अकः सवर्णे दीर्घः । ६ । १ । १०१ ॥

अकः सवर्णे दीर्घः । ६ । १ । १०१ ॥ यह सूत्र दीर्घ सन्धि का विधान करने वाला सूत्र है। अनुवृत्ति अनुवृत्ति के साथ संपूर्ण सूत्र अकः पूर्वपरयोः एकः दीर्घः सवर्णे अचि। सूत्र का हिन्दी शब्दार्थ अकः – अक् का, पूर्वपरयोः – पूर्व और पर दोनों के स्थान पर, एकः – एक, दीर्घः – दीर्घ … Read more

1.4.109. परः सन्निकर्षः संहिता

इस सूत्र में हमें बताया है कि संहिता किसे कहते हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात जिसे हमें ध्यान में रखना है कि संहिता को ही सन्धि कहते हैं। अर्थात् परः सन्निकर्षः संहिता यह सूत्र हमें बताता है कि सन्धि किसे कहते हैं। यानी इस सूत्र में सन्धि की परिभाषा बताई गई है। सूत्र का शब्दार्थ इस … Read more

1.3.3. हलन्त्यम्

हलन्त्यम् यह सूत्र एक संज्ञा सूत्र है। पाणिनीय अष्टाध्यायी में इस सूत्र का क्रमांक है – १.३.३। हलन्त्यम् यह सूत्र ‘इत् संज्ञा विधायक’ सूत्र है। हलन्त्यम् सूत्र से हम पता चलता है कि इत् किसे कहते हैं। संज्ञा शब्द का अर्थ होता है – नाम। यानी किसी चीज को यदि कोई नाम दिया जाए तो … Read more

संयोग किसे कहते हैं? संस्कृत व्याकरण का संयुक्ताक्षर

What is Samyoga in Sanskrit grammar? संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से संयोग यह एक संज्ञा है। जिसे हिन्दी में संयुक्ताक्षर कहते हैं, उसे ही संस्कृत व्याकरण में संयोग इस संज्ञा से जानते हैं। मराठी में इसे जोडाक्षर भी कहते हैं। संयोग का पाणिनीय सूत्र Panini’s sutra of Samyoga हलोऽनन्ततराः संयोगः। १। १। ७॥ इस सूत्र … Read more

संहिता किसे कहते हैं – संस्कृत व्याकरण

संहिता की व्याख्या। परः सन्निकर्षः संहिता 1.4.109. संहिता कहाँ करनी चाहिए? संहिता और संयोग में भेद। संहिता और संधि में भेद

भ्वादिगण धातु १-२००

भ्वादि गण पाणिनीय धातुपाठ में पहला गण है। इस गण का आरंभ भू धातु से होता है। इसीलिए इस गण का नाम भ्वादि (भू + आदि) गण है। इस लेख में भ्वादि गण के धातु क्र॰ १ से २०० तक दिए गए हैं।

अजादि गण ४५

पाणिनीय व्याकरण के पाँच भाग हैं। – १. सूत्रपाठ (अष्टाध्यायी) २. धातुपाठ ३. फिटसूत्र ४. उणादिसूत्र और ५. गणपाठ। गणपाठ पाणिनि जी ने गणपाठ में समान लक्षणों वाले शब्दों को एकत्रित कर के उन के गण (Group) किए हैं। इन में से एक गण है – अजादि गण अजादि गण पाणिनीय सूत्रपाठ (यानी अष्टाध्यायी) में अजादि गण … Read more

पाणिनीय धातुपाठ। पारायण के लिए

महर्षि पाणिनि जी ने अपने धातुपाठ में लगभग २००० धातुएं समाविष्ट की है। इन सभी धातुओं का यह संग्रह यहा मौजूद है। आशा है कि संस्कृतप्रेमी, शिक्षक तथा छात्रों को मददगार साबित हो। भ्वादि गण १।१ भू सत्तायाम् १।२ एधँ वृद्धौ १।३ स्पर्धँ सङ्घर्षे १।४ गाधृँ प्रतिष्ठालिप्सयोर्ग्रन्थे च १।५ बाधृँ लोडने विलोडने १।६ नाधृँ याच्ञोपतापैश्वर्याशीष्षु … Read more

नश्चापदान्तस्य झलि ८।३।२४॥

म् का और न् का, जो पद के अन्त में नहीं है, अनुस्वार होता है झल् में

मोऽनुस्वारः ८।३।२३॥

पदान्त म् का अनुस्वार होता है हल् परे रहने पर