व्यवहार में नदी कहते हैं। परन्तु संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से नदी यह एक अलग संकल्पना है। आप ने नदी, देवी, वधू इ॰ शब्दों के षष्ठी बहुवचन देखे होंगे – नदीनाम्, देवीनाम्, वधूनाम् इत्यादि। परन्तु जगत्, भवत्, सर्व इ॰ शब्दों के षष्ठी बहुवचन … Read more
- प्रातिपदिक किसे कहते हैं? संस्कृत व्याकरण में प्रातिपदिक संज्ञासंस्कृत व्याकरण में प्रत्यय बहुत जगहों पर होते हैं। परन्तु इस प्रत्ययों का अधिकारी कौन है? किसे प्रत्यय लगते हैं? क्या हम किसी भी शब्द को संस्कृत का कोई भी प्रत्यय लगा सकते हैं? संस्कृत को छोडिए। क्या अंग्रेजी के जो कोई भी प्रत्यय (suffix) हैं, वे किसी भी शब्द से हो सकते हैं? – … Read more
- वृद्धि किसे कहते हैं? संस्कृत व्याकरण में वृद्धि संज्ञावैसे तो वृद्धि इस शब्द का अर्थ होता है बढ़ौतरी होना। परन्तु संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से देखा जाए तो यह एक संज्ञा है। संस्कृत भाषा के तीन स्वर ऐसे हैं जिन को वृद्धि इस नाम से जानते हैं। वृद्धि संज्ञा का सूत्र अष्टाध्यायी में इस सूत्र के द्वारा वृद्धि संज्ञा का विधान किया है … Read more
- गुण – संस्कृत व्याकरण में गुणसंज्ञागुण संज्ञा का सूत्र पाणिनीय अष्टाध्यायी में बिल्कुल दूसरा ही सूत्र गुण इस संज्ञा की व्याख्या करता है – अदेङ्गुणः। १। १। २॥ इस सूत्र के अनुसार अ, ए और ओ इन तीनों स्वरों को गुण कहते हैं। गुण संज्ञा और गुण सन्धि में अन्तर संज्ञा का अर्थ होता है – नाम। अ, ए और … Read more
- संयोग किसे कहते हैं? संस्कृत व्याकरण का संयुक्ताक्षरWhat is Samyoga in Sanskrit grammar? संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से संयोग यह एक संज्ञा है। जिसे हिन्दी में संयुक्ताक्षर कहते हैं, उसे ही संस्कृत व्याकरण में संयोग इस संज्ञा से जानते हैं। मराठी में इसे जोडाक्षर भी कहते हैं। संयोग का पाणिनीय सूत्र Panini’s sutra of Samyoga हलोऽनन्ततराः संयोगः। १। १। ७॥ इस सूत्र … Read more
- संहिता किसे कहते हैं – संस्कृत व्याकरणसंहिता की व्याख्या। परः सन्निकर्षः संहिता 1.4.109. संहिता कहाँ करनी चाहिए? संहिता और संयोग में भेद। संहिता और संधि में भेद
- पत्रे रिक्तस्थानपूर्ति – संस्कृत पत्र में रिक्तस्थानों की पूर्ति कैसे करें? (CBSE Sanskrit)CBSE के संस्कृत विषय की परीक्षा में छात्रों को पत्रे रिक्तस्थानपूर्ति यह एक प्रश्न होता है। एक पत्र प्रश्नपत्र (question paper) में दिया जाता है। परन्तु वह पत्र पूरा नहीं होता है। उस पत्र में कुछ शब्द नहीं होते हैं। उसे ही रिक्तस्थान कहते हैं। और ऐसे रिक्तस्थानों को योग्य शब्द से पूरा करने के … Read more
- अनुच्छेदलेखनम् – संस्कृत में अनुच्छेद कैसे लिखे?इस लेख में CBSE संस्कृत की परीक्षा में अनुच्छेद लेखन इस प्रश्न पर विचार करेंगे। अनुच्छेद लेखन यह प्रश्न चित्र वर्णन के लिए विकल्प होता है। यदि आप इस प्रश्न का उत्तर ठीक से लिखते हैं, तो इस प्रश्न में भी सभी छात्रों को पूर्ण अंक मिल सकते हैं। इस लेख में लिखित सभी बिन्दुओं … Read more
- पुरुष – संस्कृत व्याकरण में पुरुष किसे कहते हैं?उत्तमपुरुष के तीन शब्द – अहम् आवाम् वयम्, मध्यमपुरुष के तीन शब्द – त्वम् युवाम् यूयम्, इन 6 के अलावा बचे हुए सभी शब्द प्रथम पुरुष होते हैं।
