नश्चापदान्तस्य झलि ८।३।२४॥

म् का और न् का, जो पद के अन्त में नहीं है, अनुस्वार होता है झल् में

मोऽनुस्वारः ८।३।२३॥

पदान्त म् का अनुस्वार होता है हल् परे रहने पर

खरि च ८।४।५५॥

झलों का चर् होता है खर् में।

यरोऽनुनसिकेऽनासिको वा ८।४।४५॥

यर् का अनुनासिक में अनुनासिक विकल्प से होता है।

ष्टुना ष्टुः ८।४।४१॥

स्तु का ष्टु से ष्टु होता है।

स्तोः श्चुना श्चुः ८।४।४०॥

स्तु का श्चु से श्चु होता है।

अष्टाध्यायी सूत्रों के प्रकार

अष्टाध्यायी में छः प्रकार के सूत्र पाए जाते हैं। – संज्ञा च परिभाषा च विधिर्नियम एव च। अतिदेशोऽधिकारश्च षड्विधं सूत्रलक्षणम्॥

वृद्धिरेचि ६।१।८८॥

इको यण् अचि। इस सूत्र में अचि यह पद है। इस पद की अनुवृत्ति इन दोनों सूत्रों में होती है। एचोऽयवायावः (अचि)। आद् गुणः (अचि)। परन्तु वृद्धिरेचि इस सूत्र में अचि की अनुवृत्ति नहीं है। अपितु आद्गुणः से आद् की अनुवृत्ति होती है। और अचि की अनुवृत्ति की जगह पर एचि यह नया पद इस … Read more

वृद्धिरादैच् १।१।१॥

वृद्धिः आत् ऐच् आत् आ ऐच् ऐ औ। वृद्धिः = आ ऐ औ आ ऐ औ इन तीनों स्वरों को वृद्धि कहते हैं