नश्चापदान्तस्य झलि ८।३।२४॥

म् का और न् का, जो पद के अन्त में नहीं है, अनुस्वार होता है झल् में

मोऽनुस्वारः ८।३।२३॥

पदान्त म् का अनुस्वार होता है हल् परे रहने पर

खरि च ८।४।५५॥

झलों का चर् होता है खर् में।

यरोऽनुनसिकेऽनासिको वा ८।४।४५॥

यर् का अनुनासिक में अनुनासिक विकल्प से होता है।

ष्टुना ष्टुः ८।४।४१॥

स्तु का ष्टु से ष्टु होता है।

स्तोः श्चुना श्चुः ८।४।४०॥

स्तु का श्चु से श्चु होता है।