- संस्कृत चित्रवर्णनम् – चित्र को देख कर वाक्य लिखना (CBSE)2021-22 में CBSE के शैक्षिक वर्ष में द्वितीय सत्र की संस्कृत विषय की परीक्षा में चित्रवर्णन से संबंधित प्रश्न होता है। इस प्रश्न में कोई एक चित्र होता है। छात्रों को चित्र को देख कर पांच-छः वाक्य संस्कृत भाषा में लिखने होते हैं। संस्कृत चित्रवर्णन का वीडिओ इस विषय से संबंधित यह वीडिओ हमने बनाया … Read more
- द्वितीया विभक्ति – संस्कृतद्वितीया विभक्ति का कारक अर्थ द्वितीया विभक्ति का कारक अर्थ होता है – कर्म (object)। कर्म की व्याख्या इस सूत्र के द्वारा की है – कर्तुरीप्सिततमं कर्म।१।४।२९॥ कर्ता क्रिया के द्वारा जिस सबसे ज्यादा चाहता है, वह कर्म है। द्वितीया विभक्ति के सूत्र कर्मणि द्वितीया।२।३।२॥ कर्तृवाच्य/कर्तरि प्रयोग (active voice) के वाक्य में कर्म की … Read more
- चतुर्थी विभक्तिचतुर्थी विभक्ति का कारक अर्थ संप्रदान होता है। संप्रदान का सामान्य अर्थ होता है – receiver। जैसे कि – माँ बालक को रोटी देती है। यहां इस वाक्य में बालक रोटी का स्वीकार करने वाला (receiver) है। इसीलिए इसे हम संप्रदान कह सकते हैं। चतुर्थी विभक्ति के उदाहरण एकवचन में चतुर्थी के उदाहरण शिक्षक छात्र … Read more
- कारकसंस्कृत व्याकरण में कारक बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। किसी वाक्य में प्रातिपदिकों की भूमिका हम कारक की मदद से पहचान सकते हैं। क्रिया के साथ अन्वय करनेवाले को कारक कहते हैं। यहाँ अन्वय इस शब्द का अर्थ संबंध ऐसा होता है।
- भाषा की परिभाषाभाषा के बारे में वैदिक साहित्य में उल्लेख मिलता है – वाचं देवा उपजीवन्ति विश्वे वाचं गन्धर्वाः पशवो मनुष्याः। वाचीमा विश्वा भुवनान्यर्पिता सानो हवं जुषतामिन्द्र पत्नी॥ महर्षि पतंजलि के अनुसार भाषा – व्यक्ता वाचि वर्णा येषां त इमे व्यक्तवाचः। अमरकोष में भाषा के पर्यायी शब्द इस प्रकार दिए हैं – ब्राह्मी तु भारती भाषा गीर्वाग्वाणी … Read more
- अन्वय – संस्कृत में अन्वय कैसे करें?संस्कृत भाषा में पदों का वाक्य में स्थान ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। वे इधर-उधर बिखरे पड़े हो सकते हैं। उन पदों को तर्कदृष्ट्या योग्य क्रम से पुनः लिखने को अन्वय कहते हैं। जिस से संस्कृत श्लोक तथा वाक्यों को समझने में आसानी हो सके। अन्वय क्रम में श्लोक अथवा वाक्य का अर्थ अधिक स्पष्ट … Read more
- तृतीया विभक्ति – संस्कृततृतीया विभक्ति का कारक अर्थ करण होता है। करण के बारे में संस्कृत भाषा में कहा गया है – साधकतमं करणम्। अर्थात् किसी भी क्रिया को करने के लिए जो सबसे ज्यादा सहायता करता है उसे करण कहते हैं। और करण को तृतीया विभक्ति होती है। हिन्दी भाषा में तृतीया विभक्ति के चिह्न हैं – … Read more
- पंचमी विभक्ति – संस्कृतसंस्कृत भाषा में अलगाव (separation) दिखाने के लिए पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। जिसे संस्कृत भाषा में अपादान कहते हैं। अर्थात् हिन्दी भाषा में जहाँ पर ‘से’ इस जिह्न का प्रयोग होता है, वहाँ संस्कृत भाषा में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है। अंग्रेजी की बात करें तो अंग्रेजी के from इस शब्द के … Read more
- गच्छत् शब्द रूपगच्छत् शब्द का अर्थ गच्छत् का अर्थ है – जो जा रहा है अथवा जानेवाला। गच्छत् एक शत्रन्त शब्द है। अर्थात् शतृ जिसके अन्त मैं है वह शत्रन्त (शतृ + अन्त – शत्रन्त)। शतृ प्रत्यय किसी भी धातु को लगाकर शत्रन्त बानाने का तरीका जानने के लिए हमने यह लेख लिखा है – शतृ प्रत्यय … Read more
- शतृ प्रत्यय (सरल अध्ययन)मूलतः शतृ प्रत्यय का अर्थ वर्तमान काल है। वैसे तो संस्कृत भाषा में वर्तमान काल के लिए लट् लकार का प्रयोग करते हैं। तथापि लट् लकार के स्थान पर शतृ प्रत्यय का भी प्रयोग कर सकते हैं। और साथ ही शतृ प्रत्यय का प्रयोग भविष्यत् काल (लृट् लकार) (Future tense) के लिए भी हो सकता … Read more
- क्त प्रत्ययसंस्कृत व्याकरण में, आम संस्कृत संभाषण में क्त और क्तवतु इन दोनों प्रत्ययों का बहुत प्रयोग किया जाता है। इन दोनों प्रत्ययों का प्रयोग भूतकाल व्यक्त करने के लिए करते हैं। हम इस लेख में क्त इस संस्कृत प्रत्यय का अभ्यास करने वाले हैं। क्तवतु प्रत्यय के अध्ययन हेतु इस लेख को पढ़िए –https://kakshakaumudi.in/प्रत्यय/कृदन्त/क्तवतु-प्रत्यय/ क्त … Read more
- उत्तम पुरुष वाच्यपरिवर्तनम्अहम् आवाम् वयम् इन तीनों को उत्तम पुरुष कहते हैं। एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा अहम् (मैं) आवाम् (हम दोनों) वयम् (हम सब) द्वितीया माम् (मुझे) आवाम् (हम दोनों को) अस्मान् (हम सब को) तृतीया मया (मेरे द्वारा) आवाभ्याम् (हम दोनों के द्वारा) अस्माभिः (हम सब के द्वारा) लट् लकार – उत्तमपुरुषी प्रत्यय परस्मैपद – … Read more
- मध्यम पुरुष वाच्यसूत्र कर्तृवाच्य – (कर्ता + प्रथमा) (कर्म + द्वितीया) (क्रिया – धातु + परस्मैपद/आत्मनेपद) कर्तृवाच्य में क्रिया कर्ता के अनुरूप होती है। कर्मवाच्य – (कर्ता + तृतीया) (कर्म + प्रथमा) (क्रिया – धातु + य + आत्मनेपद) कर्मवाच्य में क्रिया कर्म के अनुरूप होती है। उदाहरण १ २. २+ प्रथमा त्वम् – सि/से युवाम् … Read more
- अभ्यास 1 वाच्य परिवर्तन1. कर्तृवाच्य / कर्तरि प्रयोग (Active voice) सूत्र – (कर्ता + प्रथमा) (कर्म + द्वितीया) (धातु + लकार) नियम – कर्तृवाच्य के वाक्य में कर्ता का जो पुरुष और वचन होता है वही पुरुष और वचन क्रियापद का भी होता है। उदाहरण बालक श्लोक लिखता है। बालकः श्लोकं लिखति। 2. कर्मवाच्य / कर्मणि प्रयोग (Passive … Read more
- लोट् लकारलोट् लकार का प्रयोग आज्ञा देने के लिए होता है। यदि आप किसी को आज्ञा देना चाहते हैं, तो धातु से लोट् लकार होता है। लोट् लकार के प्रत्यय हर लकार की तरह लोट् लकार के भी परस्मैपदी तथा आत्मनेपदी ऐसे दो प्रकार के प्रत्यय होते हैं। तथा उभयपदी धातुओं से दोनों भी प्रकार के … Read more
- सप्तमी विभक्ति – संस्कृतसप्तमी विभक्ति का कारक अर्थ अधिकरण होता है। अर्थात् संस्कृत भाषा में क्रिया जहाँ हो रही है वह स्थान दिखाने के लिए सप्तमी विभक्ति का प्रयोग करते हैं। यदि हिन्दी की बात करें, तो हिन्दी भाषा में जहाँ में अथवा पर इन शब्दों का प्रयोग होता है, वहां संस्कृत भाषा में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग … Read more